महाराष्ट्र के 16 हज़ार से ज्यादा किसानों ने भले ही आत्महत्या कर ली हो, पिछले भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के मंत्रियों के पिछले पांच साल बहुत मजे के रहे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र में चुनाव रैलियों में जिस तरह सावरकर का नाम लिया और विपक्ष पर निशाना साधा, सवाल उठता है कि क्या बीजेपी सावरकर के बहाने वोटों का ध्रुवीकरण कर रही है?
एल्गार परिषद मामले में सीपीआई माओवादी से जुड़े होने के आरोप में गिरफ़्तार मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनों गोंजाल्विस को नहीं मिली ज़मानत।
चुनावों के लिए जो मुद्दे गढ़े जा रहे हैं उनसे जनता का कोई सरोकार है या नहीं? या वे जनता को उनके मूलभूत मुद्दों से भटकाकर उन्हें भावनात्मक स्थिति में ले जाने वाले हैं।
मोदी सरकार 1.0 में सबसे ज़्यादा किसी मंत्रालय के काम को सराहा गया था तो वह था नितिन गडकरी का जहाजरानी और भू-तल परिवहन मंत्रालय। लेकिन वही नितिन गडकरी महाराष्ट्र चुनाव में कहीं दिख क्यों नहीं रहे हैं?
वर्धा के महात्मा गाँधी अंतराराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के छह छात्रों को विश्वविद्यालय से सिर्फ़ इसलिए निष्कासित कर दिया गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी और सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया।
महाराष्ट्र में चुनाव हैं इसलिए यहाँ पर प्याज चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा है। किसान संगठनों ने प्रदेश में 'कांदा सत्याग्रह' शुरू कर दिया है। क्या चुनाव पर इसका असर पड़ेगा?
लोकसभा चुनाव के बाद जब एनसीपी प्रमुख शरद पवार और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी की बैठकें हुई थीं, तभी से कांग्रेस-एनसीपी के विलय की चर्चा ने जोर पकड़ा था।