कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी क्या कांग्रेस में शामिल होंगे? ख़बर है कि कन्हैया कुमार ने दो दिन पहले ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाक़ात की है। इसके साथ ही रिपोर्ट यह भी है कि जिग्नेश मेवानी भी कांग्रेस नेताओं के संपर्क में हैं। ये ख़बरें तब आ रही हैं जब हाल के दिनों में कांग्रेस के कई युवा चेहरे पार्टी छोड़कर जा चुके हैं और कहा जा रहा है कि पार्टी में युवा नेताओं की कमी है, और इससे पार्टी के भविष्य पर असर पड़ सकता है। तो क्या ये दो नेता कांग्रेस की तकदीर और तसवीर बदलने वाले साबित हो सकते हैं? आख़िर कांग्रेस को इनसे क्या फ़ायदे होंगे?
सीपीआई के मौजूदा नेता और जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी देश भर में चर्चित रहे हैं। इनके साथ एक और नाम जो बेहद चर्चित रहा है वह है हार्दिक पटेल। पटेल पहले ही कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। ये तीनों वे नाम हैं जिनकी मोदी सरकार से हमेशा तनातनी रही है। ये तीनों ही मोदी सरकार पर बदले की कार्रवाई करने का आरोप लगाते रहे हैं। कन्हैया कुमार को लेकर कई बार तो हल्के-फुल्के अंदाज़ में यह भी कह दिया जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने तो कन्हैया कुमार को राष्ट्रीय स्तर का नेता बना दिया!
ऐसा इसलिए कि जेएनयू राजद्रोह मामले में मोदी सरकार और कन्हैया कुमार आमने-सामने रहे थे। यह मामला जेएनयू में 9 फ़रवरी 2016 को अफ़ज़ल गुरु और मक़बूल भट्ट की बरसी पर कार्यक्रम आयोजित करने से जुड़ा है। 2001 में भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु और एक अन्य कश्मीरी अलगाववादी मक़बूल भट्ट को फाँसी दे दी गई थी। कन्हैया कुमार और 9 अन्य छात्रों पर आरोप लगा कि वे उस कार्यक्रम में शामिल थे और देश विरोधी नारे लगाए थे। उस मामले में उन्हें जेल हुई थी। अदालत में पेशी के दौरान उन पर हमला भी किया गया था।
कन्हैया कुमार जब जेल से निकले तो जेएनयू परिसर में दिये गये उनके भाषण को पूरे देश ने देखा। उन्होंने अपने ऊपर कार्रवाई के लिए सीधे प्रधानमंत्री मोदी को ज़िम्मेदार ठहराया। उस भाषण ने ख़ूब वाहवाही बटोरी। इसके बाद से वह शानदार भाषण शैली के लिए जाने जाते हैं। वह देश भर में डिबेट में शामिल होते रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सीपीआई की तरफ़ से वह चुनाव में खड़े हुए। हालाँकि वह चुनाव हार गए, लेकिन लगातार उनकी छवि राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती ही गई।
जिग्नेश मेवाणी दलित आंदोलन का चेहरा रहे हैं। वह पहले पत्रकार, वकील थे और फिर एक्टिविस्ट बने और अब नेता हैं। मेवाणी तब अचानक सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने वेरावल में उना वाली घटना के बाद घोषणा की थी कि अब दलित लोग समाज के लिए मरे हुए पशुओं का चमड़ा निकालने, मैला ढोने जैसा 'गंदा काम' नहीं करेंगे। इसके बाद से मेवाणी देश भर की सुर्खियों में रहे हैं। उनकी भी मोदी सरकार से ठनती रही है। वह अक्सर प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं।
इसी तरह 2015 में हार्दिक पटेल आए थे, पाटीदार नेता बने और आरक्षण मांगा। उनके समर्थन में लाखों लोग आए। उनकी भी मोदी सरकार से तनातनी रही है। वह कांग्रेस में पहले ही शामिल हो चुके हैं।
ऐसे में हार्दिक पटेल के बाद कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी के कांग्रेस में आने से पार्टी में युवा नेताओं की सशक्त तिकड़ी हो सकती है और पार्टी में नई ऊर्जा आ सकती है।
सिंधिया और जितिन प्रसाद के अलावा सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा भी राहुल के क़रीबी बताए जाते हैं। अब दो ही राहुल के साथ बचे हैं। इनमें से भी सचिन पायलट के काफ़ी नाराज़ चलने की ख़बरें आती रही हैं। बड़ा सवाल यह है कि ये दोनों भी राहुल का साथ कब तक दे पाएँगे?
इसी बीच दो प्रसिद्ध युवा चेहरों के कांग्रेस के क़रीब आने की ख़बरें हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने ख़बर दी है कि कन्हैया कुमार के क़रीबी सूत्रों ने बताया है कि वह भाकपा यानी सीपीआई में घुटन महसूस कर रहे थे। उन्होंने मंगलवार को राहुल से मुलाक़ात की और समझा जाता है कि दोनों ने कांग्रेस में उनके शामिल होने पर चर्चा की। कन्हैया कुमार के पार्टी छोड़ने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर भाकपा महासचिव डी राजा ने कहा कि उन्होंने इस संबंध में केवल अटकलें सुनी हैं। उन्होंने कहा, 'मैं सिर्फ़ इतना कह सकता हूँ कि वह इस महीने की शुरुआत में हमारी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मौजूद थे।
रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी भी कांग्रेस नेतृत्व के संपर्क में हैं। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में उत्तरी गुजरात के बनासकांठा ज़िले की वडगाम सीट से उम्मीदवार नहीं उतारकर मेवाणी की मदद की थी।
कन्हैया के बारे में कांग्रेस के सूत्रों ने कहा कि वह बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के इच्छुक हैं। कांग्रेस पिछले तीन दशकों से बिहार में हाशिए पर है।
पिछले साल के विधानसभा चुनावों में भी सहयोगी दलों राजद और भाकपा (माले) की तुलना में इसने ख़राब प्रदर्शन किया। कांग्रेस 70 में से केवल 19 सीटों पर ही जीत सकी थी। राजद ने जिन 144 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से आधे से ज़्यादा पर जीत हासिल की, जबकि सीपीआई (एमएल) ने 19 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की।
कांग्रेस के सूत्रों ने कहा कि पार्टी का मानना है कि कुमार और मेवाणी के प्रवेश से पार्टी के युवाओं में उत्साह आएगा। कांग्रेस पार्टी कन्हैया कुमार का उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में प्रचार के लिए भी इस्तेमाल कर सकती है। उत्तर प्रदेश में पाँच महीने बाद में चुनाव होने वाले हैं। सपा और बसपा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे आगामी विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाएंगे। इस वजह से पार्टी को युवा चेहरे की सख़्त ज़रूरत भी है।
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