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प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी मिसाइल

देश की उपलब्धियों को व्यक्तिगत उपलब्धियों में बदलने की कला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई मुक़ाबला नहीं है। अंतरिक्ष में क़रीब 300 किलोमीटर दूर सैटेलाइट को मार गिराने वाले हथियार की सफलता की घोषणा करके मोदी ने यही साबित किया है। अंतरिक्ष में सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता हासिल करना निश्चित ही एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि है। भारत इस तरह की क्षमता वाला चौथा देश बन गया है। चीन ने यह क्षमता 2007-2008 में ही विकसित कर ली थी। भारत में लगभग उसी समय से ही काम शुरू हो गया था । 2011 में ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (डीआरडीओ) ने यह तकनीक विकसित कर लेने की घोषणा कर दी थी।
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राष्ट्र के नाम संबोधन क्यों?

प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा में नया यह है कि इस मिसाइल ने आज एक सैटेलाइट को अंतरिक्ष में उड़ा देने का एक सफल प्रयोग किया। सवाल यह है कि प्रधानमंत्री को राष्ट्र के नाम संबोधन में यह घोषणा करने की क्या आवश्यकता थी? ख़ासकर जब लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह चुनाव के दौरान तटस्थता बरते।
सैटेलाइट को उड़ा देने वाले मिसाइल कार्यक्रम को मोदी की सरकार ने शुरू नहीं किया। उसकी शुरुआत तो 2007 में हो चुकी थी। जब कांग्रेस की सरकार थी।
लंबे दौर के राष्ट्रीय कार्यक्रमों को किसी एक सरकार की उपलब्धि नहीं माना जा सकता। सैटेलाइट के क्षेत्र में भारत की क्षमता कई विकसित देशों से बेहतर है। उसकी नींव 60 के दशक में ही रखी जा चुकी थी।

मोदी थपथपाएँ अपनी पीठ!

यह कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं है जिसका सेहरा प्रधानमंत्री मोदी के सिर पर बाँधा जा सकता था। मोदी जी को अपनी पीठ थपथपानी है तो नोटबंदी पर थपथपा सकते हैं। नोटबंदी शुद्ध रूप से प्रधानमंत्री मोदी का कार्यक्रम है। उससे फ़ायदा नुकसान की चर्चा करें तो उसमें मोदी सरकार का ज़िक्र ज़रूर आएगा। चुनाव के समय बीजेपी और मोदी को उसके फ़ायदों को बताने का पूरा अधिकार है।
देश में एक समान टैक्स यानी जीएसटी की पहल पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ज़माने में हुई। तब वह बीजेपी और कुछ अन्य पार्टियों के विरोध के कारण लागू नहीं हो सका। प्रधानमंत्री मोदी ने कई बदलाव के बाद उसे लागू किया। बदलाव इतने ज़्यादा हुए कि अब कांग्रेस उसे अपना मानने को तैयार नहीं है। चुनाव की इस बेला में मोदी सरकार और बीजेपी चाहे तो जीएसटी का पूरा श्रेय ले सकती है और जनता के बीच इस पर बहस कर सकती है।
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प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान को बड़े प्रोग्राम की तरह चलाया। देश भर में शौचालयों के निर्माण के दावे किए गए। वैसे तो यह प्रोग्राम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय शुरू हुआ था। लेकिन तब उसका शोर उतना नहीं मचाया गया जितना मोदी की सरकार ने किया। फिर भी उसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को।वैसे ही ग़रीबों को रसोई गैस देने की ‘उज्ज्वला’ योजना भी प्रधानमंत्री की देन है। ऐसे बहुत सारे कार्यक्रम हैं जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में की गई। उसके जो भी नतीजे हैं उसकी ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री मोदी की है।
सरकारी बैंको से अरबों रुपये क़र्ज़ लेकर विदेश भाग जाने वाले विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहूल चोकसी या ललित मोदी पर जो भी कार्रवाई हो रही है उसका श्रेय भी इस सरकार को है।

ध्यान हटाने की कोशिश

पिछले पाँच सालों में जो काम शुद्ध रूप से मोदी सरकार ने किए उनकी तरफ़ से ध्यान हटाने की ज़बरदस्त कोशिश की जा रही है। आख़िरकार मोदी सरकार अपनी ख़ास उपलब्धियों पर बहस क्यों नहीं चाहती? क्या कारण है कि चुनाव का एजेंडा बदलने की लगातार कोशिश की जा रही है। क़रीब डेढ़ महीने पहले पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद बालाकोट में वायु सेना की कार्रवाई को मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि बताकर चुनाव में सहानुभूति की कोशिश की जा रही है।
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यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज़ादी के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थितियाँ बनी हुई हैं। भारतीय सेना ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान को पराजित किया, 1971 के युद्ध में तो पूर्वी पाकिस्तान का वजूद मिट गया और बांग्लादेश का जन्म हुआ। उसके बाद से ही पाकिस्तान कभी भारत के साथ खुले युद्ध के लिए आगे नहीं आया। लेकिन कश्मीर की सीमा पर गोलाबारी कभी ख़त्म नहीं हुई। 1990 के आस पास से कश्मीर के भीतर आतंकवादी कार्रवाईयों के जरिए पाकिस्तान एक अघोषित युद्ध लड़ रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में पाकिस्तानी सेना कश्मीर से कारगिल तक घुस आई थी। उसे भारतीय सेना ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की मदद से खाली करवाया। भारतीय सेना की बहादुरी हर बार साबित होती रही है लेकिन राजनीतिक विफलताओं के चलते कश्मीर की आंतरिक स्थिति अब तक ठीक नहीं हो पाई है।

सेना का काम मोदी के नाम

मोदी राज में भी ऐसी कोई ठोस राजनीतिक पहल सामने नहीं आई जिसके जरिए कश्मीर में आतंकवाद को काबू किया जा सके। भारतीय सेना की जांबाजी अलग है और राजनीतिक पहल अलग। लेकिन बालाकोट में भारतीय सेना की कार्रवाई के बाद से सेना की वीरता को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहादुरी बनाने की कोशिश चल रही है।
बालाकोट के जरिए बीजेपी ने राष्ट्र गौरव को लोकसभा चुनाव 2019 का सबसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की। पर यह मुद्दा चल नहीं पा रहा है। रोज़गार, किसानों की स्थिति और विकास के सवाल फिर खड़े होने लगे हैं।
5 करोड़ ग़रीब परिवारों को हर महीने 6000 रुपये तक देने की घोषणा करके कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने चुनावी बहस को शुद्ध रूप से आर्थिक बना दिया है। सैटेलाइट मारने वाले मिसाइल की सफलता की घोषणा करके प्रधानमंत्री शायद फिर से राष्ट्रवाद को चुनाव के केंद्र में लाना चाहते हैं।
इस चुनाव में बीजेपी 2014 से ज़्यादा संगठित है। उसके पास साधन भी ज़्यादा हैं। ग़ैर बीजेपी पार्टियाँ 2014 की तरह बिखरी हुई तो नहीं हैं लेकिन उनका कोई राष्ट्रीय मंच भी नहीं बन पाया है। फिर भी बीजेपी में घबराहट दिखाई दे रही है। प्रधानमंत्री की ताज़ा घोषणा से चुनाव में उठ रहे आर्थिक सवाल दब जाएँगे, ऐसा लग नहीं रहा है। इसलिए प्रधानमंत्री पद और सरकार की मर्यादा और राजधर्म इस वक़्त यही है कि वह सेना या दूसरे राष्ट्रीय संस्थाओं की उपलब्धियों को छोड़कर आम आदमी के मुद्दों पर बहस करें।
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शैलेश

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