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प्रधानमंत्री मोदी के साथ मनोज तिवारी। फ़ोटो साभार: फ़ेसबुक/मनोज तिवारी

मनोज तिवारी भूल गए थे कि हुकुम सिर्फ़ ‘बिग बॉस’ का ही चलता है?

बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टी में ख़ुद को ही सबसे बड़ा हीरो मानना बड़ी भूल होती है। एक ज़माने तक मल्टी स्टॉरर फ़िल्मों की तरह रही पार्टी में अब सिर्फ़ एक ही हीरो है और कम से कम वो मनोज तिवारी नहीं हैं। टीवी शो ‘बिग बॉस’ में शरीक रहे तिवारी को शायद उस घर से यह सीख ठीक से नहीं मिल पाई कि घर भले ही कोई भी हो, हुकुम सिर्फ़ ‘बिग बॉस’ का ही चलता है।
विजय त्रिवेदी

बीजेपी ने ‘रिंकिया के पापा’ को आउट कर दिया। अम्पायर बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी को ‘आउट’ क़रार दिया है और उनकी जगह अब आदेश गुप्ता ‘बैटिंग’ करेंगे। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी संभालने के बाद नड्डा का यह पहला बड़ा फ़ैसला है। कोरोना काल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की अपील और आदेश को नकारते हुए दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी 24 मई को हरियाणा के सोनीपत ज़िले में क्रिकेट मैच खेलने चले गए थे। मैच में तो उन्होंने शानदार पारी खेली, गेंदबाज़ी भी की और बल्लेबाज़ी में शानदार 67 रन बनाए, लेकिन बीजेपी के राजनीतिक पिच पर नड्डा ने उन्हें आउट कर दिया। 

दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान भी वह टीवी चैनलों पर क्रिकेट खेलते हुए इंटरव्यू दे रहे थे लेकिन आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल ने उन्हें ऐसी मात दी कि पार्टी का ही सफाया हो गया। सोमवार को ही दिल्ली सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान तिवारी को हिरासत में लिया गया था।

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हरियाणा के शेखपुर गाँव में उस मैच के कार्यक्रम के दौरान भी सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह किए बिना उन्होंने ख़ूब गाने गाए, ‘रिंकिया के पापा’ पर वाहवाही बटोरी, लेकिन सुपर हिट फ़िल्म गैंग्स ऑफ़ वासेपुर के गाने ‘जिया हो बिहार के लाला, जिया तू हज़ार साला’ के सुपर हिट सिंगर की बीजेपी अध्यक्ष की पारी तीन साल ही चल पाई और वो दूसरी पारी नहीं खेल पाए। उनके ख़िलाफ़ शिकायतें तो काफ़ी समय से चल रही थीं। कार्यकर्ताओं के अलावा संघ की नज़र भी टेढ़ी रही। नतीजतन उनकी जगह संघ के प्रिय रहे आदेश कुमार गुप्ता को ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। गुप्ता नॉर्थ दिल्ली से मेयर भी रह चुके हैं और अभी पार्षद हैं। 

यह अलग बात है कि मनोज तिवारी लगातार दूसरी बार नॉर्थ ईस्ट दिल्ली संसदीय सीट से चुने गए। पहली बार 2014 में उन्होंने आम आदमी पार्टी के आनंद कुमार को 1 लाख 44 हज़ार वोटों से हराया था तो पिछली बार 2019 में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 3 लाख 63 हज़ार वोटों से करारी मात दी थी, लेकिन कहा जाता है कि यह जीत का सेहरा तो नरेन्द्र मोदी के सिर पर रहा। 

असल में मनोज तिवारी को जहाँ दिल्ली विधानसभा में अपना करिश्मा दिखाना था, वहाँ वह फिसड्डी साबित हुए और उनकी राजनीतिक फ़िल्म फ्लॉप हो गई।

70 सीटों की विधानसभा में बीजेपी सिर्फ़ 8 सीटें निकाल पाई जबकि 7 महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने सभी सातों संसदीय सीटों पर जीत हासिल की थी। मनोज तिवारी शायद यह भूल गए थे कि 2016 में जब उन्हें दिल्ली की कमान सौंपी गई तो उसकी वजह थी उससे पहले हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी की क़रारी हार और सतीश उपाध्याय का कुर्सी छोड़ना। साल 2009 के चुनावों में मनोज तिवारी गोरखपुर से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार रहे थे, लेकिन योगी आदित्यनाथ से हार गए। उस दौरान बीजेपी और योगी पर उनके हमले के वीडियो हमेशा चुनावों के वक़्त अक्सर वायरल होते रहे। कार्यकर्ताओं में नाराज़गी बनी रही, लेकिन पार्टी आलाक़मान ने दिल्ली में पूर्वांचल के वोटरों की तादाद को ध्यान में रखते हुए अध्यक्ष बनाया था।

2020 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार के बाद से ही उन्हें हटाए जाने की चर्चा थी, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर अध्यक्ष बदलने और उसके बाद कोरोना संकट ने उन्हें कुछ जीवनदान दे दिया।

मनोज तिवारी की भूल क्या?

वाराणसी के कबीर चौरा पर जन्मे तिवारी की लोकप्रियता यूँ तो देश भर में है, लेकिन बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टी में ख़ुद को ही सबसे बड़ा हीरो मानना बड़ी भूल होती है। एक ज़माने तक मल्टी स्टॉरर फ़िल्मों की तरह रही पार्टी में अब सिर्फ़ एक ही हीरो है और कम से कम वो मनोज तिवारी नहीं हैं। टीवी शो ‘बिग बॉस’ में शरीक रहे तिवारी को शायद उस घर से यह सीख ठीक से नहीं मिल पाई कि घर भले ही कोई भी हो, हुकुम सिर्फ़ ‘बिग बॉस’ का ही चलता है।

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सुभाष चन्द्र बोस के पोते को उपाध्यक्ष पद से हटाया

बीजेपी अध्यक्ष नड्डा ने तिवारी के अलावा तीन और राज्यों की प्रदेश इकाई में बदलाव कर दिया है। छत्तीसगढ़ में पूर्व मंत्री विष्णुदेव साय को अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी दी गई है, उन्हें विक्रम उसेंडी की जगह लाया गया है। साय संघ और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के क़रीबी माने जाते हैं। साय इससे पहले 2006 से 2009 तक और फिर 2013 में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और 1999 से 2014 तक सांसद भी रहे हैं। मणिपुर में भावनानंद की जगह एस टिकेन्द्र सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। इसके साथ ही बीजेपी के लिए सबसे अहम राज्य माने जाने वाले पश्चिम बंगाल में चन्द्र कुमार बोस को उपाध्यक्ष पद से हटा दिया गया है। यूँ तो चन्द्र कुमार सुभाष चन्द्र बोस के पोते हैं, लेकिन पिछले साल उन्होंने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ अपनी राय रखी थी। पश्चिम बंगाल में फ़िल्म अभिनेत्री अग्निमित्रा पॉल को बीजेपी के महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया है।

संगठन में इस फेरबदल से साफ़ है कि पार्टी अब कोरोना संकट के लॉकडाउन से बाहर निकल रही है और नए अध्यक्ष जगत प्रसाद नड्डा संगठन पर फ़ैसले लेने लगे हैं। वैसे, दो दिन पहले ही गृह मंत्री अमित शाह ने एक टीवी इंटरव्यू में माना कि कुछ लोग अब भी उन्हें ‘अध्यक्ष जी’ कहते हैं।

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