लगभग जिस समय दिल्ली में तब्लीग़ी जमात ने धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किया, उसी समय महाराष्ट्र में भी ऐसा आयोजन होने वाला था। लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने इस कार्यक्रम को नहीं होने दिया, जबकि इस साल 22 जनवरी को ही कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति दी जा चुकी थी।
यह कार्यक्रम मुंबई से 50 किमी. दूर वसई में 12-13 मार्च को होना था और इसमें 50 हज़ार लोगों के आने का अनुमान था। लेकिन 6 मार्च को जैसे ही महाराष्ट्र में कोरोना वायरस से संक्रमण के दो मामले सामने आये, राज्य सरकार ने भांप लिया कि इस कार्यक्रम का आयोजन रद्द करना ही ठीक रहेगा और तुरंत इसे रद्द करने का फ़ैसला किया। निश्चित रूप से ऐसा करके सरकार ने एक बड़े ख़तरे को टाल दिया। दिल्ली में तब्लीग़ी जमात का कार्यक्रम 13-15 मार्च तक हुआ था।
राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि अनुमति रद्द किये जाने के बाद भी संगठन की ओर से जब इस कार्यक्रम को आयोजित करने की जिद की गई तो सरकार ने उन्हें क़ानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी।
यहां सवाल यह उठता है कि जब महाराष्ट्र सरकार ने बुद्धिमानी भरा एक्शन लेते हुए इस कार्यक्रम को रद्द कर दिया तो केंद्र और दिल्ली सरकार क्या कर रही थी। दिल्ली पुलिस क्या कर रही थी। जबकि मरकज़ निज़ामुद्दीन और निज़ामुद्दीन पुलिस स्टेशन अगल-बगल में ही हैं। ऐसे में दिल्ली सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकती कि उसने 50 लोगों से ज़्यादा के इकट्ठे नहीं होने का आदेश जारी कर दिया था। लेकिन सरकार को इसका जवाब देना चाहिए कि क्या सिर्फ़ आदेश देने से ही काम हो जायेगा, आदेश का पालन कौन करवायेगा?
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