दिल्ली दंगों में पुलिस ने पाँच एफ़आईआर ऐसी दायर की हैं जो एक-दूसरे की नकल लगती हैं। दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर यह मुद्दा उठाने का फ़ैसला किया है।
इस साल फ़रवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर और जाफ़राबाद समेत कुछ इलाक़ों में सांप्रदायिक दंगे भड़के थे, जिसमें 53 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।
क्या दिल्ली पुलिस इस साल फरवरी में हुए सांप्रदायिक दंगों के बहाने समान नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ आन्दोलन चलाने वालों को फंसाना चाहती है? क्या उसका मक़सद दंगों की जाँच और उसके दोषियों को सज़ा दिलाना नहीं है?
उमर खालिद की रिहाई की माँग को लेकर सैयदा हमीद, प्रशांत भूषण, कन्हैया कुमार जैसे एक्टिविस्टों ने बयान जारी किया है। उन्होंने दिल्ली हिंसा में दिल्ली पुलिस की जाँच पर सवाल उठाए हैं।
दिल्ली के दंगों में स्पेशल सेल ने उमर ख़ालिद को कल रात गिरफ़्तार कर लिया है। उन पर यूएपीए लगाया गया है। इस गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ देश-विदेश में व्यापक प्रतिक्रिया हुईं हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक हाल ही में रिटायर हुए जस्टिस लोकुर समेत 66 बुद्धिजीवियों ने इसके ख़िलाफ़ बयान दिया है, शीतल पी सिंह का विश्लेषण।
दिल्ली दंगों में पूरक चार्जशीट दाखिल की गयी है। जिसमें सीताराम येचुरी, योगेन्द्र यादव, अपूर्वानंद, जयति घोष और राहुल राय के नाम डाले गये हैं। योगेन्द्र यादव से आशुतोष की बातचीत। क्यों उमर ख़ालिद को गिरफ्तार किया गया!
जूलियो रिबेरो के बाद अब 9 और पूर्व आईपीएस अफ़सरों ने दिल्ली दंगों की जाँच पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव को खुला ख़त लिखा है और कहा है कि दिल्ली दंगा जाँच में खामियाँ हैं।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा, लेखक अरुंधती रॉाय, फ़िल्मकार सईद मिर्ज़ा सहित लेखन, कला, शिक्षा से जुड़ी 36 हस्तियों ने जेनएयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की गिरफ़्तारी का विरोध किया है।
क्या दिल्ली पुलिस दिल्ली दंगों की आड़ में मोदी सरकार का खुलकर विरोध करने वालों को निशाना बना रही है? क्या दिल्ली दंगों के बहाने मोदी सरकार की नीतियों की जमकर आलोचना करने वाले बुद्धिजीवियों को कठघरे में खड़ा कर रही है?
जूलियो रिबेरो बेदाग़ प्रोफेशनल छवि के लिए मशहूर पुलिस अफ़सर रहे हैं। दिल्ली पुलिस कमिश्नर को रिबेरो की लिखी एक चिट्ठी सामने आई है, जिसमें उन्होंने दिल्ली दंगों की जाँच पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि ‘सच्चे देशभक्तों' को घसीटा जा रहा है।
एक हज़ार से ज़्यादा बुद्धिजीवियों, कलाकारों, लेखकों और कार्यकर्ताओं ने दिल्ली पुलिस को चिट्ठी लिख कर आरोप लगाया है कि उसने लोगों पर दबाव डाल कर मनमाना, बेबुनियाद व मगढंत कबूलनामा लिया है, जिससे दंगों में लोगों को फँसाने की कोशिश की गई है।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दिल्ली दंगों में पुलिस पर पक्षपात बरतने के आरोप तो लगाए ही हैं, केंद्र सरकार को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। ज़ाहिर है एमनेस्टी की रिपोर्ट का भारत के हितों और मोदी सरकार की छवि पर व्यापक असर पड़ने वाला है। वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
दिल्ली दंगे पर एक किताब के लॉन्च इवेंट पर विवाद के बाद अब इसके प्रकाशक ब्लूम्सबरी इंडिया ने किताब के प्रकाशन से हाथ खींच लिए हैं। बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के नाम पर विवाद हुआ था।
देश की राजधानी दिल्ली में अगर पत्रकारों को मारा-पीटा जाए और महिला पत्रकार के साथ सार्वजनिक तौर पर यौन दुर्व्यवहार किया जाए तो इसके क्या मायने निकाले जाएं? क्या ये आने वाले भयावह समय के संकेत नहीं हैं? पेश है वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट