पंजाब के कई मौजूदा सांसद इस बार चुनाव में बाग़ी हो गए हैं, जिससे प्रदेश की सियासत में बड़ा बदलाव आ गया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने वाले सांसद इस बार उस दल में नहीं हैं, जिसके बल पर उन्होंने पिछला चुनाव जीता था। यही वजह है कि मौजूदा चुनावों में न तो आम आदमी पार्टी को लोगों का वह समर्थन मिल रहा है और न ही शिरोमणि अकाली दल का वह दबदबा दिखाई दे रहा है। बाग़ी दोनों ही दलों का खेल बिगाड़ रहे हैं जिससे चुनाव काफ़ी रोचक हो गया है।
पंजाब माझा, मालवा व दोआबा क्षेत्र में बँटा है। इनमें कांग्रेस, अकाली दल और आप का प्रभाव है। पिछली बार आम आदमी पार्टी (आप) और अकाली दल को यहाँ अच्छा ख़ासा समर्थन हासिल हुआ था। लेकिन इस बार हालात बदले हुए नज़र आ रहे हैं। पटियाला से आम आदमी पार्टी के सांसद धर्मवीर गाँधी ‘आप’ से बगावत कर ‘पंजाब मंच’ बना चुके हैं। उनके इस नए राजनीतिक संगठन ने पंजाब डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीए) का दामन थाम लिया है, जिसमें छह अन्य छोटे दल भी शामिल हैं।
पटियाला सीट से पीडीए ने गाँधी को उम्मीदवार बनाया है। पटियाला के प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ गाँधी और फ़तेहगढ़ साहिब से 'आप' सांसद हरिंदर सिंह ख़ालसा को मई 2015 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निलंबित कर दिया गया था। दोनों अबतक निलंबित चल रहे हैं। हरिंदर सिंह ख़ालसा अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं।
'आप' के बाग़ी नेता सुखपाल सिंह खैहरा इस बार बठिंडा से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। जिससे हरसिमरत कौर बादल का खेल यहाँ बिगड़ सकता है, वह दवाब के चलते अपना हलका भी बदल सकती हैं।
फिरोजपुर लोकसभा सीट से शिरोमणि अकाली दल के मौजूदा सांसद शेर सिंह घुबाया पिछले तीन सालों से पार्टी नेतृत्व की आलोचना कर रहे हैं। वह इस महीने की शुरुआत में औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। उनके बेटे राज्य में कांग्रेस के मौजूदा विधायक हैं। इसके अलावा खडूर साहिब सीट से मौजूदा सांसद और वरिष्ठ शिअद नेता रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए नवंबर में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। उन्होंने और एक अन्य वरिष्ठ अकाली नेता रतन सिंह अजनाला व सेवा सिंह सेखवान ने शिरोमणि अकाली दल (टकसाली) नामक नई पार्टी बना ली है।
कांग्रेस की नज़र बड़ी जीत पर
पंजाब में फिलहाल सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस है। पिछले विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस की नज़र लोकसभा चुनाव 2019 में भी बड़ी जीत हासिल करने पर है। वहीं, दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब में अकाली दल के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने का फ़ैसला किया है।
पिछले लोकसभा चुनाव के आधार पर ही बीजेपी और अकाली दल के बीच इस बार सीटों के बँटवारे पर सहमति बन गई है। पंजाब की 13 लोकसभा सीटों में से अकाली दल 10 और बीजेपी 3 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
2014 के लोकसभा चुनाव में भी पंजाब में अकाली दल ने 10 और बीजेपी ने 3 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जिसमें अकाली दल को 4 सीटें और बीजेपी को 2 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन बाद में गुरदासपुर लोकसभा सीट पर विनोद खन्ना के निधन के चलते हुए उपचुनाव में कांग्रेस जीती थी।
इस तरह से मौजूदा समय में बीजेपी के पास एक ही सांसद है। अरविंद केजरीवाल की 'आप' भी मैदान में है।
हरियाणा में भी यही हालात
इसी तरह पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनी हुई है। कुरुक्षेत्र से बीजेपी के सांसद राज कुमार सैनी न केवल बीते चार वर्षों से पार्टी के केंद्र व राज्य नेतृत्व के आलोचक रहे हैं बल्कि उन्होंने लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (लोसपा) भी बना ली है।
हिसार से युवा सांसद दुष्यंत चौटाला ने भी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) नामक नई पार्टी बनाई है। वह 2014 में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से निर्वाचित हुए थे। सिरसा लोकसभा सीट से मौजूदा इनेलो सांसद चरणजीत सिंह रोड़ी ने जेजेपी में शामिल होने संबंधित टिप्पणी कर पिछले महीने विवाद को हवा दे दी थी। हालाँकि वह वापस इनेलो के खेमे में ही आ गए।
हरियाणा में बीजेपी के कम से कम चार मौजूदा सांसद अश्विनी कुमार (करनाल), धर्मबीर सिंह (भिवानी-महेंद्रगढ़), रतन लाल कटारिया (अंबाला) और राव इंद्रजीत सिंह (गुरुग्राम) ने अतीत में बीजेपी नेतृत्व और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार के ख़िलाफ़ बोला था। हालाँकि वे खुलकर बगावत में सामने नहीं आए थे। दोनों राज्यों में पार्टियाँ इन सीटों पर नए उम्मीदवार उतार सकती हैं।
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