पिछले हफ्ते दिल्ली उच्च न्यायालय ने नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इक़बाल तन्हा की ज़मानत याचिका पर कहा कि यूएपीए का उपयोग आतंकवाद की वास्तविक घटनाओं में किया जाए, सरकार विरोधी असंतोष या विरोध प्रदर्शन के मामलों में नहीं।
उत्तर प्रदेश के हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत पिछले दो सालों में निरुद्ध 41 लोगों में (जिनमें 90 फ़ीसदी अल्पसंख्यक थे) 30 की गिरफ़्तारी ग़लत क़रार दी। नौकरशाही को आख़िर हुआ क्या है?
देश में पुलिस के बेजा इस्तेमाल पर रोक लगाने का संवैधानिक समाधान नहीं निकाला जाएगा, तो देश को पूरी तरह पुलिस स्टेट में तब्दील होने से नहीं रोका जा सकेगा। यूपी में एनएसए का इस्तेमाल इसका उदाहरण है।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) का दुरुपयोग किस तरह करती है और इसके जरिए किस तरह ख़ास समुदाय के लोगों को निशाने पर लेती है, इसे इलाहाबाद हाई कोर्ट के कुछ मामलों से समझा जा सकता है।
उत्तर प्रदेश में एनएसए यानी राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के इस्तेमाल पर सवाल उठते रहे हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 120 मामलों में से 94 मामलों को खारिज कर दिया और हिरासत में लिए गए आरोपियों को रिहा करने का आदेश दिया।
राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के नाम पर आप किसी को भी पकड़कर जेल में डाल दें, यह उचित नहीं। गिरफ़्तार व्यक्ति को साल भर तक न ज़मानत मिले, न ही अदालत उसके बारे में शीघ्र फ़ैसला करे, यह अपने आप में अन्याय है। पढ़ें डॉक्टर वेद प्रताप वैदिक का लेख।