राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी की अंतिम सूची के प्रकाशन के साथ ही अराजकता का माहौल दिख रहा है। जहाँ सूची में नाम न रहनेवाले व्यक्ति आतंकित हैं, वहीं सरकार की इस पर कोई साफ़ नीति नहीं बनी हुई दिख रही है। सत्य हिंदी
एनआरसी को लेकर अख़बार के पहले पन्ने पर सुर्खी के तौर पर यह संख्या नाटकीय लगती है। यह संख्या कैसे हासिल हुई और इसके क्या मायने हैं? गणित का सवाल होगा, कितने में कितना घटाने से यह 19,06,657 की संख्या मिलेगी?
एनआरसी के अंतिम सूची से कोई ख़ुश है क्या? छात्र से लेकर संगठनों के नेता, बीजेपी की सहयोगी पार्टी और सरकार के मंत्री तक खफा हैं। एनआरसी लाने वाले लोग ही नाराज़ क्यों है?
नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस की सूची जारी कर दी गई है और 19 लाख उससे बाहर रह गए हैं। तो क्या ये सारे लोग विदेशी हैं? और क्या यह खेल पूरे देश में दुहराया जाएगा?
जिस बीजेपी ने एनआरसी को सबसे बड़ा च़ुनावी मुद्दा बनाया था और पूरे राज्य में इसकी लहर फैला दी थी, वह अब नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस का विरोध भला क्यों कर रही है?
एनआरसी की सूची से बाहर रह गए 19 लाख लोगों के पास क्या विकल्प हैं? उनके साथ क्या सलूक किया जाएगा और वे अंत में कहाँ जाएंगे, इस पर अलग अलग तरह की बातें कही जा रही हैं।
असम में एनआरसी पर काफ़ी शख्त रही बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार अब नरम क्यों पड़ गई है? सरकार ने एनआरसी से बाहर रह गए लोगों को राहत देने की घोषणा की है।