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अभिनय की एक बड़ी रेखा थीं सुरेखा सीकरी 

सुरेखा सीकरी (1945-2021) घर-घर में पहचानी जाने वाली अभिनेत्री थीं और ऐसा हुआ धारावाहिक ‘बालिका वधू’, की वजह से जिसमें उन्होंने कल्याणी सिंह उर्फ दादी-सा का किरदार निभाया था। लगभग आठ साल तक कलर्स टीवी पर चले इस    सीरियल में उन्होंने एक खुर्राट उम्रदराज महिला का किरदार जिस अंदाज में निभाया उसने उनको हिंदी मनोरंजन उद्योग का एक धांसू व्यक्तित्व बना दिया। 

एक ऐसी खलनायिका जैसी शख्सियत जिसका रौब और दबदबा उस पारंपरिक सास की याद दिलाने वाला था जिसके नीचे बहुएं ठीक से सांस भी नहीं ले पाती थीं। 

हाल में आई फिल्म ‘बधाई हो’ में भी वो एक सास के ही रूप में थीं। लेकिन कुछ-कुछ बदली हुईं। फिल्म के शुरुआती हिस्से में ‘बालिका वधू’ की सास की तरह पर बाद के हिस्से में बहु को प्यार करनेवाली मां जैसी। हालांकि सुरेखा ने कई फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया पर ‘बालिका वधू’ और ‘बधाई हो’ की भूमिकाएं ही सबकी यादों में  बसी रहेंगी।

कम लोग जानते होंगे कि सुरेखा सीकरी मूलत: रंगमंच की अभिनेत्री थीं और ‘बालिका वधू’ या ‘बधाई हो’ जैसी भूमिकाएं वे नहीं कर पातीं अगर उन्होंने रंगमंच का विधिवत प्रशिक्षण नहीं लिया होता।

और संयोग देखिए कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से 1968 में अभिनय का प्रशिक्षण लेने के बाद वे कुछ समय के लिए अभिनय और रंगमंच- दोनों से दूर चली गई थीं। कारण था प्रेम और विवाह। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उनका परिचय, प्रेम और विवाह रवि सीकरी से हआ। उस समय तक वे सुरेखा वर्मा हुआ करती थीं। शादी के बाद सुरेखा सीकरी हो गईं। 

पढ़ाई पूरी करने के बाद वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल में भी नहीं गईं जैसा कि उस समय के कई अभिनेता और अभिनेत्रियां करती थीं। वे पूरी तरह एक गृहिणी बन गईं। पर विधि का विधान अजीब होता है। ओम शिवपुरी ने जब ‘दिशांतर’ नाम का ग्रुप बनाया तो इब्राहिम अल्काजी ने उनके लिए एक नाटक निर्देशित करने का प्रस्ताव दिया जिसे शिवपुरी ने स्वीकार कर लिया। 

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अल्काजी तब राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक थे। ‘दिशांतर’ के साथ मिलकर उन्होंने बादल सरकार का नाटक ‘तीसवीं शताब्दी’ ‘हीरोशिमा’ नाम से किया। बड़ी सफल प्रस्तुति हुई। उसके बाद अल्काजी कुछ समय के लिए बाहर चले गए और कुछ कलाकार भी दिल्ली में नहीं थे तो उस नाटक की पुनर्प्रस्तुतियों के लिए नए कलाकारों की खोज शुरू हुई। 

ओम शिवपुरी ने ये जिम्मेदारी राम गोपाल बजाज पर डाली जो ‘दिशांतर’ में काफी सक्रिय थे। (बजाज बाद में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक भी बने।) बजाज ने सुरेखा के घर जाकर फिर से नाटक की दुनिया में आने को कहा। 

अभिनय की दुनिया में लौटीं 

सुरेखा झिझक रही थीं। थोड़ा डर भी रही थीं कि इतने दिनों के बाद कैसे ये सब किया जाए। लेकिन रंगमंच का कीड़ा कुलबुला भी रहा था। इसलिए फिर से अभिनय करने आईं और आने के बाद इस दुनिया में ऐसी जमीं कि एक लीजेंड बन गईं। वक्त के साथ वो घर भी छोड़ दिया जिसमें वे गृहिणी के रूप में रम गई थीं। वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल से भी जुड़ गईं और लंबे समय तक जुड़ी रहीं।

‘जस्मा ओड़न’ से हुईं लोकप्रिय

1982 में जब अल्काजी ने फिर से गिरीश कार्नाड का लिखा ‘तुगलक’ किया तो सुरेखा उसमें सौतेली मां की भूमिका में थीं। ‘लुक बैक इन एंगर’, ‘चेरी का बागीचा’, जैसे अन्य बहुचर्चित नाटकों में भी उनकी यादगार भूमिकाएं रहीं। पर जिस नाटक में उनको विदेशों में भी लोकप्रिय बनाया वो था ‘जस्मा ओड़न’। 

शांता गांधी ने इसका निर्दशन किया था। हालांकि इसमें सुरेखा ने मुख्य भूमिका नहीं थी। वो इसमें मां की अपेक्षाकृत छोटे रोल में थीं। पर जर्मनी में जब इसका शो हुआ तो वहां की कई लड़कियां उनकी दीवानी हो गईं। 

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भारत में भी ‘जस्मा ओड़न’ के कई शो हुए और सुरेखा को सबसे ज्यादा तालियां मिलती रहीं। नवें दशक के उत्तरार्ध में जब उन्होंने दिल्ली रंगमंच को विदा कहा और मुंबई गईं तो उनका एक नया रूप आया। हालांकि ‘किस्सा कुर्सी का’ जैसी फिल्मों में वे काम कर चुकी थीं लेकिन भारत में टीवी सीरियलों का विस्फोट नवें दशक में हुआ। 

उसके बाद तो सुरेखा सीकरी (रवि सीकरी से शादी टूटने और हेमंत रेगे से दूसरी शादी करने के बाद भी वे सीकरी ही बनीं रहीं।) छोटे और बड़े पर्दे पर नई ऊर्जा के साथ अवतरित हुईं। उन्होंने लगभग तीस फिल्मों में काम किया जिसमें प्रमुख हैं- ‘सलीम लंगड़े पर मत रो’, ‘मम्मो’, ‘नसीम’, ‘सरदारी बेगम’, ‘हमको दीवाना कर गए’, ‘बधाई हो’, ‘गोस्ट स्टोरीज’ आदि। 

‘बालिका वधू’ के अलावा उन्होंने ‘एक था राजा एक थी रानी’, ‘सीआईडी’, ‘जस्ट मोहब्बत’ सहित लगभग पंद्रह धारावाहिकों में काम किया। 

फिल्मों और धारावाहिकों में काम करने के लिए सीकरी को कई सम्मान मिले जैसे ‘नेशनल फिल्म अवार्ड फॉर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टेस’, ‘फिल्म फेयर अवार्ड फॉर बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस’ आदि।

पर सुरेखा शायद तब सबसे ज्यादा खुश हुई होंगी जब रंगमंच में अवदान के लिए 1989 में संगीत नाटक अकादेमी का पुरस्कार मिला। पिछले लगभग तीन साल से वे काफी अस्वस्थ चल रही थीं। 2018 से ही वो लगभग निष्क्रिय थीं। 16 जुलाई को उनका निधन हो गया।

एक पूर्व वायु सेना अधिकारी की पुत्री सुरेखा (वर्मा) सीकरी का जीवन एक लंबे उपन्यास की तरह था। नसीरुद्दीन शाह ने पहली शादी सुरेखा की बड़ी सौतेली बहन से की थी जो उम्र में उनसे यानी नसीर से कई साल बड़ी थीं। इस रिश्ते से नसीर की बेटी हीबा शाह सुरेखा की भतीजी थीं। हीबा ने ‘बालिका वधू’ युवा दादी- सा की भूमिका निभाई थी।

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रवीन्द्र त्रिपाठी

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