20 दिसंबर को कांग्रेस के नेता श्री मोतीलाल वोरा का 93वाँ जन्म दिन था और 21 दिसंबर को उनका निधन हो गया। वे न तो कभी राष्ट्रपति बने और न ही प्रधानमंत्री लेकिन क्या बात है कि लगभग सभी राजनीतिक दलों ने उनके महाप्रयाण पर शोक व्यक्त किया? यह ठीक है कि वह देश या कांग्रेस के किसी बड़े (सर्वोच्च) पद पर कभी नहीं रहे लेकिन वह आदमी सचमुच बड़े थे। उनके- जैसे बड़े लोग आज की राजनीति में बहुत कम हैं। वोराजी जैसे लोग दुनिया के किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र में आदर्श नेता की तरह होते हैं।
वह अपनी पार्टी और विरोधी पार्टियों में भी समान रूप से सम्मानित और प्रिय थे। वह नगर निगम के पार्षद रहे, म.प्र. के राज्यमंत्री रहे, दो बार वहीं मुख्यमंत्री बने, उ.प्र. के राज्यपाल बने और चार बार राज्यसभा के सांसद रहे। कांग्रेस पार्टी के वह 18 वर्ष तक कोषाध्यक्ष भी रहे। असलियत तो यह कि ज़्यादातर नेताओं की तरह उनमें न तो अहंकार था और न ही पदलिप्सा। उन्हें जो मिल जाए, उसी में वह ख़ुश रहते थे। उनकी दीर्घायु और सर्वप्रियता का यही रहस्य है।
उनका-मेरा संबंध पिछले लगभग 60 वर्ष से चला आ रहा था। वह रायपुर में सक्रिय थे और मैं इंदौर में। मैं कभी किसी दल में नहीं रहा लेकिन वोराजी डॉ. राममनोहर लोहिया की संयुक्त समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता थे। मुझे जब अखिल भारतीय अंग्रेज़ी हटाओ सम्मेलन का मंत्री बनाया गया तो मैंने वोराजी को म.प्र. का प्रभारी बना दिया। जब मैंने नवभारत टाइम्स में काम शुरू किया तो उन्हें अपना रायपुर संवाददाता बना दिया।
वह इतने विनम्र और सहजसाधु थे कि जब भी मुझसे मिलने आते तो मेरे कमरे के बाहर चपरासी के स्टूल पर ही बैठ जाते थे।
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