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रॉबर्ट वाड्रा पर लगे आरोपों का सामना कैसे करेंगी प्रियंका?

अब तक कांग्रेस की राजनीति में हाशिए पर खड़ी और बीच-बीच में भाई राहुल की मदद करती आई प्रियंका वाड्रा आख़िरकार सक्रिय राजनीति में आ गईं। उन्हें पार्टी महासचिव बना दिया गया है और वे चुनाव भी लड़ेंगी। पर इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि राजनीति के केंद्र में उनके आने से विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को उन पर हमले करने का मौक़ा मिल जाएगा। कई बार विवादों के केंद्र में रहे रॉबर्ट वाड्रा उनके पति हैं और बीजेपी उन पर निशाना साध कर पूरी पार्टी को ही कटघरे में खड़ा करे, यह बिल्कुल सामान्य बात है। ऐसे में कांग्रेस और ख़ास कर गाँधी परिवार को सफ़ाई देनी होगी। बीते कुछ दिनों से बीजेपी ने रॉबर्ट वाड्रा पर निजी हमले किए हैं। कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि बीजेपी और मोदी को करारा जवाब देने के लिए ही प्रियंका ख़ुद राजनीति में आई हैं। 

काले धन का मामला

राजस्थान हाई कोर्ट ने बीते सोमवार को ही रॉबर्ट वाड्रा और उनकी माँ मॉरीन को 12 फ़रवरी को प्रवर्तन निदेशालय (एनफ़ोर्समेंट डाइरेक्टरेट यानी ईडी) के सामने पेश होने को कहा। हालाँकि अदालत ने उन्हें अभी गिरफ़्तार करने पर  रोक लगा दी है। ये दोनों हीं स्काइ लाइट हॉस्पिटलिटी कंपनी के साझेदार हैं। बीकानेर भूमि मामले में स्काइ लाइट पर मनी लॉन्डरिंग यानी काले धन को वैध बनाने का आरोप है। ईडी फ़िलहाल इस मामले की शुरुआती जाँच ही कर रहा है। आरोप है कि स्काइ लाइट ने लंदन में 19 लाख पौंड में जायदाद ख़रीदी और उसका भुगतान काले धन से किया।  ईडी ने इसके कुछ दिन पहले ही कंपनी के कर्मचारी अरोड़ा से पूछताछ की थी। अरोड़ा पर शक इसलिए है कि उन्होंने संजय भंडारी से 19 लाख पौंड में वह फ्लैट खरीदा था जबकि भंडारी ने खुद 19 लाख पौंड में ही फ्लैट खरीदा थै और उसके अंदर कुछ बदलाव पर 65,900 पौंड खर्च किए। प्रवर्तन निदेशालय जानना चाहता है कि भंडारी ने घाटे में वह फ्लैट क्यों बेच दिया। 

डीएलएफ भूमि घोटाला

हरियाणा भूमि राजस्व विभाग के आला अफ़सर अशोक खेमका ने 2012 के अंत में यह कह कर तलहका मचा दिया था कि स्काइ लाइट हॉस्पिटलिटी ने डीएलएफ़ को ज़मीन बेचने में नियम क़ानूनों का उल्लंघन किया है। उन्होंने उस ज़मीन के म्यूटेशन यानी ज़मा दाख़िल को भी रद्द कर दिया। दरअसल हुआ यह था कि रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी ने मानेसर के नज़दीक 3.5 एकड़ का प्लॉट 7 करोड़  रुपये में ख़रीदा था और कुछ ही महीनों बाद उसे डीएलएफ़ को 58 करोड़ रुपये मे बेच दिया था।  आख़िर कुछ महीनों में ही इस ज़मीन की क़ीमत आठ गुना से ज़्यादा कैसे बढ़ गई, यह सवाल तब ज़ोरशोर से उठा था।

गड़बड़ क्या थी?

उस समय हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी और भूपिंदर सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री थे। उन्होंने ज़मीन ख़रीदने और बेचने के बीच समय में ज़मीन के लैंड यूज़ को बदल दिया।  पहले वह ज़मीन खेती की थी, लेकिन हरियाण सरकार ने उसे औद्योगिक इस्तेमाल की ज़मीन घोषित कर दी, जिससे उसकी क़ीमत रातोरात कई गुना बढ़ गई। इसका सीधा फ़ायदा स्काइ लाइट को मिला। आरोप यही लगा कि रॉबर्ट वाड्रा को लाभ पहुँचाने के इरादे से ही हरियाणा सरकार ने ज़मीन का लैंड यूज़ बदला था।आरोपों के अनुसार इस ज़मीन को ख़रीदने के लिए डीएलएफ़ ने बग़ैर ब्याज़ के ही 7 करोड़ 95 लाख रुपये रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काइ लाइट को दिए, जिस पैसे से स्काइ लाइट ने ज़मीन ख़रीदी। यह ज़मीन पहले ओंकारेश्वर प्रोपर्टीज़ ने किसानों से ख़रीदी थी। आरोप यह भी लगा था कि ओंकारेश्वर प्रोपर्टीज़ दरअसल वाड्रा की ही बेनामी कंपनी थी। 

'जीजाजी' पर तंज

बीजेपी ने इस मुद्दे को लपक लिया और कांग्रेस पार्टी पर ज़बरदस्त हमले किए। नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव के समय इसे सबसे बड़ा मुद्दा बनाया और प्रचारित किया कि किस तरह कांग्रेस पार्टी के दूसरे नेता ही नहीं, स्वयं गाँधी परिवार के लोग भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। उन्होंने सीधे रॉबर्ट  वाड्रा और सोनिया गाँधी को निशाने पर लिया। उन्होंंने तंज करते हुए कई बार कहा, 'पहले तो टू जी और सीएजी की बात उठती थी, पर अब तो जीजाजी की भी बात उठ रही है।' बाद में हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा उठा और बीजेपी ने इस आधार पर ही पूरा प्रचार अभियान चलाया।  
लेकिन, केंद्र की सत्ता में साढ़े चार साल रहने के बावजूद रॉबर्ट वाड्रा के ख़िलाफ़ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इस दौरान हरियाणा और राजस्थान में भी बीजेपी की ही सरकारें थीं। पर बीते कुछ दिनों से वाड्रा पर फिर हमले तेज़ हुए और उन्हें आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय के नोटिस मिले।
अब सवाल यह उठता है कि ठीक चुनाव के समय ही इस तरह की कार्रवाई क्यों हो रही है? इससे दो सवाल सामने आते हैं। इतने समय तक वा़ड्रा के ख़िलाफ़ ठोस कार्रवाई नहीं होने का मतलब क्या यह है कि हरियाणा और राजस्थान की बीजेपी सरकारें और केंद्रीय जाँच एजेंसियाँ पिछले साढे चार साल में रॉबर्ट वाड्रा के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने के लिए कोई पुख़्ता सबूत नहीं जुटा सकीं। अब सवाल यह उठता है कि क्या मोदी सरकार चुनाव का इंतज़ार कर रही थी और अब इसका राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है। प्रियंका के राजनीति में आने पर कुछ पर्यवेक्षकों का यह कहना भी है कि अब स्वयं प्रियंका इसका ज़ोरदार जवाब दे सकती हैं। वह बीजेपी को घेरते हुए यह सवाल कर सकती हैं कि उसने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?
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क़मर वहीद नक़वी

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