loader

नंदीग्राम में हार के बाद भी ममता मुख्यमंत्री बन सकती हैं! 

2016 के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को जितनी सीटें मिलीं लगभग उतनी ही इस बार भी मिलीं। इस चुनाव में भारी बदलाव यह है कि कांग्रेस और वाम दलों का लगभग सफाया हो गया है, जबकि बीजेपी के लिए (3 से 77 तक) भारी वृद्धि हुई है। यह पश्चिम बंगाल के हाल के वर्षों में धार्मिक ध्रुवीकरण के कारण है, एक राज्य जो हाल ही तक धर्मनिरपेक्षता का गढ़ माना जाता था।
जस्टिस मार्कंडेय काटजू

नंदीग्राम में अपनी हार के बावजूद ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने की आवश्यकता नहीं है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के कारण है जो बताता है:

‘एक मंत्री जो लगातार छह महीने तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, वह  इस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।’

'मंत्री' शब्द में मुख्यमंत्री भी आता है। यह अनुच्छेद 164 (1) से स्पष्ट है जिसमें कहा गया है:

‘मुख्यमंत्री को राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा और अन्य मंत्रियों को मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा---’।

 

ताज़ा ख़बरें

‘अन्य मंत्रियों’ शब्दों से संकेत मिलता है कि मुख्यमंत्री को अनुच्छेद 164 के उद्देश्य के लिए एक मंत्री भी माना जाता है। 

इसलिए ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल विधानसभा का सदस्य बने बिना 6 महीने तक सीएम बनी रह सकती हैं। इन 6 महीनों के भीतर वह एक उपचुनाव लड़ सकती हैं और निर्वाचित हो सकती हैं। उनकी अपनी पार्टी के विधायकों में से एक को इस्तीफा देने के लिए कहा जा सकता है (और कोई सार्वजनिक निगम के अध्यक्ष या कोई अन्य पद पर नियुक्त किया जा सकता है)। ममता फिर रिक्त सीट के लिए चुनाव लड़ सकती हैं।

विचार से ख़ास

इस बार, वह स्पष्ट रूप से एक सुरक्षित सीट पर चुनाव लड़ेंगी जहाँ उनकी जीत निश्चित है।

2016 के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को जितनी सीटें मिलीं लगभग उतनी ही इस बार भी मिलीं। इस चुनाव में भारी बदलाव यह है कि कांग्रेस और वाम दलों का लगभग सफाया हो गया है, जबकि बीजेपी के लिए (3 से 77 तक) भारी वृद्धि हुई है। यह पश्चिम बंगाल के हाल के वर्षों में धार्मिक ध्रुवीकरण के कारण है, एक राज्य जो हाल ही तक धर्मनिरपेक्षता का गढ़ माना जाता था।

पश्चिम बंगाल में दिलचस्प समय आ रहा है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
जस्टिस मार्कंडेय काटजू

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें