बीजेपी एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी है। केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार है। देश के बड़े भू-भाग में राज्य सरकारें भी बीजेपी की ही हैं। 2018 छोड़कर पिछले पाँच वर्षों में ज़्यादातर चुनाव बीजेपी ही जीतती रही है। 2014 में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार बनी थी तो देश के कई राज्यों में बीजेपी विरोधी सरकारें थीं लेकिन नरेंद्र मोदी की लहर ऐसी चली कि ज़्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकारें बन गईं। लेकिन विधानसभा के 2018 के चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। पाँच राज्यों में जहाँ चुनाव हुए उसकी सरकार कहीं नहीं बनी। तीन राज्यों, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को अपनी बहुत बड़े बहुमत वाली सरकारें गँवानी भी पड़ीं। इन राज्यों में बीजेपी की हार के बहुत सारे नतीजे निकले लेकिन जो नतीजा बीजेपी के लिए सबसे ज़्यादा चिंताजनक रहा वह राहुल गाँधी का एक मज़बूत नेता के रूप में उभरना माना जाता है।
तीन राज्यों में बीजेपी को हराकर सरकार बनाने के बाद राहुल गाँधी के आत्मविश्वास में वृद्धि हुई और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ हमले और तेज़ कर दिए। बीजेपी ने पिछले कई वर्षों में राहुल गाँधी को एक अगंभीर नेता के रूप में प्रोजेक्ट किया था, लेकिन विधानसभा 2018 के बाद अब बीजेपी उनको गंभीरता से लेने लगी है। लेकिन अभी भी मीडिया में राहुल गाँधी को उतना मीडिया स्पेस नहीं मिलता जितना बीजेपी के दूसरी लाइन के नेताओं को मिलता रहा है। इधर एक बदलाव हुआ है।
जब से प्रियंका गाँधी को कांग्रेस का महासचिव बनाया गया है तब से कांग्रेस को वही मीडिया स्पेस मिलने लगा है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिला करता था। यह बीजेपी के लिए चिंता की बात है।
सबको पता है कि बीजेपी के समर्थकों की बहुत बड़ी संख्या टीवी की ख़बरों को बहुत ही ध्यान से देखती है। बीजेपी का शहरी जनाधार भी टीवी की ख़बरों से ही अपनी बातचीत के मुद्दे निकालता है। अब प्रियंका गाँधी उसी स्पेस में भारी पड़ने लगी, संवाद की कला की जानकार हैं और उनकी शख़्सियत में करिश्मा है। बीजेपी उनको मीडिया स्पेस की लड़ाई में अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानती है। ऐसा लगता है कि बीजेपी की रणनीति अब यह है कि जहाँ-जहाँ प्रियंका गाँधी की बेदाग़ छवि दिखाई पड़े वहाँ-वहाँ उनके पति रॉबर्ट वाड्रा की कारस्तानियों वाली धूमिल तसवीर भी लगा दी जाए।
रॉबर्ट वाड्रा को ईडी दफ़्तर छोड़ने क्यों गईं प्रियंका?
जहाँ तक प्रियंका गाँधी का सवाल है, उन्होंने कांग्रेस मुख्यालय में अपने कमरे में पहले दिन की हाज़िरी के साथ ही यह सन्देश दे दिया है कि वह रॉबर्ट वाड्रा के नाम को आगे करने की बीजेपी की रणनीति को भी बैकफ़ुट पर नहीं झेलने वाली हैं। उन्होंने दफ़्तर जाने के पहले अपने पति रॉबर्ट वाड्रा को ईडी दफ़्तर में पूछताछ के लिए पहुँचाया उसके बाद अपने दफ़्तर गईं। वहाँ जाकर उन्होंने रॉबर्ट वाड्रा के बारे में पूछे गए सवालों का बिना किसी संकोच के जवाब दिया और यह भी कहा कि वह अपने पति के साथ रहेंगी। उधर, बीजेपी के प्रवक्ता लोग रॉबर्ट वाड्रा को भ्रष्टाचार की प्रतिमूर्ति बताते देखे जा रहे हैं।
- यह अलग बात है कि निष्पक्ष पत्रकार ईडी की मौजूदा जाँच के हवाले से अब बीजेपी वालों से ही पूछ रहे हैं कि भाई रॉबर्ट वाड्रा किस जुर्म में दण्डित हुए हैं। अभी तो रॉबर्ट वाड्रा के ख़िलाफ़ कुछ संकेत मिले हैं जिनके आधार पर उनसे ही पूछताछ की जा रही है। उस पूछताछ के आधार पर बात आगे बढ़ेगी, अगर जाँच में आरोप सही पाए गए तो चार्जशीट होगी। केवल संदिग्ध से पूछताछ के आधार पर कैसे कोई अपराध सिद्ध किया जा सकेगा?
रॉबर्ट वाड्रा वाला गुब्बारा कितना चलेगा?
यह भी देखा जा रहा है कि टीवी की ख़बरों में कुछ अति उत्साही एंकर और रिपोर्टर फ़ैसला सुनाने की मुद्रा में आ गए हैं। ज़ाहिर है अगर सोशल मीडिया और कुछ पत्रकार सच बोलने पर आमादा रह गए तो यह रॉबर्ट वाड्रा वाला गुब्बारा ज़्यादा समय तक चल नहीं पायेगा क्योंकि रॉबर्ट वाड्रा को भ्रष्ट साबित करने के लिए न्यायालय में उनके अपराध को सिद्ध करना पड़ेगा। उनको अभियुक्त कहने के लिए उनके ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल करनी पड़ेगी। अभी तो मामला बहुत शुरुआती तफ़्तीश तक ही है और वे केवल संदिग्ध हैं। अभी उनको भ्रष्टाचार की प्रतिमूर्ति कहना बहुत जल्दबाज़ी होगी।
फ़िल्म तक बनी, आरोप अब भी साबित नहीं
पिछले चार-पाँच दिन से रॉबर्ट वाड्रा पर भ्रष्टाचार के आरोप बीजेपी के प्रवक्ता कुछ ज़्यादा शिद्दत से लगा रहे हैं। यह काम वे पिछले पाँच साल से कर रहे हैं। 2014 के चुनाव के पूर्व बीजेपी के तत्कालीन प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने रॉबर्ट वाड्रा पर ज़मीन घोटाले का आरोप लगाते हुए 'ज़मीन का कारोबारी या गुनाहगार' नामक एक फ़िल्म दिखाई थी। बीजेपी ने 'दामाद श्री' नाम से एक पुस्तिका भी जारी की थी।
- उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में रविशंकर प्रसाद ने पूछा था कि आख़िर वाड्रा ने सिर्फ़ हरियाणा और राजस्थान में ज़मीन क्यों ख़रीदी? इसके साथ ही बीजेपी ने वाड्रा के दिन-दोगुनी रात चौगुनी अमीर होने का राज जानना चाहा था। उन्होंने ‘रॉबर्ट वाड्रा के विकास मॉडल’ पर हमला बोला था और कहा था कि ‘अब तक मैं कांग्रेस के नेताओं से पूछता आया हूँ। अब मैं सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी से पूछना चाहता हूँ कि वे बताएँ कि वाड्रा के विकास का मॉडल क्या है?'
प्रियंका का ज़बरदस्त जवाब
रविशंकर प्रसाद के इस आरोप का प्रियंका गाँधी ने उस वक़्त ज़बरदस्त जवाब दिया था। प्रियंका गाँधी वाड्रा ने कहा था कि ‘बीजेपी बौखलाए हुए चूहों की तरह दौड़ रही है। मुझे मालूम था कि चुनाव से पहले इनके (बीजेपी) झूठों का सिलसिला दोहराया जाएगा। इसमें कुछ भी नया नहीं है। इन्हें (बीजेपी) जो करना है करने दीजिए, मैं किसी से नहीं डरती हूँ। इनकी विनाशक, नकारात्मक और शर्मनाक राजनीति के ख़िलाफ़ मैं चुप नहीं रहूँगी’। दामाद्श्री नाम की उस पुस्तिका में बहुत सारे अख़बारों की कतरनें थीं, कुछ लेख थे, कुछ दस्तावेज़ थे जिनको रॉबर्ट वाड्रा के भ्रष्टाचार के सबूत के तौर पर पेश किया गया था।
कार्रवाई होती क्यों नहीं दिखी?
बीजेपी की जीत और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद उस पर कोई कार्रवाई होती नहीं देखी गयी। या हो सकता है कि कुछ हो रहा हो, लेकिन मीडिया को उसकी भनक नहीं लगी। आज एकाएक प्रियंका गाँधी के मीडिया में छा जाने के बाद उनके पति रॉबर्ट वाड्रा को आगे करने के पीछे कहीं प्रियंका गाँधी को बैकफ़ुट पर खेलने के लिए मजबूर करने की रणनीति तो नहीं काम कर रही है? हो सकता है ऐसा न हो लेकिन प्रियंका गाँधी के आचरण से बिलकुल साफ़ है कि वे रॉबर्ट वाड्रा के कंधे पर अव्वल तो बन्दूक रखने नहीं देंगी और अगर बीजेपी रॉबर्ट वाड्रा को सेंटर स्टेज लाने में सफल हो भी गयी तो उस बन्दूक से अपने ऊपर हमला किसी क़ीमत पर नहीं होने देंगी।
प्रियंका से जब सवाल पूछा गया कि अपने पति को ईडी पहुँचाने के ज़रिये वह क्या मैसेज देना चाहती हैं? उनका तुरंत जवाब आया कि, ‘वे मेरे पति हैं और क्या मैसेज है। वे मेरे परिवार हैं। मैं अपने परिवार के साथ हूँ।’
ऐसा लगता है कि प्रियंका गाँधी और कांग्रेस पार्टी एक सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसा कर रहे हैं। सत्ता के केन्द्रों में इस बात पर चर्चा होती रहती थी कि अपने पति की छवि के कारण प्रियंका के लिए राजनीति में शामिल होना और सत्ताधारी पार्टी को चुनौती देना मुश्किल होगा। लेकिन अब लगने लगा है कि प्रियंका गाँधी ने अपने पति के बारे में किये जा रहे प्रचार से डरने के ख़िलाफ़ फ़ैसला ले लिया है।
ख़ुद को पीड़ित के रूप में दिखाएँगी प्रियंका?
प्रियंका गाँधी के मैदान ले लेने के बाद लगता है कि वह अब अपने को पीड़ित के रूप में प्रस्तुत करने जा रही हैं। जिन लोगों को भी उम्मीद थी कि वह अपने पति पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण दब जाएँगी उनको उन्होंने इस बात ने निराश किया है। बीजेपी उनके ऊपर पिछले कई वर्षों से आरोप लगा रही है। उनके भ्रष्टाचार के ज़्यादातर आरोप हरियाणा और राजस्थान में ज़मीनों से सम्बंधित हैं। दोनों ही राज्यों में बीजेपी की भारी बहुमत की सरकारें थीं लेकिन कोई जाँच नहीं की गयी। रॉबर्ट वाड्रा पर हथियारों की दलाली के आरोप भी आजकल लगाए जा रहे हैं। उसकी जाँच भी केंद्र सरकार की एजेंसियाँ कर सकती थीं, वह भी नहीं हुई। जबकि 2014 से ही केंद्र में बीजेपी की सरकार है। अब पाँच साल बाद फिर रॉबर्ट वाड्रा को सेंटर स्टेज लाने का जो काम है वह इस बात की तरफ़ संकेत देता है कि मामला कहीं चुनावों के कारण तो नहीं गर्माया जा रहा है। जहाँ तक ईडी की बात है, दिल्ली में सभी जानते हैं कि नेताओं की आर्थिक बेईमानी को पकड़ने का मुख्य केंद्र वही है और उसको कोई भी राजनीतिक पार्टी इस्तेमाल नहीं कर सकती।
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