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प्रतीकात्मक तसवीर

झारखंड में फिर मॉब लिन्चिंग, गो हत्या के शक में तीन को पीटा, एक की मौत

अब यह आए दिन की बात हो चुकी है कि झारखंड में किसी भी तरह के शक के चलते भीड़ किसी को भी पीट-पीटकर मार दे। इस तरह के कई मामले पिछले कुछ सालों में हुए हैं और अब फिर ऐसा ही एक मामला सामने आया है। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, झारखंड के खुंटी जिले के जलटंडा सुआरी गाँव में रविवार को गो हत्या के शक में भीड़ ने तीन लोगों पर हमला कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और दो लोग घायल हैं। 

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, पुलिस ने बताया कि रविवार को लगभग सुबह 10 बजे ग्रामीणों ने इन लोगों पर तब हमला किया जब आरोपों के मुताबिक़, उन्होंने उन्हें एक पशु के शव से मांस निकालते हुए देखा। डीआईजी (चोटानगर रेंज) होमकर अमोल वेणुकांत ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया, ‘मांस ले जाने वाले तीन ग्रामीणों की पहचान कालातुंस बाड़ला, फ़िलीप होरा और फागू कच्चप नाम के लोगों के रूप में हुई है। इस पशु की हत्या प्रतिबंधित है। कुछ ग्रामीणों ने उन्हें पशु के शव के शव को ले जाते देखा और पीटना शुरू कर दिया।’

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डीआईजी ने आगे कहा, ‘हालाँकि सूचना मिलते ही पुलिस मौक़े पर पहुँची और घायलों को अस्पताल ले गई। बाड़ला को गंभीर चोटें आई थीं और अस्पताल पहुँचने से पहले ही उसकी मौत हो गई, बाक़ी दो लोगों की हालत स्थिर है।’ 

डीआईजी ने अख़बार को बताया कि घटनाक्रम को लेकर स्थिति साफ़ नहीं हो पा रही है और मामले की जाँच जारी है। उन्होंने कहा कि अभी तक मामले में किसी को गिरफ़्तार नहीं किया गया है और कुछ लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है। 

इसी तरह की एक घटना में इस साल अप्रैल में आदिवासी ईसाई समुदाय के व्यक्ति प्रकाश लाकड़ा की झारखंड के ही गुमला जिले के झुरमो गाँव में भीड़ ने एक मरे हुए बैल को ले जाने के आरोप में पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। इस साल जुलाई में गुमला जिले में 10-12 लोगों ने काला जादू करने के शक में तीन परिवारों के चार लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। 

झारखंड में मार्च 2016 में लातेहार ज़िले में मॉब लिंचिंग की पहली घटना तब सामने आई थी जब भीड़ ने पशु व्यापारी मजलूम अंसारी और उनके 12 साल के सहयोगी इम्तियाज ख़ान की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। भीड़ ने हत्या करने के बाद उनकी लाशों को एक पेड़ से लटका दिया था। 

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इसके बाद जून 2017 में भीड़ ने अलीमुद्दीन अंसारी नामक एक मांस व्यापारी को बेरहमी से पीटा था, जिससे उनकी मौत हो गई थी। भीड़ को शक था कि वह गाय का मांस ले जा रहे थे। इसी साल जून में बाइक चोरी के शक में 24 साल के युवक तबरेज अंसारी को भीड़ ने रात भर पीटा था और कुछ ही दिन बाद उसकी मौत हो गई थी। भीड़ ने उसे ‘जय हनुमान’ का नारा लगाने के लिए भी कहा था। 

इसके अलावा भी झारखंड में कई और मामले हैं जिनमें उन्मादी भीड़ ने सिर्फ़ शक के आधार पर कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया। ये हत्याएँ पशु हत्या, चोरी और बच्चा उठाने के शक में हुई हैं। इसके अलावा जादू टोने के शक में भी भीड़ कई लोगों की हत्या कर चुकी है।

वेबसाइट फ़ैक्टचेकर.इन के मुताबिक़, पिछले कुछ सालों में भीड़ प्रायोजित हिंसा की घटनाएँ बढ़ी हैं और इनमें से अधिकांश घटनाओं में अल्पसंख्यक निशाने पर रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक़, पिछले दशक में देश भर में ऐसी 297 घटनाएँ हुई थीं। इनमें 98 लोग मारे गए थे और 722 लोग घायल हुए थे। 2015 के बाद, पशु चोरी या पशु तस्करी को लेकर भीड़ के द्वारा हमले करने की 121 घटनाएँ हो चुकी हैं, जबकि 2012 से 2014 के बीच ऐसी कुल 6 घटनाएँ हुई थीं।

वेबसाइट फ़ैक्टचेकर.इन के मुताबिक़, अगर 2009 से 2019 के बीच हुई ऐसी घटनाओं को देखें तो 59 फ़ीसदी मामलों में हिंसा का शिकार होने वाले मुसलिम थे और इसमें से 28% घटनाएँ पशु चोरी और पशुओं की तस्करी से संबंधित थीं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि ऐसी 66% घटनाएँ बीजेपी शासित राज्यों में हुईं जबकि 16% घटनाएँ कांग्रेस शासित राज्यों में।

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झारखंड में विधानसभा चुनाव में एक महीने से भी कम का समय बचा है। यह राज्य मॉब लिन्चिंग की घटनाओं के लिए बदनाम हो चुका है। ऐसे में क्या आक्रोशित भीड़ के द्वारा लोगों की हत्या को लेकर जनता राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करेगी या नहीं, यह सबसे बड़ा सवाल है और इसका जवाब 24 अक्टूबर को चुनावी नतीजे आने पर ही मिलेगा।
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क़मर वहीद नक़वी

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