प्रेमचंद ने अपने साहित्य में जाति व्यवस्था पर गहरी चोट की है। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 20 वीं कड़ी में पढ़ें अपूर्वानंंद को।
प्रेमचंद साहित्य में हम पाते हैं, अपने समय के बोध का अर्थ है अपनी सीमितता का बोध। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 18 वीं कड़ी में बता रहे हैं अपूर्वानंद।
हिंदी और उर्दू के स्वरूप पर प्रेमचंद क्या सोचते थे? प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 17 वीं कड़ी में बता रहे हैं अपूर्वानंद।
क्या है प्रेमचंद में अगर वह कोरा आदर्शवाद नहीं है? उन्हें पढ़ें कैसे, यह ऐसी समस्या है, जिसपर उनके समकालीनों से लेकर आज तक सक्रिय रचनाकार विचार करते रहे हैं। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला।
कृष्ण जन्माष्टमी अभी गुजरी है। अमूमन इस रोज़ सोशल मीडिया पर उर्दू/मुसलमान शायरों की कृष्ण भक्ति या कृष्ण महिमा में लिखी गई कविताएँ उद्धृत की जाती रही हैं। इस वर्ष यह उत्साह कम दिखलाई पड़ा।
हिन्दू-मुसलिम एकता, प्रेम, विवेक और सौहार्द्र के बारे में प्रेमचंद की क्या राय थी, बता रहे हैं अपूर्वानन्द। सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 13वीं कड़ी में।
पिछले दिनों प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर की याद बार-बार दिलाई गई है। भारत की अदालतों में जो कुछ भी हो रहा है, उसके संदर्भ में। ख़ासकर प्रशांत भूषण पर अदालत की हतक के मुकदमे के सिलसिले में। प्रेमचंद जयंती पर सत्य हिन्दी की विशेष पेशकश अपूर्वानंद की कलम से।
प्रेमचंद को लेकर साहित्यवालों में कई बार दुविधा देखी जाती है। उनका साहित्य प्रासंगिक तो है लेकिन क्यों? क्या ‘गोदान’ इसलिए प्रासंगिक है कि भारत में अब तक किसान आत्महत्या कर रहे हैं?
माखनलाल चतुर्वेदी ठीक ही प्रेमचंद की ‘कठोर मज़दूरी को चिह्नित करते हैं। उनकी भाषा जो इतनी सहज जान पड़ती है, पानी की तरह बहती हुई, उसके पीछे शब्दों और भाषा की दीर्घ साधना तो है ही, ख़ुद का उनके साथ घोर परिश्रम है।
भारत में मुक्ति या क्रांति के नाम पर हिंसा की वैधता को लेकर तीखी बहस रही है। प्रेमचंद इस पर क्या सोचते थे और उनके विचार दार्शनिक अल्बेयर कामू के विचार से किस तरह भिन्न थे, बता रहे हैं अपूर्वानंद।
प्रेमचंद मानव समाज के बारे में क्या सोचते थे, वह मनुष्य की ज़िन्दगी को ऊपर उठाने के बारे में क्या राय रखते थे? प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला, आठवीं कड़ी।
हिंदी साहित्य में किसी प्रेमचंद-युग की चर्चा नहीं होती, उर्दू साहित्य में भी शायद नहीं। लेकिन यह कहना बहुत ग़लत न होगा कि अज्ञेय हों या जैनेंद्र या और भी लेखक, वे प्रेमचंद-युग की संतान हैं।..प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की सातवीं कड़ी।