loader

बंगाल में गठबंधन नहीं होने से क्या बीजेपी को होगा फ़ायदा?

पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा ने लोकसभा चुनाव के लिए 38 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी और इसके साथ ही कांग्रेस के साथ किसी तरह के गठबंधन की संभावनाएँ भी ख़त्म हो गईं। किसी समय राज्य में सत्तारूढ़ रहा वाम मोर्चा और मुख्य विपक्ष की भूमिका में रही कांग्रेस आज राजनीति के हाशिए पर हैं। वाम मोर्चा में शामिल सभी पार्टियों के अलावा पश्चिम बंगाल कांग्रेस भी अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही हैं। इसके बावजूद वे आपसी मतभेद भुलाने में नाकाम रही हैं। सवाल है कि इसका फ़ायदा किसे मिलेगा और चुनाव बाद के समीकरण में उनकी क्या भूमिका रहेगी?
वाम मोर्चा ने शनिवार को उम्मीदवारों की तीसरी और अंतिम सूची जारी कर दी और इसके साथ ही इसके घोषित उम्मीदवारों की तादाद 38 हो गई। वामपंथी दलों के इस गठबंधन ने पहले ही कहा था कि वह उन चार सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी, जहाँ 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे थे। ये चार सीटें हैं जंगीपुर, बहरमपुर, मालदह उत्तर और मालदह दक्षिण। इस तरह राज्य की 42 सीटों पर वाम मोर्चा की स्थिति बिल्कुल साफ़ हो चुकी है। 
सम्बंधित खबरें

वाम ने छोड़ी चार सीटें, कांग्रेस ने पाँँच

तमतमाए हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सोमेंद्र नाथ मित्र ने कह दिया कि उनकी पार्टी सभी 42 सीटोें पर चुनाव लड़ेगी। पर कांग्रेस पार्टी ने कह रखा है और समझा जाता है कि वह अपने कहे पर अमल करेगी कि वह पाँच सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करेगी और ये सीटें वाम मोर्चा के लिए छोड़ देंगी। ये सीटें हैं, डायमंड हार्बर, आसनसोल, तमलुक, बोलपुर और विष्णुपुर।  भारतीय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने तुनक कर कहा कि इन सीटों पर कांग्रेस का जनाधार ही नहीं है तो वह चुनाव क्या लड़ेगी। अंत में चुनाव समीकरण यह उभरा कि वाम मोर्चा चार और कांग्रेस पाँच सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेंगी और बाक़ी सभी सीटों पर चौतरफ़ा मुक़ाबला होगा। सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस, वाम मोर्चा, कांग्रेस और बीजेपी के बीच चारकोणा मुक़ाबला अब तय है। 
ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि वाम मोर्चा और कांग्रेस के कार्यकर्ता एक साथ रह कर, कंधे से कंधा मिला कर चुनाव लड़ ही नहीं सकते, राज्य और शीर्ष स्तर पर नेता चाहे जो फ़ैसला कर लें।
कांग्रेस और वाम दलों के बीच जो सैद्धांतिक मतभेद रहे हैं और कार्यकर्ताओं के बीच तक़रीबन 40 साल से जो ख़ूनी संघर्ष चलता रहा है, वह सिर्फ़ सांप्रदायिकता से लड़ने के नाम पर या बीजेपी को रोकने के नाम पर ख़त्म नहीं हो सकता।
इन दलों के कार्यकर्ता और स्थानीय नेता ज़्यादा से ज़्यादा यह कर सकते हैं कि एक तरह का युद्धविराम मान कर चलें, एक-दूसरे पर चोट न करें। इससे ज़्यादा की उम्मीद करना कोरा आदर्शवाद हो सकता है, वास्तविक राजनीति नहीं। 
राज्य विधानसभा के लिए 2016 में हुए चुनाव से यह साफ़ हो गया कि वाम मोर्चा-कांग्रेस मिल कर चुनाव लड़ने के विचार को आम जनता या इन पार्टियों के समर्थक मन से स्वीकार नहीं करेंगे, कैडरों के स्वीकार करने की बात तो दूर है। राज्य की 294 सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस को 44 और वाम मोर्चा को 32 सीटें मिली थीं। वाम मोर्चा के घटक दलों में सीपीएम ने 26, फ़ॉरवर्ड ब्लॉक 2, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी 3 और सीपाआई ने 1 सीट पर जीत हासिल की थी। तृणमूल कांग्रेस ने 44.9 प्रतिशत वोट हासिल कर 211 सीटें जीती थीं। दूसरी ओर वाम मोर्चा के सभी घटक दलों को कुल मिला कर 16.3 प्रतिशत और कांग्रेस को 19.8 प्रतिशत वोट मिले थे। यानी कांग्रेस और वाम मोर्चा को लगभग 36 प्रतिशत वोट मिले, पर सीटें सिर्फ़ 76 ही मिलीं।
No Congress-Left alliance in West Bengal, BJP to gain - Satya Hindi

बीजेपी का उभार?

इस बार के लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन नहीं होने की स्थिति में कम से कम 37 सीटों पर वाम मोर्चा और कांग्रेस के उम्मीदवार एक-दूसरे के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ेंगे। इनमें से ज़्यादातर जगहों पर उनका सीधा मुक़ाबला तृणमूल कांग्रेस से होगा। पर इस लड़ाई का सबसे ज़्यादा फ़ायदा भारतीय जनता पार्टी को होगा। पश्चिम बंगाल की राजनीति में चार-पाँच साल पहले तक बिल्कुल हाशिए पर खड़ी बीजेपी के लिए यह सुनहरा मौक़ा है, क्योंकि एंंटी-इनकंबेन्सी फ़ैक्टर की वजह से सरकार विरोधी वोटों का एक बड़ा हिस्सा इसकी ओर मुड़ सकता है। 
इसकी वजह यह है कि बीते पाँच साल में वाम मोर्चा और कांग्रेस ने तेज़ी से अपनी ज़मीन खोई हैं। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस का जनाधार एक ही रहा है। ममता बनर्जी कांग्रेस की तेज़ तर्रार नेता थीं, वह तीन बार केंद्रीय मंत्री बनीं। नरसिम्हा राव सरकार में युवा व खेलकूद मामलों की राज्य मंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकार में रेल मंत्री थीं। अपनी कार्यशैली और व्यक्तिगत महात्वाकांक्षाओं की वजह से उन्होंने कांग्रेस तोड़ कर अलग पार्टी बनाई। उनके जूझारू नेतृत्व की वजह से कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं का बड़ा हिस्सा धीरे-धीरे टूट कर उनकी ओर गया और उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस में टूटफूट और तेज़ हुई। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस भरभरा कर गिर पड़ी। 
वाम मोर्चा जब सरकार में नहीं रही तो इसके साथ मध्यवर्ग भी नहीं रहा। वाम मोर्चा के 34 साल के शासनकाल में कृषि सुधारों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मज़बूत होने की वजह से जो बड़ा मध्यवर्ग पश्चिम बंगाल में उभरा था, वह वाम मोर्चा के सरकार में नहीं रहने से तृणमूल कांग्रेस में जा मिला।
आर्थिक सुधारों की वजह से ट्रेड यूनियन आन्दोलन कमज़ोर हुआ तो वाम मोेर्चा का दुर्ग ढह गया। वामपंथी दलों ने समय के साथ अपनी नीतियों को लचीला नहीं किया, अपने आप को नहीं बदला और अपने लिए नई भूमिका नहीं तलाशी। चुनाव हारने के बाद वाम मोर्चा अच्छा विपक्ष भी साबित नहीं हुआ, उसने कोई बड़ा आन्दोलन खड़ा नहीं किया, किसी मुद्दे पर राज्य की जनता को अपने साथ नहीं जोड़ा। नतीजा यह हुआ कि उसका जनाधार छीजता गया। 
यह इत्तिफ़ाक़ नहीं है कि लगभग उसी समय देश में उग्र हिन्दुत्व और उग्र राष्ट्रीयता पर आधारित राजनीति फली-फूली। लोगों की समस्याओं को सुलझा कर वोट पाने की जगह लोगों की भावनाओं को भड़का कर वोट पानी की राजनीति ने पश्चिम बंगाल में भी दस्तक दी।
वाम मोर्चा के शासनकाल में दबाई गई सांप्रदायिकता सुलगने लगी। ख़ुद को सीपीएम से अधिक अल्पसंख्यक-हितैषी दिखाने की ममता बनर्जी की रणनीति ने इसे हवा दी। इससे विपक्ष की खाली पड़ी ज़मीन को हथियाने में बीजेपी को मदद मिली। नतीजा सामने है। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में बीजेपी को सिर्फ 6.5 प्रतिशत वोट मिले थे,जो 2014 में बढ़ कर 16 प्रतिशत हो गए। हालाँकि 2016 के चुनावों में उसका वोट प्रतिशत गिर कर 10.2 पर आ गया। लेकिन इसके बाद यह फिर बढ़ा और पंचायत चुनाव में उसकी स्थिति में काफी सुधार हुआ। 
No Congress-Left alliance in West Bengal, BJP to gain - Satya Hindi
पश्चिम बंगाल में 31 प्रतिशत मुसलिम मतदाता हैं।

बीजेपी बनी पार्टी नंबर दो

पश्चिम बंगाल में बीते साल हुए पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 5,5000 से अधिक सीटों पर जीत हासिल कीं जबकि सीपीएम लगभग 1,400 सीटों पर सिमट गई। बीजेपी को हर ज़िले में कुछ न कुछ पंचायत सीटें ज़रूर मिलीं। उसके उम्मीदवार हज़ारों सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे। उसने वाम मोर्चा को धेकल कर तीसरे नंबर पर पहुँचा दिया और राज्य में दूसरे नंबर की पार्टी बन गई। राज्य विधानसभा में अभी भी बीजेपी के 3 सदस्य ही हैं, पर वह ज़मीनी स्तर पर राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। 
पश्चिम बंगाल के उत्तरी इलाक़ों में कम से कम 10-12 सीटें हैं, जहाँ सरकार विरोधी वोटों का बड़ा हिस्सा वाम मोर्चा या कांग्रेस नहीं, बीजेपी को पड़ने की संभावना है। बांग्लादेश से सटे इलाक़ों में नगारिकता क़ानून का फ़ायदा उसे मिलेगा, क्योंकि इन इलाक़ों में बांग्लादेश से भाग कर आए हिन्दुओं की बड़ी आबादी है। वे भले ही किसी तरह के भेदभाव या सांप्रदाकियता की वजह से नहीं बल्कि आर्थिक कारणों से भारत आए हों, बेहतर भविष्य की उम्मीद में आए हों, लेकिन नागरिकता क़ानून उन्हें अपील करेगा और वे इससे प्रभावित होकर वोट करेंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। कहने का यह अर्थ नहीं कि बीजेपी ये सीटें जीत जाएगी, पर इन जगहों पर उसे काफ़ी वोट मिलेंगे। कम से कम 8-10 सीटें हैं, जहाँ वह तृणमूल, कांग्रेस या वाम मोर्चा को कड़ी टक्कर दे सकती है। ये सीटें अलीपुर दुआर, कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, मालदह उत्तर, दार्जिलिंग, आसनसोल, विष्णुपुर, रायगंज और बालुरघाट हैं। 
बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने पश्चिम बंगाल को लेकर काफ़ी आक्रामक रणनीति बना रखी है। उसने कांग्रेस और वाम मोर्चा छोड़ कर आए लोगों को तरजीह दी है। उसकी रणनीति है कि जो उम्मीदवार जीत सकेगा, उसे टिकट दिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और योगी आदित्यनाथ पश्चिम बंगाल मे रैलियों में बोलेंगे। केंद्रीय मंत्री और लोकप्रिय गायक बाबुल सुप्रियो ख़ुद चुनाव लड़ रहे हैं। राज्य की राजनीति में 10 साल पहले तक अछूत समझी जाने वाली बीजेपी इस बार वहाँ ताल ठोक रही है। ऐसे में ख़ुद हाशिए पर खड़ी और अपने-अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही सीपीएम और कांग्रेस एक-दूसरे के ख़िलाफ़ तलवारें खींचे खड़ी हैं।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

चुनाव 2019 से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें