दुनिया के सबसे बड़े साझा बाज़ार (रिसेप) की घोषणा वियतनाम में हो गई है। इसमें 15 देश शामिल होंगे और अगले दो वर्ष में यह चालू हो जाएगा। साझा बाज़ार का अर्थ यह हुआ कि इन सारे देशों का माल-ताल एक-दूसरे के यहाँ मुक्त रूप से बेचा और खरीदा जा सकेगा।
भारत ने आरसीईपी पर हस्ताक्षर से इनकार कर दिया। तो प्रधानमंत्री मोदी बैंकॉक से खाली हाथ क्यों लौटे? राजनीतिक हलकों में क्यों यह चर्चा है कि मोदी ने इसलिए आख़िरी क्षण में हाथ खींचे क्योंकि कांग्रेस और सोनिया गाँधी ज़ोर शोर से विरोध कर रही थीं? सत्य हिंदी पर देखिए शैलेश की रिपोर्ट।
भारत ने आरसीईपी पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है। डेरी उत्पादों पर आशंका है कि देश के किसान बर्बाद हो जाएँगे। आख़िर क्यों न्यूज़ीलैंड से जैसे छोटे देश के आगे टिकने के काबिल नहीं हैं?
भारत ने रीजनल कॉम्प्रेहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में शामिल होने से इनकार बिल्कुल अंत में किया। प्रधानमंत्री का कहना है कि भारत की चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया।
सस्पेंस ख़त्म हो गया है। आख़िरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैंकॉक में एलान कर दिया कि भारत आरसीईपी के समझौते पर दस्तख़त नहीं करेगा। यानी दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक सहयोग समूह में भारत शामिल नहीं होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ़ शब्दों में कह दिया है कि भारत क्षेत्रीय आर्थिक संगठन आरसीईपी में शामिल नहीं होगा। सीमा शुल्क और बाज़ार खोलने के मुद्दे पर भारत की चिंताओं को दुरुस्त नहीं किया गया है।