सामुदायिक हित सर्वोपरि है या फिर व्यक्तिगत आज़ादी? योगी सरकार कुछ भी कहे लेकिन लिव इन रिलेशनशिप के दो मामलों में अदालत ने जो कहा है वह सरकार के लिए भी क्या सबक़ होगा?
1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना था कि इंदिरा गांधी चुनावी गड़बड़ियों की दोषी थीं और उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया था। अब भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना ने इस फ़ैसले को बहुत साहसिक बताया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी मसजिद के एएसआई सर्वे पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही वाराणसी की अदालत में इससे जुड़ी सभी कार्रवाइयों पर भी रोक लगा दी गई है।
जस्टिस शेखर कुमार यादव ने गाय को मौलिक अधिकार देने की वकालत की है और ऐसे लोगों को आड़े हाथ लिया है जिन पर गाय की देखभाल की जिम्मेदारी है लेकिन वे इसे नहीं करते।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जिस आदेश में यूपी में स्वास्थ्य व्यवस्था 'राम भरोसे' टिप्पणी की थी उस पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रोक लगा दी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कुछ दिनों पहले ही कहा था कि चार महीने में यूपी के अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाएँ सुधरनी चाहिए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा - यूपी के छोटे शहरों और गांवों में ‘राम भरोसे’ हैं स्वास्थ्य सेवाएं। योगी सरकार के दावे एकदम उलट हैं। तो क्या है ‘योगी मॉडल’ की सच्चाई ? देखिए वरिष्ठ पत्रकार नीलू व्यास का विश्लेषण -
योगी कहते हैं कोरोना पर क़ाबू पा लिया गया है । हाई कोर्ट कहता है यूपी में मेडिकल सिस्टम भगवान भरोसे हैं । तो क्या झूठ बोल रहे हैं मुख्यमंत्री ? आशुतोष के साथ चर्चा में सतीश के सिंह, राहुल राज, अनिल शुक्ला, शीतल सिंह और सिद्धार्थ कलहंस ।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश के गांवों में स्वास्थ्य सुविधा के क्या हालात हैं, उस पर टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि गांवों और छोटे शहरों में स्वास्थ्य सुविधाएं राम भरोसे हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऑक्सीजन आपूर्ति नहीं होने पर कड़ा रुख अपनाते हुए इससे जुड़े सरकारी अधिकारियों को जो़रदार फटकार लगाई है और कहा है कि इसकी आपूर्ति नहीं करना अपराध है और यह किसी तरह नरसंहार से कम नहीं है।
उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में लगे हुए 135 शिक्षकों, शिक्षा मित्रों और जाँचकर्ताओं की मौत की ख़बर पर तीखी टिप्पणी करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग से कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं करने पर सफाई माँगी है।
उत्तर प्रदेश के हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत पिछले दो सालों में निरुद्ध 41 लोगों में (जिनमें 90 फ़ीसदी अल्पसंख्यक थे) 30 की गिरफ़्तारी ग़लत क़रार दी। नौकरशाही को आख़िर हुआ क्या है?
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) का दुरुपयोग किस तरह करती है और इसके जरिए किस तरह ख़ास समुदाय के लोगों को निशाने पर लेती है, इसे इलाहाबाद हाई कोर्ट के कुछ मामलों से समझा जा सकता है।