दिल्ली के लेफ़्टीनेंट गवर्नर अनिल बैजल ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों पर हुए हमले की कड़ी निंदा करते हुए पुलिस से कहा है कि वह कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में रविवार शाम को हिंसा भड़क गई। दर्जनों नकाबपोश लोगों ने कैंपस में छात्रों और अध्यापकों पर हमला कर दिया। इसमें विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष गंभीर रूप से घायल हो गईं।
1973 में गुजरात के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में खाने-पीने की चीजों की कीमत बढ़ाए जाने पर छात्रों का एक ऐसा आंदोलन शुरू हुआ जिसकी ज्वाला देश भर में फैल गयी और यह तत्कालीन सरकार के पतन का कारण भी बनी। जेएनयू के छात्र आंदोलन को हल्के-फुल्के ढंग से लेने वाली सरकार को समझना चाहिए कि ये एक बड़े आंदोलन का आगाज भी हो सकता है। सुनिए, क्या कहा वरिष्ठ पत्रकार शैलेश ने।
जब आँखों के सामने एक संस्था को बर्बाद किया जा रहा हो, सिर्फ़ इसलिए कि वह दक्षिणपंथ की राह पर चलने को तैयार नहीं है तो इसे देश की बदक़िस्मती ही कहा जायेगा।
एचआरडी सेक्रेटरी ने ट्वीट कर कहा है कि जेएनयू प्रशासन ने पिछले फ़ैसले से बड़ा रोलबैक किया है। छात्र आंदोलन छोड़कर कक्षाओं में जाएँ जबकि छात्रों का कहना है कि यह आंदोलन में बँटवारे की साज़िश है और आंदोलन जारी रहेगा। क्या है पूरा मामला, देखिए शीतल के सवाल में।
जेएनयू के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार और दूसरे छात्रों के ख़िलाफ़ 'राजद्रोह' का मुक़दमा चलाने के लिए दिल्ली सरकार पुलिस को मंज़ूरी नहीं देगी। क्या अब कन्हैया कुमार इससे बच जाएँगे?
क्या इतिहासकार रोमिला थापर के बहाने एक और जेएनयू पर फिर से हमले की कोशिश है? बिल्कुल कन्हैया कुमार की तरह? प्रोफ़ेसर इमेरिटस रोमिला से जेएनयू ने क्यों सीवी जमा करने को कहा? क्यों 'राजनीतिक कार्रवाई' करने के आरोप प्रशासन पर लगाए जा रहे हैं? देखिए आशुतोष की बात में क्या है इसकी वजह।
प्रख्यात इतिहासकार और जेएनयू में प्रोफ़ेसर इमेरिटस रोमिला थापर ने कहा है कि जेएनयू प्रशासन द्वारा सीवी यानी जीवन परिचय एक ‘मक़सद’ से माँगा गया है और इसे भाँपना कोई मुश्किल काम नहीं है।
मोदी सरकार की नीतियों की आलोचक रहीं इतिहासकार रोमिला थापर को क्या जेएनयू में प्रोफ़ेसर इमेरिटस पद से हटाने की तैयारी की जा रही है? ऐसा नहीं है तो जेएनयू प्रशासन ने उनसे सीवी जमा करने को क्यों कहा है?