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एनआरसी पर अराजकता! 19 लाख लोगों को कैसे संभालेगी सरकार?

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी की अंतिम सूची के प्रकाशन के साथ ही अराजकता का माहौल दिख रहा है। जहाँ सूची में नाम न रहनेवाले व्यक्ति आतंकित हैं, वहीं सरकार की इस पर कोई साफ़ नीति नहीं बनी हुई दिख रही है। सिर्फ़ सरकार यह आश्वासन दे रही है कि सूची में नाम न रहनेवाले विदेशी नहीं होंगे, इन्हें हिरासत में नहीं लिया जाएगा और न ही इनके अधिकारों में कोई कटौती होगी। साथ ही ये 120 दिनों के अंदर विदेशी न्यायाधिकरण में अपील कर सकते हैं। गृह मंत्रालय ने तो यहाँ तक कह दिया है कि असम में 200 नए न्यायाधिकरणों ने 2 सितंबर से काम करना शुरू कर दिया है। लेकिन जब 120 दिन पूरे हो जाएँगे तो क्या होगा? क्या सरकार स्थिति संभाल पाएगी? क्या सरकार ने पूरी व्यवस्था बनाई है? इन सबसे हक़ीकत कुछ अलग ही है।

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विदेशी न्यायाधिकरण में जाने का मतलब होगा क़ानूनी प्रक्रिया। विदेशी न्यायाधिकरण में किसी को विदेशी क़रार दिया गया तो वह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकेगा। इससे पता चलता है कि यह क़ानूनी लड़ाई लंबी चलेगी। जो विदेशी क़रार भी दिए गए उन्हें बांग्लादेश भेजा नहीं जा सकता। बांग्लादेश के साथ प्रत्यर्पण संधि नहीं है। इसलिए बांग्लादेश इतने सारे लोगों को लेगा, यह कोरी कल्पना के सिवाए कुछ नहीं है।

असम में विदेशी क़रार दिए गए लोगों को रखने के लिए छह डिटेंशन सेंटर हैं। ये कैंप ग्वालपाड़ा, कोकराझाड़, तेजपुर, जोरहाट, डिब्रूगढ़ और सिलचर की जेलों में हैं। इन डिटेंशन सेंटरों में फ़िलहाल 1145 विदेशी क़रार दिए गए लोग रह रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सेंटरों में जिन्होंने तीन साल पूरे कर लिए हैं उन्हें कुछ शर्तों के साथ छोड़ा जा रहा है। डिटेंशन कैंपों में रह रहे 335 लोगों ने तीन साल से अधिक का समय गुजार लिया है और सशर्त रिहाई के लिए योग्य हो गए हैं। लोगों की विस्तृत बॉयोमैट्रिक जानकारी जुटा ली गई है। इन्हें छोड़ा भी जा रहा है।

असम में असम समझौते के तहत 24 मार्च 1971 के बाद आए और भारतीय नागरिकता साबित न कर पानेवाले सभी अवैध घुसपैठिए हैं। पूरे देश में विदेशियों के लिए आधार वर्ष 1951 है, लेकिन असम अकेला राज्य है जहाँ 24 मार्च 1971 तक आए विदेशियों को भी स्वदेशी बनाया गया है।

असम सरकार ने 31 जुलाई को एक रूपरेखा प्रकाशित की जिसके अनुसार तीन साल डिटेंशन कैंप में पूरा करनेवाले घोषित विदेशी को एक बांड एक-एक लाख रुपए के दो भारतीय ज़मानतदारों के साथ जमा कराना होगा। साथ ही डिटेंशन कैंप से रिहा होने के बाद रहनेवाले को पुष्टि किए हुए पते को बताना पड़ेगा। इसके अलावा अपने निकटवर्ती थाने में हर हफ़्ते हाजिरी लगानी होगी। अपने पते में होनेवाले किसी भी बदलाव को तुरंत थाने को बताना होगा। यदि कोई इनका उल्लंघन करता है तो फिर डिटेंशन कैंप में जाना होगा।

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डिटेंशन कैंपों में रखने का संकट

एनआरसी की अंतिम सूची के बाद क़ानूनी प्रक्रिया में भी ज़्यादा लोग विदेशी क़रार दिए गए तो इन्हें रखने का संकट पैदा होगा। सरकार यदि डिटेंशन कैंपों में रखती है तो करोड़ों का ख़र्च महीने में होगा। इन सब पर सरकार की कोई स्पष्ट नीति नहीं बनी है। सरकार ने नए 200 विदेशी न्यायाधिकरणों के काम करने की जो बात कही है वह भी पूरी तरह से सही नहीं है। विदेशी न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति हुई है। लेकिन कार्यालय वगैरह अब भी पूरी तरह तैयार नहीं हैं। अक्टूबर के पहले हफ़्ते तक इनके काम करने लगने के सक्षम होने की संभावना है।

असम में पहले से सौ विदेशी न्यायाधिकरण हैं। इनमें दो लाख से ज़्यादा मामले चल रहे हैं। अब एनआरसी सूची से ग़ायब 19 लाख लोगों के मामले देखने के लिए नए एक हज़ार विदेशी न्यायाधिकरण बनाने की घोषणा सरकार ने की थी। पर इन्हें बनने में वक़्त लगेगा। सरकार ने सूची में नाम न रहनेवाले लोगों को अपील के लिए 120 दिनों का समय दिया है। अब ऐसे में यहाँ एक बड़ी अराजकता होगी।

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पहले से विदेशी घोषित लापता क्यों?

असम में पहले ही विदेशी न्यायाधिकरणों द्वारा विदेशी घोषित लगभग एक लाख व्यक्ति लापता हैं। एनआरसी की सूची में नहीं आए 19 लाख में से बड़ी संख्या में लोग शायद डर के मारे विदेशी न्यायाधिकरण में अपील को जाएँगे ही नहीं। देश के अन्य प्रांतों में जहाँ यह समस्या नहीं है वहाँ चले जाएँगे। जब पुलिस पहले घोषित एक लाख बांग्लादेशियों को पकड़ नहीं पाई और वे लापता हैं तो फिर इनको लेकर हो-हल्ला करने से कुछ होगा यह तो हवा-हवाई ही लगता है।

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राजीब कुमार सिंघी

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