प्रधानमंत्री ने पांच अप्रैल को रात नौ बजे दिया, कैंडल आदि जलाने का आव्हान किया है। उनका कहना है कि इससे देश की एकता का इज़हार होगा। लेकिन अपने वीडियो प्रसारण में उन्होंने उन क़दमों का ज़िक्र तक नहीं किया जो कोरोना संकट से निपटने के लिए वे उठ रहे हैं। ऐसे में लगता यही है कि वे लोगों का ध्यान भटकाने के टोटके तो नहीं आज़मा रहे हैं। सत्य हिंदी के लिए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की विशेष टिप्पणी।
देश में लॉक डाउन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर जनता का आह्वान किया है। पाँच तारीख़ को रात नौ बजे नौ मिनट के लिए लाइट बंद और दिया, मोमबत्ती या जैसे चाहें रोशनी दिखाएं। आलोक अड्डा में एक ख़ास चर्चा वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी के साथ।
जनता को सम्मोहित करने में माहिर प्रधानमंत्री का दिया जलाओ मंत्र भक्तों को ख़ुश कर सकता है लेकिन कोरोना से लड़ाई की असली स्थिति को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गुहार सामने लाता है। नीतीश ने कहा कि एक लाख टेस्टिंग किट माँगा पर मिला सिर्फ़ चार हज़ार। डॉक्टर कह रहे हैं कि उनके पास मास्क, दस्ताने और सुरक्षा के उपकरण नहीं हैं। देखिए शैलेश की रिपोर्ट।
कोरोना वायरस के कहर के बीच उत्तर प्रदेश के कई जिलों में एंबुलेंस कर्मचारी हड़ताल पर चले गये हैं। कई जगहों से डॉक्टर्स इस बात की शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें मास्क, दस्ताने तक उपलब्ध नहीं कराये जा रहे हैं। इसके अलावा छोटे शहरों, कस्बों में ज़रूरी सामान की बेहद किल्लत होने की ख़बरें सामने आई हैं।
अस्पतालों में पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट और दूसरी ज़रूरी चीजों की कमी होने के कारण डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ़ में शामिल अन्य लोग बेहद ख़राब स्थितियों में काम कर रहे हैं।
84,000 लोगों पर एक आइसोलेशन बेड, 36,000 लोगों पर एक क्वरेंटाइन बेड, प्रति 11,600 भारतीयों पर एक डॉक्टर और 1,826 भारतीयों के लिए अस्पताल में एक ही बेड। ऐसे में कोरोना से कैसे निपटेंगे?
इंदौर के टाटपट्टी बाखल में कोरोना संदिग्धों की स्क्रीनिंग का काम फिर तेज़ हो गया है। शुक्रवार को उन्हीं डाॅक्टरों ने इस बस्ती में कोरोना के संदिग्धों के सैंपल लिए जिन्हें बुधवार को भीड़ ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था और पत्थर मारे थे।
बेंगुलुरू में भी कोरोना वायरस की जांच करने गई एक महिला स्वास्थ्य कर्मी पर 50 लोगों ने हमला कर दिया। इससे पहले इंदौर में जांच करने पहुंचे डॉक्टर्स को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया था।
कोरोना वायरस और उसके साथ जुड़ी आशंकाओं पर हर रोज़ तरह तरह की नई बातें और नए सवाल सामने आ रहे हैं। अभी तक माना जा रहा है कि भारत ने वक्त रहते कदम उठाकर अपने लोगों को काफ़ी हद तक सुरक्षित कर लिया है। लेकिन पिछले दिनों एक ही कांड ऐसा हो गया जो लगातार भयावह स्वरूप लेता जा रहा है। ऐसे में क्या सवाल उठते हैं और क्या समाधान दिखते हैं इसपर एक ख़ास बातचीत आशुतोष और शीतल के साथ।
डब्ल्यूएचओ के विशेष राजदूत डैविड नाबरो का कहना है कि जब भारत में पॉजिटिव केस की संख्या अपेक्षाकृत कम था तभी लॉकडाउन कर देने से नये वायरस को फैलने से रोकने के लिए समय मिल गया।
मुख्यमंत्रियों के साथ टेलीकांफ्रेंसिंग में प्रधानमंत्री ने कहा कि लॉकडाउन को एक साथ हटाने के बजाय अलग-अलग समय पर हटाया जाए। इसका मतलब है कि सरकार के पास इस मामले में स्पष्टता नहीं है कि 14 अप्रैल के बाद वह क्या करना चाहती है। यह भी लग रहा है कि प्रधानमंत्री अब ज़िम्मेदारी राज्यों पर डाल देना चाहते हैं। देखिए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की यह विशेष टिप्पणी।
दुनिया भर में कोरोना पॉजिटिव लोगों की संख्या एक मिलियन यानी 10 लाख पार कर गई है। पूरी दुनिया इसकी चपेट में है। तो सवाल है कि एक शहर से यह पूरी दुनिया में आख़िर कैसे पहुँच गया?