क्या है आरसीईपी
आरसीईपी एक क्षेत्रीय व्यापार संगठन है, एक तरह का मुक्त व्यापार क्षेत्र है, जिसके सदस्य देश एक दूसरे के यहाँ अपने उत्पाद बग़ैर किसी सीमा शुल्क या अपेक्षाकृत कम सीमा शुल्क के बेच सकते हैं। इसमें भारत छोड़ 15 देश होंगे। यह मूल रूप से आसियान यानी एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स समूह के साथ दूसरे 5 देशों का गठबंधन है। आसियान के सदस्य देश हैं-ब्रूनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीफीन्स, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम। इसमें 5 देश जुड़ने वाले हैं-चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैड। भारत ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया है।
भारत जुड़ गया होता तो यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र होता। साल 2017 के एक अध्ययन के अनुसार, आरसीईपी में कुल 3.4 अरब लोग हैं और उनकी अर्थव्यवस्थाओं का कुल नेटवर्थ 49.5 खरब डॉलर था। यह दुनिया की कुल जीडीपी का 39 प्रतिशत था।
चौंकाने वाला फ़ैसला
प्रधानमंत्री के एलान करने के बाद लोग इसलिए चौंके क्योंकि इसमें शामिल नहीं होने का फ़ैसला बहुत देर से आया था और बिल्कुल यकायक हुआ था। भारत ने यह संकेत दे रखा था कि वह इसमें शामिल होने जा रहा है।इन तीनों सलाहकारों के साथ उद्योग और व्यापार जगत के प्रतिनिधियों की एक बैठक 26 दिसंबर को लखनऊ में हुई थी। समझा जाता है कि इस बैठक में इन लोगों ने व्यापार, सेवा और निवेश, इन तीनों ही मामलों में घनघोर आपत्ति जताई थी और ज़ोर देकर कहा था कि इससे भारत को नुक़सान होगा।
मुक्त व्यापार क्षेत्र
यदि भारत आरसीईपी में शामिल हो गया तो अगले 20 साल तक लगभग 80 प्रतिशत उत्पादों के मामले में यह पूरी तरह मुक्त क्षेत्र हो जाएगा, यानी, कोई कर नहीं लगेगा। कुछ उत्पादों पर ही भारत सीमा शुल्क लगा सकेगा।यही वह बिन्दु है, जिस पर भारत सरकार को गंभीरता से विचार करना पड़ा और अपने पैर पीछे खींचने पड़े।
व्यापार असंतुलन
इसकी वजह समझने के लिए आसियान और भारत के बीच के व्यापार असंतुलन पर ध्यान देते हैं। साल 2017-18 में आशियान के 10 देशों से भारत ने 47 अरब डॉलर का आयात किया था, 33.8 अरब डॉलर का निर्यात किया था, कुल 80.8 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। कुल मिला कर 13.3 अरब डॉलर का ट्रेड गैप यानी आयात-निर्यात में अंतर रह गया था।आरसीईपी के 15 देशों के साथ भारत का आयात-निर्यात अंतर कुल मिला कर 105 अरब डॉलर का है। इसमें भारत ने सिर्फ़ 60.20 अरब डॉलर का निर्यात किया था, लेकिन 165.20 अरब डॉलर का निर्यात किया था। पर्यवेक्षकों का कहना है कि यद भारत आरसीईपी में शामिल हो जाता तो यह ट्रेड-गैप और ज़्यादा बढ़ता।
- भारत निवेश और सेवा क्षेत्र को भी खोलना चाहता था।
- सेवा क्षेत्र खुलने से इन्डोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों में भारत की निर्माण कंपनियों, कंप्यूटर सेवा कंपनियों को फ़ायदा होता।
- इसी तरह निवेश क्षेत्र को मुक्त करने से जापानी कंपनियों से भारत को पैसे मिल पाते।
- चीन से बढ़ते व्यापार असंतुलन पर मोदी ने राष्ट्रपित शी जिनपिंग से बात की थी, उन्होंने कोई ख़ास तवज्जो नहीं मिली।
- मलेशिया ने जिस तरह कश्मीर पर पाकिस्तान का साथ दिया, मोदी इससे भी चिढ़े हुए थे।
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