भारत की जनता ने महाराष्ट्र, हरियाणा के चुनाव परिणाम से देश की सरकार को सबक सिखाया है कि अगर सरकार ने अपना ढर्रा नहीं बदला तो वह बग़ावती तेवर अख़्तियार कर लेगी।
सऊदी अरब पर यमन के बाग़ियों ने जो हमला किया है, उससे सारी दुनिया में ख़तरे की घंटियाँ बजने लगी हैं क्योंकि दुनिया के देशों को सबसे ज़्यादा तेल देनेवाला देश यही है। लेकिन भारत क्यों तमाशबीन बना हुआ है?
यदि तालिबान से अमेरिका और पाकिस्तान बात कर रहे हैं तो वह बात इसीलिए हो रही है कि काबुल की सत्ता उन्हें कैसे सौंपी जाए? यदि सत्ता उन्हें ही सौंपी जानी है तो चुनाव का ढोंग किसलिए किया जा रहा है?
आनंद ने यदि यह भ्रष्टाचार किया है तो किसके दम पर किया है? देश में सैकड़ों मायावतियाँ हैं और हजारों आनंद हैं? क्या देश में एक भी नेता ऐसा है, जो कह सके कि मेरा दामन साफ़ है?
कर्नाटक और गोवा में हुए राजनीतिक घटनाक्रम ने नेताओं की कार्यशैली को लेकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। दल-बदलू विधायकों के संबंध में सख़्त क़ानून बनाया जाना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने का कहना है कि हुर्रियत के नेता अब कश्मीर के मसले को बातचीत से हल करना चाहते हैं। तो क्या यह शांति की पहल के संकेत हैं?
भारत ने बालाकोट हमले और उसके बाद की प्रतिक्रियाओं से पाक को सबक सिखा दिया है। यदि अब भी वह अपनी चुनावी मुद्रा धारण किए रहेगा तो उससे पाक पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का यह शपथ-ग्रहण समारोह अपने आप में ऐतिहासिक है, क्योंकि यह ऐसा पहला ग़ैर-कांग्रेसी मंत्रिमंडल है, जो अपने पहले पाँच साल पूरे करके दूसरे पाँच साल पूरे करने की शपथ ले रहा है।
कांग्रेस अब एक लोकतांत्रिक पार्टी नहीं, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन चुकी है। यदि राहुल का इस्तीफ़ा हो ही जाता तो बताइए कि क्या यह कंपनी विधवा नहीं हो जाती? इसका बोझ कौन उठाता?