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प्रियंका लड़ेंगी लोकसभा चुनाव!

कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से सोनिया गाँधी राजनीतिक रूप से ज़्यादा सक्रिय नहीं हैं। अब तक वह किसी चुनाव अभियान में शामिल नहीं हैं। लंबे समय से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है। ऐसे में माँ की सीट बेटी प्रियंका को मिल जाए इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा।
शैलेश
क्या प्रियंका गाँधी लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी? अमेठी में उनके एक बयान के बाद इस पर अटकलें तेज़ हो गईं हैं। प्रियंका ने कहा कि अगर पार्टी चाहेगी तो वह चुनाव लड़ सकती हैं। उनके इस बयान को उनके चुनाव मैदान में उतरने का संकेत माना जा रहा है। दिल्ली में यह भी ख़बर है कि ख़राब स्वास्थ्य के कारण कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी चुनाव नहीं लड़ सकती हैं और उनकी जगह राय बरेली से प्रियंका गाँधी मैदान में उतर सकती हैं। यानी परिवार की यह सीट परिवार में ही रह जाएगी ।
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने प्रिंयका के चुनाव लड़ने पर कोई राय नहीं दी है। लेकिन पार्टी का महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने के बाद प्रियंका के चुनाव अभियान में लोगों की जमघट जिस तरह सामने आ रही है। उससे इतना साफ़ है कि प्रियंका को लेकर ख़ास तरह की उत्सुकता है।
प्रियंका अपने अनोखे स्टाइल में लोगों के बीच जा रही हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने इलाहाबाद से वाराणसी तक गंगा यात्रा कर की। नाव से की गई इस यात्रा में गंगा के तटीय इलाकों में वह लोगों से मिलीं और उनकी बुनियादी ज़रूरतें समझने की कोशिश की।
दूसरी यात्रा में वह सड़क से होकर वह अपने भाई के चुनाव क्षेत्र अमेठी और आस-पास के इलाकों में घूम रही हैं। प्रियंका कोई बड़ी जनसभा नहीं कर रही हैं। वह सड़कों से चलती हैं। रास्ते में आम लोगों और अपने कार्यकर्ताओं से मिलती हैं। जिन रास्तों से वह गुज़रती हैं, उनके आस पास के गाँव के लोग उनकी सभाओं या रोड शो में जुटते हैं। अभी यह बताना संभव नहीं है कि लोग महज उत्सुकता से उन्हें देखने आते हैं या फिर उनके लिए राजनीतिक समर्थन बढ़ रहा है।
लोगों में उनके प्रति एक ख़ास आकर्षण दिखाई दे रहा है। यह आकर्षण उनके व्यक्तित्व के कारण हो सकता है, पूर्व मुख्यमंत्री इंदिरा गाँधी की पोती होने के कारण हो सकता है या फिर महज एक महिला होने के कारण भी हो सकता है। लेकिन उनकी यात्राओं से यह तो साफ़ हो रहा है कि मतदाताओं को लुभाने की क्षमता उनमें है। कांग्रेस उसका फ़ायदा उठाने की कोशिश कर सकती है।
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माँ की जगह बेटी!

पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से सोनिया गाँधी राजनीतिक रूप से ज़्यादा सक्रिय नहीं हैं। अब तक वह किसी चुनाव अभियान में शामिल नहीं हैं। लंबे समय से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है। ऐसे में माँ की सीट बेटी को मिल जाए इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा।
प्रियंका के लिए सबसे ज़्यादा सुरक्षित सीट राय बरेली ही हो सकती है। यह सीट गाँधी परिवार के पास लंबे समय से रही है।
1999,2004, 2009 और 2014 में सोनिया गाँधी यहाँ से जीत चुकी हैं। 1967 और 1971 का चुनाव इंदिरा गाँधी ने इसी सीट से जीता था। लेकिन इमरजेंसी के बाद 1977 में इंदिरा गाँधी इसी सीट पर आश्चर्यजनक रूप से हार गई थीं। उन्हें समाजवादी नेता राजनारायण ने हराया था। 1980 में इंदिरा गांधी को फिर यहाँ जीत मिली लेकिन उन्होंने अपनी यह सीट छोड़ दी और दक्षिण से संसद का प्रतिनिधित्व करती रहीं। बाद में इंदिरा-नेहरू परिवार से सम्बंधित शीला कौल और पारिवारिक मित्र सतीश शर्मा यहाँ से जीतते रहे। 1996 और 1998 के चुनावों में बीजेपी के अशोक सिंह यहाँ से जीते तब सोनिया गाँधी और उनका परिवार राजनीति से बाहर था। राजनीति में आने के बाद सोनिया इस क्षेत्र से जीतती रहीं।

प्रियंका जुड़ी हैं मतदाताओं से

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने कांग्रेस को अपने गठबंधन में शामिल नहीं किया लेकिन अमेठी और राय बरेली को कांग्रेस के लिए छोड़ दिया है। प्रियंका गाँधी इन दोनों सीटों पर चुनाव प्रचार में लंबे समय से सक्रिय हैं। 2014 के चुनावों में दोनों क्षेत्रों की कमान उनके हाथों में थी। इसलिए वह इस क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ताओं और काफ़ी हद तक आम मतदाताओं से अच्छी तरह परिचित हैं। ऐसे में सोनिया गाँधी अगर चुनाव नहीं लड़ने का फै़सला करती हैं तो प्रियंका गाँधी एक स्वाभाविक उम्मीदवार होंगी।
2014 में सोनिया गाँधी को यहाँ क़रीब सवा पाँच लाख और बीजेपी उम्मीदवार को को पौने दो लाख वोट मिले थे। बीएसपी का रिकॉर्ड भी कोई अच्छा नहीं था। प्रियंका की राजनीतिक कार्यशैली लोक लुभावन है। उनका हंस-मुख चेहरा, इंदिरा गाँधी जैसा डील-डौल  और अंदाज़ भी आकर्षित करता है। लेकिन उनके चुनाव मैदान में उतरने से बीजेपी को परिवारवाद का अपना हथियार और तेज़ करने का मौक़ा मिल जाएगा।
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सोनिया लड़ें या प्रियंका सीट तो इस परिवार के पास ही रहने की उम्मीद है। लेकिन बीजेपी इन दिनों सोनिया से ज़्यादा आक्रामक राहुल और प्रियंका को लेकर है। प्रियंका के पति रॉबर्ट बाड्रा पर लंबे समय से कई आरोप लगाए जाते रहे हैं। हरियाणा और राजस्थान में ज़मीन घोटाले के आरोप भी रहे हैं। परन्तु ताज्जुब की बात है कि राजस्थान में 5 साल और हरियाणा में करीब साढ़े चार साल से सरकार में रहने के बावजूद बीजेपी एक भी आरोप साबित नहीं कर पाई। अब यह लगने लगा है कि बीजेपी इन आरोपों का सिर्फ़ राजनीतिक इस्तेमाल करना चाहती है। ख़ास बात यह है कि रॉबर्ट बाड्रा पर तो आरोप लगे लेकिन प्रियंका गाँधी पर कोई आरोप नहीं लगा है।

राहुल ने जीता विश्वास

प्रियंका में एक राजनीतिक परिपक्वता लगातार दिखायी देती है। और इसलिए जब 2014 के लोकसभा और बाद में कई विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार हुई तो कांग्रेसियों के वर्ग ने राहुल की जगह प्रियंका को पार्टी की कमान सौंपने की माँग शुरू कर दी। बहरहाल यह मुद्दा अब ख़त्म हो चुका है।
पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद राहुल गाँधी पर पार्टी का भरोसा वापस लौट चुका है। कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता से बाहर करके राहुल ने अपनी राजनीतिक समझ को भी साबित किया।

राहुल-प्रियंका के सामने चुनौती

प्रियंका गाँधी घोषित तौर पर राहुल को अपना नेता बताती रही हैं, इसलिए परिवार में राजनीतिक विवाद की चर्चाएँ भी थमती जा रही हैं। आज़ादी के बाद लंबे समय तक पूर्वी उत्तर प्रदेश कांग्रेस का अजेय गढ़ बना रहा था। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के उदय के बाद इस क्षेत्र में कांग्रेस को बड़ी चुनौती मिली। कांग्रेस के जनाधार का एक बड़ा हिस्सा भी बीजेपी की तरफ़ खिसक गया। कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी की तरफ़ खिसक चुके अपने जनाधार को वापस लौटाना है।
प्रियंका गाँधी की राजनीतिक शैली को इस दिशा में एक पहल माना जा सकता है। लेकिन एक बड़ी चुनौती यह भी है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति पूरी तरह से जातियों में विभाजित हो चुकी है। ज़मीन पर साफ़ दिखाई देता है कि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और यहाँ तक कि बीजेपी भी ख़ास जातीय आधार पर बँटे हुए हैं। कांग्रेस को उसके बीच से अपनी शक्ति वापस लेनी है। प्रियंका और कांग्रेस दोनों के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती है।
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