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2024 चुनाव: विपक्षी राजनीति को ताक़त देगी लालू-पवार की मुलाक़ात?

संसद के मानसून सत्र में विपक्ष के हमलों से परेशान मोदी सरकार और बीजेपी के नेताओं की परेशानी शायद लालू प्रसाद यादव और शरद पवार की मुलाक़ात की तसवीर देखकर ज़रूर बढ़ी होगी। यह मुलाक़ात ऐसे वक़्त में हुई, जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने दिल्ली दौरे के दौरान विपक्षी दलों के नेताओं के साथ ताबड़तोड़ मुलाक़ात कर रही थीं। 

सियासी धुरंधरों लालू और पवार की मुलाक़ात पर बात करने से पहले थोड़ा पीछे चलते हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को मिली प्रचंड जीत के बाद एक वक़्त ऐसा लग रहा था कि उसे चुनौती दे पाना मुश्किल है। 

लेकिन वक्त बदला और 2020 के अंत में हुए बिहार विधानसभा के चुनाव में उसे आरजेडी ने कड़ी चुनौती दी और बेहद मामूली अंतर से वह नीतीश की मदद से वहां सरकार बना सकी। 

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इसके बाद बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के चुनाव में पूरा जोर लगाया लेकिन वहां उसे शिकस्त मिली। बंगाल के चुनाव में ममता बनर्जी की जीत के साथ ही यह सवाल सामने आया कि विपक्षी दलों के राज्यों में सक्रिय बड़े सियासी क्षत्रप अगर मिल जाएं तो क्या बीजेपी को 2024 में पटखनी दी जा सकती है?

इसके बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की शरद पवार के साथ मुलाक़ात और ममता बनर्जी का बीजेपी के विरोध में फ्रंट बनाने का आह्वान, इससे विपक्षी दलों की एकता की चर्चाओं को बल मिला। हाल ही में दिल्ली में राष्ट्र मंच नाम के संगठन की बैठक में तमाम विपक्षी दल जुटे और उसके बाद संसद सत्र में भी यह एकजुटता कायम रही है। 

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी विपक्षी एकजुटता की कोशिश ममता बनर्जी से लेकर चंद्रबाबू नायडू और केसीआर ने की लेकिन ये कोशिशें सिर्फ़ कोशिशें ही रह गयीं और परवान नहीं चढ़ सकीं।

ममता की पुरजोर कोशिश 

लेकिन इस बार शायद विपक्षी दल इस मामले में ग़ैर जिम्मेदाराना व्यवहार नहीं करना चाहते। ममता अपने दिल्ली दौरे के दौरान कई बार इस बात को कह चुकी हैं कि बीजेपी के ख़िलाफ़ बनने वाले फ़्रंट की क़यादत कोई भी नेता करे, उन्हें कोई परेशानी नहीं है। उनका साफ कहना है कि वक़्त न बर्बाद करते हुए एक फ़्रंट खड़ा करना है। 

Sharad pawar lalu yadav meet in delhi - Satya Hindi
ध्यान देना होगा कि ममता ने अपने दिल्ली दौरे के दौरान पत्रकारों के सवालों के जवाब में सीधे 2024 के चुनाव की बात नहीं की, उन्होंने कहा कि 2022 में उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में चुनाव हैं और ये बेहद अहम हैं। 
Sharad pawar lalu yadav meet in delhi - Satya Hindi
अब फिर से आते हैं लालू और पवार की मुलाक़ात पर। लालू यादव और शरद पवार भारतीय राजनीति के सबसे अनुभवी नेताओं में शुमार हैं। लालू जहां सामाजिक न्याय और पिछड़ों को उनका हक़ दिलाने की राजनीति के लिए संघर्ष करते रहे, वहीं शरद पवार ऐसे नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस से निकलकर अपना अलग वज़ूद बनाया और ख़ुद को सियासत में जिंदा रखा। ममता बनर्जी भी ऐसी ही नेता हैं। 

रामगोपाल यादव की मौजूदगी 

इस मुलाक़ात में लालू और पवार के अलावा एक और अहम शख़्स मौजूद रहे जिनका नाम प्रोफ़ेसर रामगोपाल यादव है। मुलायम सिंह के भाई रामगोपाल यादव मज़बूती से अपने भतीजे अखिलेश यादव के साथ खड़े हैं। रामगोपाल की इस मुलाक़ात में मौजूदगी ये बताती है कि इस चुनाव में 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भी बात ज़रूर हुई होगी। 

विपक्षी दल जानते हैं कि 2022 का साल कितना अहम है। यह साल 2024 का रोडमैप तो तय करने ही वाला है, राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति तय करने में भी इसकी बेहद अहम भूमिका रहेगी। इस साल जिन सात राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, उनमें उत्तर प्रदेश सबसे ख़ास है। 

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विपक्षी दलों को इस बात का भान है कि उत्तर प्रदेश में अगर बीजेपी को जीत मिलती है तो वह 2024 के लिए तेज़ी से क़दम बढ़ाएगी और अगर हार मिली तो उसके क़दम ठिठक जाएंगे। बस यही 2024 के चुनाव के लिए सबसे अहम पड़ाव होगा। उत्तर प्रदेश में जीत के लिए विपक्षी एकता बनाने में लालू प्रसाद यादव से लेकर ममता बनर्जी और शरद पवार की अहम भूमिका रहेगी। 
पिछड़ों के राजनीतिक मसीहा के रूप में पहचाने जाने वाले लालू उत्तर प्रदेश में यादवों को अखिलेश के हक़ में गोलबंद कर सकते हैं। बिहार चुनाव में आरजेडी को मिली जीत से साफ हुआ था कि लालू का नाम अभी जिंदा है और यादव मतदाता भी उन्हें छोड़कर किसी दूसरी ठौर पर नहीं जाना चाहते।

यहां इस पर भी बात करनी होगी कि लालू यादव का कांग्रेस के साथ गठबंधन अटूट रहा है। बीजेपी के ख़िलाफ़ बनने वाला कोई फ्रंट कांग्रेस के बिना नहीं बन सकता, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव इस बात को कह चुके हैं।

फेविकोल का काम करेंगे लालू 

लब्बोलुआब यही है कि 2022 को जीतने के बाद ही आप 2024 की कल्पना कर सकते हैं। इसलिए लंबे अर्से बाद लालू अब जब राजनीति में सक्रिय हुए हैं तो कहा जा सकता है कि वह उत्तर प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक विपक्षी दलों के बीच फेविकोल का काम करेंगे और बीजेपी के ख़िलाफ़ बनने वाले फ्रंट में अहम भूमिका निभाएंगे। 

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क़मर वहीद नक़वी

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