किस्सागो
दूरदर्शन के इतिहास में सोप ओपेरा के जन्मदाता मनोहर श्याम जोशी बेरोज़गारी, स्कूल मास्टरी और क्लर्की से गुजरते हुए, आखिरकार लेखक बने। उनकी पहली कहानी हालांकि महज अठारह साल की उम्र में छप चुकी थी, लेकिन पहला उपन्यास 'कुरु कुरु स्वाहा' सैंतालीस साल की उम्र में प्रकाशित हो पाया। अपने पहले ही उपन्यास में उन्होंने भाषा के जो विविध रंग दिखलाये, वह सचमुच अनूठे थे। यह तो महज एक शुरुआत भर थी, बाद में अपने कथा साहित्य में यह भाषाई कला उन्होंने बार-बार दिखलाई। कथ्य में नवीनता और भाषा की ज़िंदादिली उनके उपन्यासों 'कुरु कुरु स्वाहा', 'कसप', 'हरिया हरक्यूलिस की हैरानी', 'क्याप', 'हमजाद', 'ट-टा प्रोफेसर' को कुछ खास बनाती है।हिन्दी जुबान में मनोहर श्याम जोशी उन किस्सागो में शामिल थे, जिन्होंने अपने कथा साहित्य में किस्सागोई की परंपरा को जिन्दा रखा था। बतकही के जरिए मुश्किल से मुश्किल मौजू को वे कुछ इस तरह से पेश करते कि पाठक लाजवाब हो जाता।
मध्यवर्ग की कहानी
मनोहर श्याम जोशी के लेखन में मध्यवर्ग की विडंबना और विद्रूप, जिस विशिष्ट मर्मभेदी अंदाज में चित्रित हुआ है, वह उनके समकालीनों से नितांत अलग है। वहीं कृतियों में मौलिकता उन्हें जुदा पहचान देती है। व्यंग्य को मनोहर श्याम जोशी ने गंभीर सोद्देश्यता से जोड़ा। अपनी लेखनी के तंज और कटाक्ष से उन्होंने आम लोगों के गुस्से को अल्फाज़ दिये।टेलीविज़न क्रांति
आठवे दशक में जब देश में टेलीविज़न क्रांति हुई, तो मनोहर श्याम जोशी दूरदर्शन से जुड़ गए। सीरियल ‘हम लोग’ और ‘बुनियाद’ की पटकथा लिखकर उन्होंने एक नये इतिहास का सूत्रपात किया। इन सीरियलों के किरदारों ने उन्हें देश के घर-घर में लोकप्रिय बना दिया। सीरियल लेखक के तौर पर अपनी कामयाबी को उन्होंने कई बार दोहराया।कल्पनाशीलता
मनोहर श्याम जोशी के सृजन कर्म में जो कल्पनाशीलता, 'विट्' (वाग्विदग्धता) देखने को मिलती है, हिन्दी साहित्य में वह उनके अलावा केवल डॉ. राही मासूम रजा में थी। जोशी का 'विट्' मन में खलबली पैदा कर देता था। व्यंग्य संग्रह ‘नेताजी कहिन’ में व्यवस्था की विद्रूपता को उन्होंने जिस सहजता से उघाड़ा, वह काबिले तारीफ है।जोशी ने भाषा, शिल्प और विषयवस्तु के स्तर पर जितनी विविधता और प्रयोग अपने उपन्यासों में किए, वे दूसरे रचनाकारों में बमुश्किल मिलते हैं। पश्चिमी कथा आलोचक एलेन फ्रिडमैन नये युग की अभिव्यक्ति के लिए जिस ऑपेन नॉवेल की प्रस्तावना करते हैं, जोशी के उपन्यासों में वह ऑपेन नॉवेल है।
पहाड़ी जीवन
‘कसप’ मूलतः प्रेम कथा है। कुमाऊंनी बोली और लोक संस्कृति ने इस उपन्यास में पहाड़ी जीवन को जैसे साकार कर दिया है। पाठकों को यह बात जानकर बड़ी हैरानी होगी कि जोशी पहाड़ों पर कभी नहीं रहे। बावजूद इसके उनके उपन्यास ‘कसप’, ‘क्याप’, ‘हरिया हरक्यूलिस की हैरानी’ एवं अपनी अन्य कहानियों में पहाड़ी जीवन को उन्होंने जिस मनोहारी तरीके से चित्रित किया है, वह सचमुच लाजवाब कर देने वाला अनुभव है।बुराई पर विचार
मैक्सिको के महान कवि आक्तोवियो पाज़ इसके मुताल्लिक कहते थे, 'आधुनिकता की एक बड़ी समस्या यह रही है कि उसने बुराई पर विचार नहीं किया।' उपन्यास ‘हमजाद’ में जोशी ने यही ईमानदार कोशिश की है। मनोहर श्याम जोशी की साहित्यिक क्षमता का उजागर यूं तो उनके उपन्यासों में प्रखरता से हुआ है, लेकिन उनकी लिखी कहानियां भी कम चर्चित नहीं हैं। ‘मंदिर के घाट की पौड़ियां’ और ‘कैसे किस्सागोई’ उनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं। आकाशवाणी पर लिये गये उनके साक्षात्कार भी खासे चर्चित रहे। ये सभी साक्षात्कार किताब ‘बातों-बातों में’ में संकलित है।
उत्तर आधुनिकता
हिन्दी साहित्य में उत्तर आधुनिकता, जादुई यथार्थवाद की बहस का पर्दाफाश करते हुए जोशी कहते थे, 'जब हिन्दी में सही मायने में आधुनिकता और यथार्थवाद ही नहीं आया, तो उत्तर आधुनिकता और जादुई यथार्थवाद कैसे आ सकता है?' इस मामले में उनका मानना था कि हिन्दी में आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद ही आया है। मनोहर श्याम जोशी के उपन्यासों में उत्तर आधुनिकता और जादुई यथार्थवाद का प्रतिबिंबन देखा जा सकता है।उनका उपन्यास ‘कुरु कुरु स्वाहा’ पारंपरिक याथार्थवाद के चौखटे से बाहर निकलता है। यह उपन्यास समय के दवाब में आधुनिक व्यक्ति के विघटन को बहुत बारीकी से व्यक्त करता है। यातना की निरंतरता में सामंती संस्कार टूटते हैं और मनुष्य नाना संघर्षों से गुजरता हुआ प्रकट होता है।
अपनी राय बतायें