वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बढ़ रहे तनाव को कम करने और वहाँ से अतिरिक्त सैनिकों की वापसी के लिए भारत और चीन कूटनीतिक प्रयास जल्द ही शुरू करने जा रहे हैं। इसकी पूरी संभावना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीनी सुरक्षा सलाहकार दाई बान्गगुओ के बीच बातचीत हो।
इसके लिए दोनों के बीच तय वर्किंग मैकेनिज़्म प्रक्रिया चालू कर दी गई है। मनमोहन सिंह की सरकार ने चीन के साथ मिल कर 2012 में वर्किंग मैकेनिज़्म फ़ॉर कंसलटेशन एंड कोऑर्डिनेशन (डब्लूएमसीसी) की नींव डाली थी। उस समय चीन में भारत के राजदूत एस. जयशंकर ने इस पर दस्तख़त किया था।
देश से और खबरें
क्या है डब्लूएमसीसी?
यह मैकेनिज़म दरअसल कई चरणों में होने वाली प्रक्रिया है, जिसके तहत सीमा पर किसी तरह के तनाव की स्थित में कई स्तरों पर बातचीत की जाती है। इसके तहत पहले सेना के स्थानीय कमान्डर बात करते हैं, उसके बाद दोनों देशों के रक्षा सलाहकार बात करते हैं, उसके बाद दोनों देशों के विदेश मंत्री बात करते हैं। यदि मामले का निपटारा इससे भी नहीं होता है तो अंत में भारत के प्रधानमंत्री चीनी राष्ट्रपति से बात करते हैं।मौजूदा संकट में दोनों सेना के स्थानीय कमांडरों ने बातचीत की, जो नाकाम रही। अगले चरण के रूप में अजित डोभाल चीनी सुरक्षा सलाहकार बान्गगुओ से बात करेंगे।
इस मैकेनिज़्म के तहत स्थायी टीम बनी हुई है जो पूरे मामले पर निगरानी रखती है और ज़रूरत पड़ने पर सलाह मशविरा करती है और प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है। विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पूर्व एशिया) नवीन श्रीवास्तव भारतीय पक्ष की अगुवाई करते हैं जबकि चीनी टीम की अगुआई सीमा व महासागर विभाग के निदेशक हॉन्ग लियांग करते हैं। इस टीम ने 2012 से 2019 के बीच 14 बैठकें की हैं।
सीमा पर सद्भाव!
इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर के मुताबिक इस टीम की पिछली बैठक में सीमा पर बेहतर समन्वय और बेहतर सीमा प्रबंध पर ज़ोर दिया गया था। यह तय हुआ था कि सीमा पर शांति व सद्भाव बनाए रखी जाए। इस बार भारत की ओर से श्रीवास्तव पूरे मामले पर निगरानी रखे हुए हैं और बातचीत की कोशिश कर रहे हैं।पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीनी सैनिक ‘होल्डिंग द लाइन’ की नीति पर चल रहे हैं। यानी सीमा के जिस इलाक़े तक उनका नियंत्रण बना हुआ है, वे उसे बनाए रखना चाहते हैं और उससे थोड़ा भी पीछे खिसकना नहीं चाहते।
मामला क्यों भड़का?
यही नीति भारतीय सेना की भी है। इसलिए दोनों तरफ के सैनिक एक सीमा तक गश्त लगा कर लौट आते हैं और कोई समस्या नहीं होती है। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इस बार समस्या इससे हुई है कि चीनी सैनिक आगे निकल आए हैं और जिस जगह पहुँच गए हैं, वहाँ से पीछे नहीं हट रहे हैं। यह भारतीय सैनिकों को मंज़ूर नहीं है।कोई तय सीमा रेखा नहीं होने से जो जहाँ तक है, वह वहाँ तक अपना कब्जा मानता है और आगे बढ़ने की जुगाड़ में लगा रहता है। इससे दूसरा पक्ष भड़कता है और मामला बढ़ने लगता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है।
सैनिक जमावड़ा कैसे?
अमूमन एक टुकड़ी में 25-30 सैनिक होते हैं। पर इस बार चीनी सैनिक आगे बढ़ कर एक जगह जम गए और भारतीय सैनिकों की ओर से पीछे हटने की गुजारिश करने पर भी नहीं माने तो संकट हुआ। इसके बाद चीनी कमांडर ने अतिरिक्त सैनिक भेज दिए जो पहले से तैनात सैनिकों के साथ मिल गए। इस तरह जमावड़ा बढ़ता गया।इस बार संकट बढ़ता जा रहा है। दोनों देशों के राजदूत सक्रिय हैं और अपनी-अपनी सरकारों को जानकारी भेज रहे हैं। बीजिंग में तैनात भारतीय राजदूत विक्रम मिसरी और नई दिल्ली में मौजूद चीनी राजदूत सुन वोइदोंग अपनी-अपनी सरकारों को ग्राउंड रिपोर्ट भेज रहे हैं।
क्या कहना है भारत का?
भारत का साफ़ कहना है कि चीनी सैनिकों ने अपनी सीमा रेखा पार की है और भारतीय क्षेत्र में आ गए, उन्हें तुरन्त वापस जाना चाहिए। नई दिल्ली का यह भी कहना है कि भारतीय सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा का पूरा सम्मान कर रहे हैं।विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि सरकार को अपनी जगह स्थिर रहनी चाहिए और चीन पर दबाव डालना चाहिए कि उसके सैनिक पीछे हटें। अपनी पोजीशन पर टिके रहने से कुछ दिन बाद चीन सैनिकों को पीछे हटाने पर राज़ी हो जाएगा।
बयानबाजी से बचना ज़रूरी
पर्यवेक्षकों का यह भी मानना है कि इसके साथ ही किसी भी सूरत में भारत के किसी आदमी को ग़ैरज़िम्मेदारना बयान देने से बचना चाहिए और किसी तरह मामले को बढ़ाना नहीं चाहिए, भड़काऊ बातें नहीं करनी चाहिए। चीन ने भी कोई बड़ा बयान नहीं दिया है।भारत में इस पर दिक्क़त है। भारत के सत्तारूढ़ दल में बयानवीरों की भरमार है जो किसी भी मुद्दे पर बढ़ चढ़ कर बोलने लगते हैं।
सत्तारूढ़ दल बीजेपी की नीति ही उग्र राष्ट्रवाद को बढ़ावा देकर लोगों को अपनी ओर किए रहने की है। मौजूदा मामला इस उग्र राष्ट्रवाद के नैरेटिव में बिल्कुल फिट बैठता है।
चीन को डेमनाइज़ करने से नुक़सान
इसके साथ ही बीजेपी के आईटी सेल और उनके भक्त मीडिया का भी है। वे अपने काम में लग गए हैं, बीजेपी की साइबर सेना चीनी उत्पादों के बॉयकॉट करने की अपील में लग चुकी है। इसी तरह मीडिया का एक वर्ग चीन के रूप में एक काल्पनिक शत्रु को ढूंढ चुका है। वह चीन को पूरी मानवता के लिए शत्रु साबित करने पर तुला हुआ है।इस तरह के चीन विरोधी ‘रेटॉरिक’ खड़े करने और बीजिंग को ‘डेमनाइज़’ करने से चीनी सत्ता के लोग भड़केंगे, वे अपना रवैया कड़ा करेंगे और बातचीत में अड़ियल रवैया अपनाएंगे, यह तय है।
अपनी राय बतायें