भारत की सियासत में अच्छी-खासी उथल-पुथल मचा चुके राफ़ेल लड़ाकू विमान की ख़रीद के सौदे का मामला एक बार फिर जिंदा हो गया है। फ़्रांस के एक ऑनलाइन पोर्टल मीडियापार्ट ने बीते कुछ महीनों में राफ़ेल सौदे को लेकर कई सनसनीखेज़ रिपोर्ट जारी की हैं।
मीडियापार्ट ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि राफ़ेल लड़ाकू विमान को बनाने वाली कंपनी यानी दसॉ एविएशन ने 2007 से 2012 के बीच एक बिचौलिया कंपनी को 7.5 मिलियन डॉलर की रिश्वत दी थी। यह कंपनी सुशेन गुप्ता की है और इसका नाम इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजीज है। इसके बाद कांग्रेस और बीजेपी मैदान में उतर आए हैं।
बीजेपी का आरोप
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा है कि सुशेन गुप्ता अगुस्ता वेस्टलैंड मामले में भी बिचौलिया था। उन्होंने कहा कि ये तार कहां तक जुड़ते हैं, यह जांच का विषय है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी और कांग्रेस ने राफ़ेल के मामले में भ्रम फैलाने की कोशिश की और यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान ही राफ़ेल मामले में कमीशनखोरी हुई है।
‘नो करप्शन क्लॉज हटा दिया’
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि यूपीए सरकार के दौरान राफ़ेल लड़ाकू विमान के सौदे में नो करप्शन क्लॉज था, 526 करोड़ का एक विमान था जबकि मोदी सरकार के शासन में नो करप्शन क्लॉज को हटा दिया गया और 526 करोड़ का विमान 1670 करोड़ में ख़रीदा गया। खेड़ा ने कहा कि बीजेपी सरकार ने भारतीय वायु सेना के हित को ख़तरे में डाला और भारत के खजाने को भी नुक़सान पहुंचाया।
खेड़ा ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा राफ़ेल डील में हुए भ्रष्टाचार को दफ़नाने के लिए एक ‘ऑपरेशन कवर अप’ चल रहा है। उन्होंने कहा कि ‘ऑपरेशन कवर अप’ के तहत मोदी सरकार ने सीबीआई और ईडी के साथ मिलकर इस मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की।
‘सीबीआई निदेशक को क्यों हटाया’
खेड़ा ने कहा कि 4 अक्टूबर, 2018 को बीजेपी के दो पूर्व मंत्रियों और एक वरिष्ठ वकील ने राफ़ेल सौदे में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए उस वक़्त के सीबीआई के निदेशक को हलफ़नामा सौंपा था। लेकिन 23 अक्टूबर, 2018 को पीएम मोदी की अगुवाई वाली एक समिति ने सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को मध्यरात्रि में हटा दिया था। उन्होंने पूछा कि भारतीय वायु सेना से परामर्श किए बिना राफ़ेल विमानों की संख्या को 126 से घटाकर 36 कैसे व क्यों कर दिया गया?
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