केंद्र की एनडीए सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने की तैयारी कर ली है और गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में उससे जुड़ा सोमवार को प्रस्ताव पेश किया। कुछ विपक्षी दलों द्वारा उनके समर्थन की घोषणा से यह साफ़ हो गया है कि राज्यसभा और बाद में लोकसभा में इसे मंज़ूरी मिल जाएगी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या संसद को अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का अधिकार है?
अनुच्छेद 370 क्या है, इसपर अभी बात करने की आवश्यकता नहीं है। यह आप जानते ही होंगे और नहीं जानते तो यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं। हम बात करेंगे कि क्या अनुच्छेद 370 को समाप्त किया जा सकता है? और यदि हाँ तो कैसे? और नहीं तो क्यों?
अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की व्यवस्था अनुच्छेद 370 में ही है। उसके खंड 3 में लिखा हुआ है कि राष्ट्रपति इसे पूरी तरह निष्क्रिय या कुछ संशोधनों या अपवादों के साथ सक्रिय रहने की घोषणा कर सकता है लेकिन उसके लिए उसे (जम्मू-कश्मीर) की संविधान सभा की सहमति आवश्यक होगी।
लेकिन संविधान सभा तो अब है नहीं जो राष्ट्रपति को अपनी सहमति या असहमति दे। वह तो 1957 में राज्य का संविधान बनाकर भंग कर दी गई थी। इसीलिए कुछ संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि अनुच्छेद 370 अमर है और उसे समाप्त नहीं किया जा सकता। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय भी 2015 में ऐसा ही फ़ैसला दे चुका है और सुप्रीम कोर्ट भी एक अन्य मामले में 2018 में इसी तरह की टिप्पणी कर चुका है। लेकिन कुछ दूसरे संविधान विशेषज्ञों का मानना था कि चूँकि अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का ही एक अंग है और भारतीय संसद को उसे संशोधित करने का अधिकार है, इसलिए यह भारतीय संसद द्वारा हटाया जा सकता है।
अब देखते हैं कि सरकार ने क्या किया है। सरकार ने राष्ट्रपति द्वारा आज जारी एक नए आदेश के द्वारा अनुच्छेद 370 के खंड 3 में लिखे संविधान सभा शब्द का अर्थ बदल दिया है। अनुच्छेद 370 के खंड 1 के तहत राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह राज्य सरकार की सहमति से ऐसा आदेश जारी कर सकता है। अब चूँकि राज्य में कोई चुनी हुई सरकार तो है नहीं। इसलिए राज्यपाल की सहमति ही काफ़ी है। सो राज्यपाल की सहमति को ही राज्य की सहमति मानते हुए राष्ट्रपति ने आज की तारीख़ में यह आदेश जारी किया कि अनुच्छेद 370 के खंड 3 में लिखित ‘संविधान सभा’ को ‘राज्य विधानसभा’ कर दिया जाए।
लेकिन तब भी सवाल तो बाक़ी ही रहा कि संविधान सभा को राज्य विधानसभा में बदलने से फ़र्क क्या पड़ा? राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय घोषित करने के लिए राज्य विधानसभा की सहमति ज़रूरी होगी ही। क्या जम्मू-कश्मीर की विधानसभा कभी अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के लिए राज़ी होगी, क्या वह सहमति देगी?
नहीं। इसीलिए शायद सरकार ने उपाय यह किया है जिससे अनुच्छेद 370 फ़िलहाल पूरी तरह ख़त्म न हो। गृह मंत्री अमित शाह के अनुसार अनुच्छेद 370 का खंड 1 बना रहेगा और खंड 2 और 3 ख़त्म होंगे। अनुच्छेद 370 का खंड 1 बना रहना ज़रूरी है क्योंकि उसी के तहत राष्ट्रपति केंद्र का कोई भी क़ानून राज्य पर लागू करता है। यदि अनुच्छेद 370 का खंड 1 ही समाप्त हो गया तो राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर पर ये क़ानून कैसे लागू करेगा। राष्ट्रपति ने आज जो आदेश जारी किया है, वह भी अनुच्छेद 370 के खंड 1 द्वारा दी गई शक्तियों के आधार पर ही किया है।
दूसरे, अनुच्छेद 370 के बने रहने से कोई यह भी नहीं कह सकेगा कि अनुच्छेद 370 को कैसे ख़त्म कर दिया क्योंकि वह तो है ही (भले ही उसका खंड 1 ही बचा हो) और इस आधार पर कोर्ट का दरवाज़ा भी नहीं खटखटा सकेगा।
इसको आप यूँ समझिए कि किसी डिब्बे को खाली करने के लिए डिब्बे में एक छोटा-सा छेद करके उसका सारा सामान निकाल दिया जाए। कहने को डिब्बे का ढाँचा ज्यों का त्यों है, लेकिन सामान सारा-का-सारा निकाला जा चुका है।
राष्ट्रपति आदेश संवैधानिक है या नहीं?
वैसे आज के राष्ट्रपति के आदेश में संविधान (जम्मू-कश्मीर में लागू) आदेश 1954 को सुपरसीड करने की भी व्यवस्था है। ग़ौर करने की बात है कि अब तक राष्ट्रपति ने राज्य में केंद्रीय क़ानूनों को लागू करने के जितने भी आदेश दिए हैं, वे सब इसी 1954 वाले आदेश में संशोधन के तौर पर दिए गए थे। ऐसा इसलिए किया गया कि इस 1954 वाले आदेश को संविधान सभा की सहमति थी और कोई क़ानूनी पचड़ा आने पर कहा जा सकता था कि राष्ट्रपति कोई नया आदेश नहीं जारी कर रहे, 1954 के आदेश को ही संशोधित कर रहे हैं। अब जब 1954 का आदेश ही नए आदेश से ध्वस्त हो गया तो यह सवाल उठेगा कि क्या राष्ट्रपति का यह आदेश संवैधानिक रूप से सही है क्योंकि ऐसा करने के लिए उन्होंने संविधान सभा से कोई सहमति नहीं ली है।
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