मौसम अब असमान्य व्यवहार क्यों कर रहा है? तापमान क्यों बढ़ता जा रहा है और पेड़ों की कटाई व बेतरतीब औद्योगीकरण का क्या असर हो रहा है? क्या धरती ऐसे बोझ का सहन कर पाएगी?
अमेरिका के शहर न्यूयॉर्क में इडा तूफ़ान के बाद अचानक बाढ़ ने तबाही लाई है। छह पूर्वी राज्यों- कनेक्टिकट, मैरीलैंड, न्यूजर्सी, न्यूयॉर्क, पेंसिल्वेनिया और वर्जीनिया में दर्जनों लोगों की मौत हो गई है।
किन्नैर में आज फिर एक भयानक हादसा हुआ। कुदरत चेतावनी दे रही है और आइपीसीसी की रिपोर्ट कह रही है कि दस बीस साल में ही हन बहुत बड़ी तबाही की ओर बढ़ रहे हैं। आलोक जोशी के साथ पर्यावरण पत्रकार हृदयेश जोशी, बीबीसी के पूर्व संपादक शिवकांत और हिमांशु बाजपेई ।
संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने अपनी छठी रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन की स्थिति अनुमान से बदतर है और जो नुक़सान हो चुका है, वह ठीक नहीं होगा या उसमें हज़ारों साल लगेंगे।
बहुत से पर्यावरण शास्त्रियों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन की रोकथाम की जंग हम हार चुके हैं। अब प्रकृति के पलटवार का इंतज़ार करने और उससे बचाव के लिए जो हम से बन सके करने के अलावा हम कुछ नहीं कर सकते।
इस बार भीषण गर्मी के लिए तैयार रहें। इसका अहसास तो पिछले तीन-चार दिन से हो भी रहा है। लेकिन यदि आपको लगता है कि सामान्य बात है तो मौसम विभाग की भविष्यवाणी सुनेंगे तो आपको भी असामान्य लगने लगेगा।
बनारस, पटना भारी बरसात का सामना न कर सके। केरल बीते दो सालों से बारिश से तबाह है। राजस्थान तक में बाढ़ आई। प्रकृति को नाराज़ करने का इंसानी प्रयोग पृथ्वी से जीवन का नामोनिशान मिटा सकता है। देखिए शीतल के सवाल में पर्यावरण पर यह ख़ास रिपोर्ट।
ग्रेटा थनबर्ग नाम कल तक आपने शायद ही सुना होगा। लेकिन जब इसी थनबर्ग ने दुनिया के एक से बढ़कर एक ताक़तवर नेताओं को एक झटके में आईना दिखा दिया तो वह दुनिया की आँखों की तारा बन गईं।
पेय जल का संकट बढ़ता जा रहा है। सूखे और बाढ़ की समस्या बढ़ रही है। पेड़ काटे जा रहे हैं। बंजर होती ज़मीन को लेकर दिल्ली में जब संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन हुआ तो सरकार ने बढ़-चढ़कर दावे किए। लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञ क्या मानते हैं, सरकार कुछ कर भी रही है क्या? देखिए करेंट अफ़ेयर्स एडिटर नीलू व्यास की पर्यावरण से जुड़े रहे जीवेश गुप्ता, चितरंजन दुबे से बातचीत।