लॉकडाउन तो ज़रूरी था। लेकिन अब यह सवाल है कि जिस बीमारी को रोकने के लिए देशबंदी की गई, कहीं ये इलाज उससे ज़्यादा ख़तरनाक तो नहीं बन जाएगा? मैनेजमेंट गुरु, दर्शनशास्त्री और लेखक गुरचरण दास से ख़ास बातचीत।
दुनिया भर में कोरोना वायरस से संक्रमित होने वालों की तादाद 34,01,190 हो गयी है जबकि 2,39,604 लोगों को जान गंवानी पड़ी है। 10,81,639 संक्रमित लोग अब तक ठीक हो चुके हैं।
महाराष्ट्र में जिस पहले शख़्स का प्लाज़्मा थेरेपी से इलाज किया गया, उसकी मौत हो गई है। हालांकि दिल्ली सरकार ने कहा है कि वह इस थेरेपी से इलाज जारी रखेगी।
चीन के एक शहर वुहान से पूरे विश्व के कोने-कोने में पहुँची कोविड-19 नाम की इस बीमारी ने तो ज़िंदगी के मायने ही बदल दिये। आख़िर दुनिया इसे रोक क्यों नहीं पा रही है?
लॉकडाउन को 17 मई तक बढ़ाने की ख़बर आने के बाद अब सरकार ने शुक्रवार को कहा है कि यह अब आप्रवासी मज़दूरों, छात्रों, श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपने राज्यों में घर लौटने के लिए विशेष ट्रेनें चलाएगी।
कर्नाटक की येदियुरप्पा सरकार 4 मई से राज्य के अंदर आर्थिक और औद्योगिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने की तैयारी में है और केंद्र के दिशा-निर्देश का इंतजार कर रही है।
लॉकडाउन के बाद पहली बार कोई ट्रेन चली। तेलंगाना में फँसे आप्रवासियों को उनको अपने गृह राज्य पहुँचाने के लिए। यह ट्रेन झारखंड के हटिया स्टेशन तक के लिए है। यह सिर्फ़ एक ट्रेन है जिसको रेलवे ने एक बार चलाने की विशेष अनुमति दी है।