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राष्ट्रपति मेडल पाया अफ़सर क्यों कर रहा था कश्मीरी आतंकवादियों की मदद?

जम्मू-कश्मीर के डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेन्ट दविंदर सिंह का तीन आतंकवादियों के साथ पकड़ा जाना कई सवाल खड़े करते हैं। पुलिस का कहना है कि उनके साथ आतंकवादियों जैसा ही व्यवहार किया जाएगा। सवाल यह है कि राष्ट्रपति मेडल से सम्मानित यह पुलिस अफ़सर क्यों आतंकवादियों के साथ था?
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अफ़ज़ल गुरु से जुड़े थे तार?

दविंदर सिंह पहली बार विवादों के घेरे में तब आए थे, जब संसद हमले के अभियुक्त अफ़ज़ल गुरु ने उनका नाम लिया था। अफ़ज़ल को दिसंबर 2001 में संसद पर हुए हमले में शामिल होने का दोषी पाया गया था और 9 फ़रवरी 2013 को उसे फाँसी की सज़ा दे दी गई थी। 

अफ़ज़ल ने 2004 में अपने वकील सुशील कुमार को लिखी चिट्ठी में पहली बार देविंदर सिंह का नाम लिया था। तिहाड़ जेल से लिखे ख़त में उसने कहा था कि दविंदर सिंह ने उसे पाकिस्तानी नागरिक मुहम्मद को दिल्ली ले जाने, भाड़े पर घर ढूंढने और गाड़ी खरीदने में मदद करने को कहा था।
मुहम्मद को संसद पर हुए हमले में अभियुक्त बनाया गया था। दविंदर सिंह उस समय जम्मू-कश्मीर के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में थे और हुमहामा में तैनात थे।  

तो क्या दविंदर सिंह इस हमले में भी किसी रूप में शामिल थे? या वह किसी गोपनीय ऑपरेशन का हिस्सा थे? क्या वह आतंकवादी संगठनों का विश्वास हासिल कर उनके अंदर तक घुसना चाहते थे? कोई निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी।
शुक्रवार को दविंदर और पाकिस्तान स्थित आतंकवादी गुट हिज़बुल मुजाहिदीन के स्थानीय कमान्डर नावेद बाबा के बीच की बातचीत को ख़फ़िया एजेन्सियों ने सुन लिया।
इस पूरे ऑपरेशन की अगुआई डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (दक्षिण कश्मीर) अतुल गोयल कर रहे थे। पूरी जानकारी मिलने के बाद वे ख़ुद एक चेकपोस्ट पर पहुँच गए और उस गाड़ी को रोका, जिसमें दविंदर जा रहे थे। उन्हें गिरफ़्तार करने के बाद उनके घर पर छापे मारे गए। उनके घर से दो रिवॉल्वर और एक एके-47 राइफल बरामद किए गए। 

आतंकवादियों की मदद?

पुलिस की पहली प्रतिक्रिया यह है कि यह अफ़सर आतंकवादियों को राज्य से बाहर निकलने में मदद कर रहा था, क्योंकि बनिहाल पार कर लेने के बाद जम्मू तक कोई नहीं रोकता। एक बार जम्मू पहुँच जाने के बाद वहाँ से राज्य के बाहर निकलना आसान था। तो क्या डीएसपी आतंकवादियों की मदद कर रहे थे? 

बीते हफ़्ते जब दिल्ली में तैनात कुछ देशों के राजदूतों और उच्चायुक्तों को कश्मीर ले जाया गया, दविंदर सिंह ने ही उनकी आगवानी की थी। देविंदर का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि वह आतंकवादियों के ख़िलाफ़ मुहिम में शामिल हैं। 

फ़िलहाल दविंदर सिंह से पूछताछ चल रही है। इस पूछताछ में स्थानीय पुलिस के अलावा खु़फ़िया एजेन्सी रिसर्च एंड एनलिसिस विंग (रॉ), सीआईडी और इनवेस्टीगेशन ब्यूरो (आईबी) के लोग शामिल हैं। 

पर्यवेक्षकों का कहना है कि कई बार ऐसा भी होता है कि पुलिस के लोग आतंकवादी गुटों के अंदर घुसने के लिए उनसे संपर्क साधते हैं, उनकी छोटी-मोटी मदद करते हैं, उनके साथ उनके जैसा ही व्यवहार करते हैं ताकि वे विश्वास जीत सके। इस आधार पर वे गोपनीय जानकारी हासिल करते हैं। तो क्या दविदंर सिंह इस तरह के किसी ऑपरेशन में थे? यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। फ़िलहाल पुलिस उन्हें आतंकवादी मान कर वैसा ही व्यवहार कर रही है। 

संसद पर हमले के मामले में जिस आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु को सज़ा-ए-मौत दी गई, उसकी मदद करने के आरोप में पुलिस अफ़सर दविंदर सिंह को क्यों नही पकड़ा गया? उसके बाद भी लंबे समय तक उनका पुलिस में बने रहना, आतंक-निरोधी मुहिम में रहना और उन्हें राष्ट्रपति पुलिस मेडल से सम्मानित किया जाना क्या यह सवाल खड़े नहीं करता है कि यह कैसो हो गया? इन सवालों के जवाब तो पूछताछ से ही निकलेंगे। 
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क़मर वहीद नक़वी

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