लखनऊ से सुल्तानपुर की यात्रा में पाँच लोकसभा क्षेत्रों से गुज़रने का मौक़ा मिला। लखनऊ और सुल्तानपुर में तो सामान्य स्थिति दीखी, लेकिन अमेठी में नहीं। पढ़िये, लखनऊ से सुलतानपुर तक की चार और पाँच मई की यात्रा रिपोर्ट।
इस बार प्रधानमंत्री मोदी का आत्मविश्वास डिगा हुआ है और वह ऐसी भाषा बोल रहे हैं जो विश्वास की भाषा नहीं है। यह भाषा निराशा की भाषा है। एक हताश नेता की भाषा है।
2014 में चुनावी सभाओं में मोदी बोलते थे, ‘अच्छे दिन’ और जनता पीछे से बोलती थी ‘आयेंगे’। अब मोदीजी का ‘अच्छे दिन’ से क्या अभिप्राय था, उन्होंने कभी पूरी तरह से इसे समझाया नहीं।
दुनिया के कई अन्य देशों की तरह इंडोनेशिया में भी बुर्क़े पर प्रतिबंध है। अरबों का बुर्क़ा और भारतीय महिलाओं का घूंघट या पर्दा, दोनों ही नारी अपमान के प्रतीक हैं।
पाकिस्तानी आतंकवादी और जैश-ए-मुहम्मद के सरगना, मौलाना मसूद अज़हर को सुरक्षा परिषद् ने वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया है। क्या इससे पाकिस्तान में ज़मीनी हालात बदलेंगे?
पिछले चुनाव में बीजेपी को अति पिछड़ों और अति दलितों का ज़बरदस्त समर्थन मिला था। लेकिन इस बार हालात अलग हैं और ऐसा लगता है कि बीजेपी की राह यूपी में आसान नहीं है।
तीन चरण के मतदान हो गये हैं। मोदी ने पहले बालाकोट के बहाने ‘राष्ट्रवाद’ और फिर साध्वी प्रज्ञा के बहाने ‘हिंदू आतंकवाद बनाम मुसलिम आतंकवाद’ का नैरेटिव बनाने की कोशिश की। ये नहीं चले तो मोदी अब हिंदुत्व के एजेंडे पर आ गये हैं।
सर्वोच्च न्यायालय अभी तक तो बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी की याचिका पर विचार कर रहा था लेकिन अब उसने राहुल को अदालत की अवमानना का औपचारिक नोटिस जारी कर दिया है।
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने सैकड़ों वादे किेए थे। लेकिन काम का हिसाब जनता को देने के बजाय सिर्फ़ हिंदू राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर चुनाव जीतने की कोशिश की जा रही है।
क्या बीजेपी के पास सरकार की विफलताओं और पार्टी के 2014 के वायदों की नाकामी से बचने का कोई रास्ता नहीं है। क्या पुलवामा और बालाकोट की घटनाओं से भी पार्टी को नया रास्ता नहीं मिला?
प्रधानमंत्री मोदी अपने चुनावी भाषणों में भी आचार संहिता के उल्लंघन जैसी बातें कहते आए हैं लेकिन चुनाव आयोग ने एक बार भी उनके ख़िलाफ़ कोई ऐक्शन नहीं लिया है! आख़िर मोदी बच क्यों निकलते हैं?
जलियाँवाला बाग़ क़त्लेआम में 381 शहीदों में से 222 हिन्दू, 96 सिख और 63 मुसलमान थे। साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन एक साझा आंदोलन था। यह भारत के इतिहास का एक गौरवशाली सच था, लेकिन यह सब फ़ाइलों में बंद पड़ा है।