साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से चुनाव मैदान में उतारना भारतीय जनता पार्टी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। पर इससे उसे महाराष्ट्र में लेने के देने पड़ सकते हैं।
मोदी बार-बार महाराष्ट्र क्यों आ रहे हैं और शरद पवार को ही निशाना क्यों बना रहे हैं, यह सवाल अब चर्चा का विषय बन गया है। क्या इनके बीच को व्यक्तिगत दुश्मनी है या अन्य कोई कारण?
पुणे के पास ईंट भट्ठे पर काम कर रह एक दलित मजदूर को थोड़ी देर आराम कर लेने पर मानव मल खाने पर मजबूर किया गया। इसका व्यापक विरोध होने पर अभियुक्त के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर उसे गिरफ़्तार कर लिया गया।
2014 के चुनाव में मतदाताओं ने एकतरफ़ा वोट डाले थे, लेकिन इस बार चुनाव में वह मोदी लहर दिखाई नहीं दे रही है। हालाँकि सर्वेक्षण बीजेपी-शिवसेना के पक्ष में आते दिख रहे हैं, परिस्थितियाँ बदली हैं। तो किस करवट बैठेगा ऊँट?
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दंभ भरने वाले हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी हैं इस बात का अंदाज़ा चुनाव पूर्व के दो महीनों में लगाया जा सकता है। दलों के बीच लड़ाई जाति-धर्म-कुल-गोत्र और क्षेत्र में उलझकर रह गई है।
क्या उत्तर प्रदेश के चक्कर में कांग्रेस महाराष्ट्र को भूल गई है? जबकि राहुल गाँधी महाराष्ट्र की राजनीति पर ध्यान देकर उत्तर प्रदेश से ज़्यादा फल हासिल कर सकते हैं।
मुंबई में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस वाला पुल गुरुवार को टूट गया और छह लोग मारे गये। हादसा-दर-हादसा, वही रिपोर्ट और वही जाँच के आदेश। परिणाम कुछ नहीं।
महाराष्ट्र के सियासी परिवारों में सत्ता का संघर्ष होता रहा है। ठाकरे और भोसले राजघराने के बाद अब शरद पवार के परिवार में सत्ता को लेकर कलह शुरू हो गई है।
क्या बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बाद भी पार्टी के शीर्ष नेताओं में अभी भी कोई कसक या गाँठ रह गयी है? एक दिन पहले ‘सामना’ में छपे संपादकीय को पढ़कर तो ऐसा ही लगता है।