loader

एनआरसी में छूटे लोग ख़ौफ़जदा, पर लंबी लड़ाई के लिए तैयार

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची में नाम न आने वाले लोगों का दर्द उनके चेहरे पर साफ़ झलकता है। एक ग्लानि महसूस होती है। इसमें से कई लोग बेहद दुखी हैं कि भारतीय होते हुए भी एनआरसी में उनका नाम नहीं है। साथ ही उन्हें डर सता रहा है कि आगे क्या होगा?

सम्बंधित खबरें

हिन्दू-मुसलिम समीकरण बेमानी!

भले ही राजनीतिक पार्टियाँ कुछ लोगों के नाम एनआरसी में न आने को हिंदू-मुसलिम जनसंख्या के आँकड़ों के हिसाब से देखें लेकिन एनआरसी में ऐसा कुछ नहीं है। गोलाघाट के सरुपथार के काली बाड़ी में ताम्रपत्र पुरस्कार प्राप्त स्वतंत्रता सेनानी शशिन्द्र नाथ भट्टाचार्य का परिवार रहता है। काली बाड़ी हाईस्कूल के सेवानिवृत शिक्षक तथा दो नबंर कालीबाड़ी गांव के समीर भट्टाचार्य, उनकी पत्नी चंपा भट्टाचार्य, पुत्री सुशोभिता और कालिका के नाम एनआरसी की अंतिम सूची में नहीं हैं, जबकि शशिन्द्र को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सरकारी कार्यक्रम में सम्मानित भी किया गया था।
समीर कहते हैं कि उन्होंने 1971 में मैट्रिक परीक्षा पास करने का प्रमाण पत्र दिया था, साथ ही 1951 की एनआरसी से पिता का लीगेसी डाटा भी दिया था। फिर भी नाम नहीं आया। उनके चेहरे पर चिंता स्पष्ट झलक रही है।

12 घंटे का नोटिस

कामरूप ज़िले के सोनतली गाँव के रहमतुल्ला कहते हैं, ‘अंतिम समय में हमें सिर्फ 12 घंटे का नोटिस देकर 300-400 किमी दूर ऊपरी असम पुनःसत्यापन के लिए बुलाया गया। हम थकाऊ यात्रा और कष्ट की अनदेखी करते हुए भी गए। सुनवाई ठीक रही। इसके बाद भी हमारे गांव के काफी लोगों का नाम एनआरसी की अंतिम सूची में नहीं हैं।’
रहमतुल्ला कहते हैं, ‘हम एक शुद्ध एनआरसी चाहते हैं, जिसमें एक भी विदेशी का नाम न हो। लेकिन हम जैसे ग़रीब लोग शुरू से ही परेशान किए जाते रहे। इस कार्य में लग कर हमारे पास अब पैसे भी नहीं बचे हैं और हमें एक और क़ानूनी लड़ाई के लिए तैयार होना होगा।’

'सारे काग़ज़ात दिए, फिर भी गड़बड़ी!'

डिब्रूगढ़ निवासी शंकर राय कहते हैं कि अंतिम सूची से उनके और परिवार के दो सदस्यों के नाम हटा दिए गए। वे एनआरसी की प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘हमने सभी काग़ज़ात दिए थे। आधार कार्ड भी दिया था। मैं सुनवाई के लिए भी गया था। पर मेरा और परिवार के दो सदस्यों का नाम नहीं आया। मुझे पता नहीं कि क्या गड़बड़ हुई।’ उन्होंने जो भी काग़ज़ात मांगे, मैंने दिए।

'मसौदे में नाम, अंतिम सूची में नहीं'

डिब्रूगढ़ के अभिजीत शील कहते हैं कि ‘31 दिसंबर 2017 को आए पहले प्रारूप में मेरा और मेरी माँ का नाम था। लेकिन आज जब मैंने अपना नाम खोजा तो मुझे हैरत हुई कि मेरा और माँ का नाम नहीं है। मुझे इसका कारण पता नहीं।’ शील का कहना है कि किसी ने उनके ख़िलाफ़ शिकायत की तो उन्हें सुनवाई के लिए बुलाया गया। हमने फिर से काग़ज़ात दिए। फिर भी नाम नहीं आया।

'नदी काट ले गई ज़मीन'

बरपेटा के तफजुल्ल अली के सिर पर तो जैसे पहाड़ ही टूट गया है। प्रारूप एनआरसी में नाम रहने के बाद अंतिम एनआरसी से उनका नाम गायब है। एनआरसी की सूची में शामिल होने के लिए ज़मीन के जो काग़ज़ात दिखाए थे, वह ज़मीन अब नहीं रही। इस साल आई बाढ़ में अली का घर और ज़मीन बाढ़ और कटाव में बह गए। इसके बाद वे गृहहीन हो गए। अली कहते हैं, ‘अब मैं क्या करूंगा। मेरे पास न घर है और न ज़मीन। सिर्फ काग़ज़ात हैं। यदि विदेशी न्यायाधिकरण ने इन्हें नहीं माना तो मैं क्या करुंगा?’ बेकी नदी द्वारा सब बहा ले जाने के बाद अली कोईमारी के एक नए इलाक़े में रह रहे हैं। 
वकील शाहजान अली कहते हैं कि जिनके नाम सूची में नहीं हैं उन्हें पहले एनआरसी सेवा केंद्रों से नाम रद्द करने की प्रामाणिक प्रति हासिल करनी होगी। इसमें यह लिखा होना होगा कि क्यों नाम शामिल नहीं किया गया है। उसके बाद 120 दिनों के अंदर विदेशी न्यायाधिकरणों में आवेदन किया जा सकेगा।

इन सबके बीच एनआरसी के आला अधिकारियों का नाम न छापने की शर्त पर कहना है कि जिन्होंने भी आवेदन किया था उनके काग़ज़ात सुरक्षित डाटा बेस में रखे गये हैं। ज़रूरत पड़ने पर प्रत्येक व्यक्ति के काग़ज़ात को देखा जा सकेगा।
यही नहीं प्रत्येक सुनवाई और सत्यापन के मामलों से संबंधित काग़ज़ात भी रिकार्ड में हैं। यह हार्ड और सॉफ्ट दोनों रूप में मौजूद है। एनआरसी के राज्य समन्वयक प्रतीक हाजेला और राज्य के मुख्य मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को सुप्रीम कोर्ट एक बार एनआरसी के मामले में मीडिया में बोलने के लिए ज़बरदस्त फटकार लगा चुका है।
एनआरसी में जिनका नाम नहीं आया है, वे लोग परेशान हैं। इसलिए उनकी चिंताएँ बढ़ी हैं। विदेशी न्यायाधिकरण और अदालत में चलने वाली क़ानूनी लड़ाई में समय और पैसा दोनों जाएगा। लड़ाई लंबी है। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
राजीब कुमार सिंघी

अपनी राय बतायें

असम से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें