loader

विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस: स्वाधीनता दिवस को महत्वहीन बनाने की कोशिश

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि अब से हर वर्ष 14 अगस्त को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाया जाएगा। इस पर दूसरी कड़ी में आज पढ़िए, क्या यह स्वाधीनता दिवस को महत्वहीन बनाने की कोशिश है...

पहली कड़ी में पढ़िए : ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ यानी भारत की पराजय का उत्सव!

विनायक दामोदर सावरकर को अपना प्रेरणा पुरुष बताने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी चुनाव के मौक़े पर अपने को सुभाषचंद्र बोस की विरासत से जोड़ने की कोशिश भी करते रहते हैं। लेकिन क्या वे इस बात से इनकार कर सकते हैं कि जिस समय सुभाषचंद्र बोस सैन्य संघर्ष के ज़रिए ब्रिटिश हुकूमत को भारत से उखाड़ फेंकने की रणनीति बुन रहे थे, ठीक उसी समय हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर ब्रिटेन को युद्ध में हर तरह की मदद दिए जाने के पक्ष में थे।

यहाँ यह भी याद रखा जाना चाहिए कि इससे पहले सावरकर माफीनामा देकर इस शर्त पर जेल से छूट चुके थे कि वे ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की गतिविधि में शामिल नहीं होंगे और हमेशा उसके प्रति वफादार बने रहेंगे। इस शर्त पर उनकी न सिर्फ़ जेल से रिहाई हुई थी बल्कि उन्हें 60 रुपए प्रति माह पेंशन भी अंग्रेज हुकूमत से प्राप्त होने लगी थी।

ताज़ा ख़बरें

1941 में बिहार के भागलपुर में हिन्दू महासभा के 23वें अधिवेशन को संबोधित करते हुए सावरकर ने ब्रिटिश शासकों के साथ सहयोग करने की नीति का एलान किया था। उन्होंने कहा था, 'देश भर के हिंदू संगठनवादियों (हिन्दू महासभाइयों) को दूसरा सबसे महत्वपूर्ण और अति आवश्यक काम यह करना है कि हिन्दुओं को हथियारबंद करने की योजना में अपनी पूरी ऊर्जा और कार्रवाइयों को लगा देना है। जो लड़ाई हमारी देश की सीमाओं तक आ पहुँची है वह एक ख़तरा भी है और एक मौक़ा भी।’  

इसके आगे सावरकर ने कहा था, 'सैन्यीकरण आंदोलन को तेज़ किया जाए और हर गाँव-शहर में हिन्दू महासभा की शाखाएँ हिन्दुओं को थल सेना, वायु सेना और नौ सेना में और सैन्य सामान बनाने वाली फ़ैक्ट्रियों में भर्ती होने की प्रेरणा के काम में सक्रियता से जुड़ें।’

इससे पहले 1940 के मदुरा अधिवेशन में सावरकर ने अपने भाषण में बताया था कि पिछले एक साल में हिन्दू महासभा की कोशिशों से लगभग एक लाख हिन्दुओं को अंग्रेजों की सशस्त्र सेनाओं में भर्ती कराने में वे सफल हुए हैं। जब आज़ाद हिन्द फ़ौज जापान की मदद से अंग्रेजी फ़ौज को हराते हुए पूर्वोत्तर में दाखिल हुई तो उसे रोकने के लिए अंग्रेजों ने अपनी उसी सैन्य टुकड़ी को आगे किया था, जिसके गठन में सावरकर ने अहम भूमिका निभाई थी।

लगभग उसी दौरान यानी 1941-42 में सुभाष बाबू के बंगाल में सावरकर की हिन्दू महासभा ने मुसलिम लीग के साथ मिल कर सरकार बनाई थी। हिन्दू महासभा के श्यामा प्रसाद मुखर्जी उस साझा सरकार में वित्त मंत्री थे।

उस सरकार के प्रधानमंत्री मुस्लिम लीग के नेता ए के फजलुल हक थे। अहम बात यह है कि फजलुल हक ने ही भारत का बंटवारा कर अलग पाकिस्तान बनाने का प्रस्ताव 23 मार्च 1940 को मुसलिम लीग के लाहौर सम्मेलन में पेश किया था।

modi government on partition horrors remembrance day - Satya Hindi

हिन्दू महासभा ने सिर्फ़ 'भारत छोड़ो’ आन्दोलन से ही अपने आपको अलग नहीं रखा था, बल्कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक पत्र लिख कर अंग्रेजों से कहा था कि कांग्रेस की अगुआई में चलने वाले इस आन्दोलन को सख्ती से कुचला जाना चाहिए। मुखर्जी ने 26 जुलाई, 1942 को बंगाल के गवर्नर सर जॉन आर्थर हरबर्ट को लिखे पत्र में कहा था, 'कांग्रेस द्वारा बड़े पैमाने पर छेड़े गए आन्दोलन के फलस्वरूप प्रांत में जो स्थिति उत्पन्न हो सकती है, उसकी ओर मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ।’ मुखर्जी ने उस पत्र में 'भारत छोड़ो’ आन्दोलन को सख़्ती से कुचलने की बात कहते हुए इसके लिए कुछ ज़रूरी सुझाव भी दिए थे। उन्होंने लिखा था, 'सवाल यह है कि बंगाल में भारत छोड़ो आन्दोलन को कैसे रोका जाए। प्रशासन को इस तरह काम करना चाहिए कि कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद यह आन्दोलन प्रांत मे अपनी जड़ें न जमा सके। इसलिए सभी मंत्री लोगों को यह बताएँ कि कांग्रेस ने जिस आज़ादी के लिए आन्दोलन शुरू किया है, वह लोगों को पहले से ही हासिल है।’

विचार से ख़ास

जहाँ तक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का सवाल है, सत्ता का स्वाद चखने के बाद पिछले कुछ सालों से भले ही आरएसएस तिरंगे के प्रति प्रेम जताने लगा हो और उसके मुख्यालय पर भी तिरंगा फहराया जाने लगा हो, मगर हक़ीक़त यह है कि आज़ादी से पहले और आज़ादी मिलने के बाद कई वर्षों तक आरएसएस तिरंगे के प्रति हिकारत जताता रहा है। आरएसएस ने अपने अंग्रेज़ी पत्र ऑर्गनाइज़र में 14 अगस्त 1947 वाले अंक में लिखा, ‘वे लोग जो क़िस्मत के दांव से सत्ता तक पहुँचे हैं वे भले ही हमारे हाथों में तिरंगा थमा दें, लेकिन हिंदुओं द्वारा ना इसे कभी सम्मानित किया जा सकेगा और ना ही अपनाया जा सकेगा। तीन का आँकड़ा अपने आप में अशुभ है और एक ऐसा झंडा जिसमें तीन रंग हो वह बेहद ख़राब मनोवैज्ञानिक असर डालेगा और देश के लिए नुक़सानदेह होगा।’

गोलवलकर ने भी अपने लेख में कहा है,

‘कौन कह सकता है कि यह एक शुद्ध तथा स्वस्थ राष्ट्रीय दृष्टिकोण है? यह तो केवल राजनीतिक, कामचलाऊ और तात्कालिक उपाय था। यह किसी राष्ट्रीय दृष्टिकोण अथवा राष्ट्रीय इतिहास तथा परंपरा पर आधारित किसी सत्य से प्रेरित नहीं था। वही ध्वज आज कुछ छोटे से परिवर्तनों के साथ राज्य ध्वज के रूप में अपना लिया गया है। हमारा राष्ट्र एक प्राचीन तथा महान राष्ट्र है जिसका गौरवशाली इतिहास है। तब क्या हमारा कोई अपना ध्वज नहीं था? क्या सहस्त्र वर्षों में हमारा कोई राष्ट्रीय चिन्ह नहीं था? निःसन्देह, वह था। तब हमारे दिमाग़ में यह शून्यतापूर्ण रिक्तता क्यों?’ (एम. एस. गोलवलकर, विचार नवनीत, पृष्ठ- 237)

ख़ास ख़बरें
उपरोक्त तमाम तथ्य यह साबित करते हैं कि आज जो लोग सत्ता में बैठे हैं, उनका और उनके वैचारिक पुरखों का भारत के स्वाधीनता आंदोलन से रत्तीभर भी जुड़ाव नहीं था और इसीलिए उनके लिए स्वाधीनता दिवस का भी सिर्फ़ प्रतीकात्मक महत्व है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने स्वाधीनता दिवस को महत्वहीन बनाने, स्वाधीनता आंदोलन के नायकों और शहीदों को अपमानित करने और देश में सांप्रदायिक विभाजन को ज़्यादा तेज करने के अपने एजेंडे के तहत 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका दिवस मनाने का एलान किया है। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अनिल जैन

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें