'उसे कोई पसंद नहीं करता। कोई नहीं। वह अमरीका की पहली औरत राष्ट्रपति नहीं बन सकती। कभी नहीं। जानते हैं उस पागल बर्नी से भी अधिक वामपंथी कौन है? कमला'
अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प के समर्थकों की हर्षध्वनि हर वाक्य के बाद सुनी जा सकती है। हर वाक्य के बाद ट्रम्प ठहरते हैं, जिससे उनके समर्थक उनको शाबाशी दे सकें। फिर वे कहते हैं: 'और क्या नाम है उसका? कामाला! कामाला! कामाला!” फिर वे ठहरते हैं और अपनी समर्थक भीड़ को इशारा करते हैं। ट्रम्प बार-बार कमला का नाम विकृत करके, नाम के हरेक अक्षर को बार-बार खींच-खींच कर बोलते हैं। भीड़ को आनंद आ जाता है।
कमला हैरिस की खिल्ली उड़ाते हुए ट्रम्प कहते हैं, ‘उसे कोई पसंद नहीं करता। यह अमरीका की बेइज्जती होगी कि वह अमरीका की पहली महिला राष्ट्रपति बने।’
लेकिन कमला तो राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार नहीं! फिर ट्रम्प जो बाइडेन की जगह उन्हें क्यों निशाना बना रहे हैं? क्योंकि बाइडेन को लेकर वह वैसी घृणा नहीं उपजा सकते जो कमला को लेकर तुरंत उकसा सकते हैं।
कौन हैं कमला हैरिस?
कमला हैरिस कौन हैं? भारतीयों का हृदय उल्लसित हो उठा था जब उन्हें मालूम हुआ कि एक भारतीय मूल की एक महिला को अमरीका का एक मुख्य राजनीतिक दल उपराष्ट्रपति पद के लिए अपनी उम्मीदवार बना रहा है। इसे विदेशों में भारतीयों की बढ़ती प्रतिष्ठा का एक और सबूत माना गया। इस रूप में इसकी व्याख्या करनेवाले भी थे कि यह भारतीयों की प्रतिभा ही है, जिसे मानने को अमरीकियों को बाध्य होना पड़ा।उसी भारतीय मूल की महिला को घटिया, बाहरी और उनके नाम को बार-बार बिगाड़ कर बोलकर क्या ट्रम्प भारतीयों का अपमान नहीं कर रहे? अब भारत के भारतीयतावादी क्या ट्रम्प की आलोचना करेंगे?
संकीर्ण राष्ट्रवाद!
यह प्रश्न संकीर्ण राष्ट्रवादी है। असल बात यह है कि ट्रम्प को अपनी तरफ बहुमत को खींचना है। इसलिए वे एक बाहरी का हौवा खड़ा कर रहे हैं, जिससे डरकर या जिससे नफ़रत की वजह से लोग उनकी तरफ आ जाएँ। बाहरी और भीतरी का भेद करना सबसे आसान माना जाता है क्योंकि यह माना जाता है एक बाहरी होता है और एक भीतरी।नागरिकता पर संदेह
ट्रम्प इसके उस्ताद हैं। पिछले चुनाव के समय उन्होंने बराक ओबामा को जिद करके बराक हुसैन ओबामा कह कर बुलाया। इस बात पर शक पैदा किया कि उनकी पैदाइश कहाँ की है। उस समय भी ओबामा के तौर पर एक बाहरी का हौवा दिखाकर गोरे अमरीकियों को डराने की कोशिश की गई थी।
जिस तरह कमला हैरिस के नाम का मखौल बनाकर ट्रम्प अपने प्रशंसकों के मन में द्वेष पैदा कर रहे हैं, भारत में सोनिया गाँधी के नाम को लेकर यह पिछले कई वर्षों से किया जाता रहा है।
लिंग्दोह का मखौल
भारत के मुख्य चुनाव अधिकारी जे. एम. लिंग्दोह के नाम का मखौल गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने बनाया था, जब उन्होंने चुनाव की तारीख पर मुख्यमंत्री की बात नहीं मानी थी। लिंग्दोह की ईसाई पहचान को बार-बार उजागर करके उन्हें बाहरी और शत्रु के तौर पर पेश किया गया था। वे मुख्यमंत्री आज भारत के प्रधानमंत्री हैं और लगातार बाहरी, घुसपैठिए का हौवा खड़ा करते रहते हैं। सोनिया और लिंग्दोह किनके शत्रु और किनके लिए बाहरी थे? उन्हीं के जो आज कमला के तमिल ब्राह्मण मूल पर गर्व कर रहे हैं!अज़मल
इसका उत्तर असम में फिर भारतीय जनता पार्टी ने दिया। विधानसभा चुनाव में उसने अपने मतदाताओं को डराया कि अगर उसे बहुमत नहीं मिला तो बदरुद्दीन अजमल मुख्यमंत्री बन जाएँगे। अजमल असमिया हैं, भारतीय हैं, फिर क्यों उनकी भारतीयता को संदिग्ध बनाया जा सका? क्यों अजमल एक भय की वस्तु हैं और किनके लिए? वे किनके लिए बाहरी हैं?भारत में अजमल, अहमद पटेल, लिंग्दोह को दोयम दर्जे का भारतीय माना जाता रहा है, सोनिया गाँधी का तो कहना ही क्या? उनके खिलाफ वैसे ही घृणा प्रचार स्वाभाविक और उचित माना जाता है जैसे ट्रम्प ओबामा और कमला के ख़िलाफ़ कर रहे हैं।
भारत से अमेरिका अलग कैसे?
फिर भी कहना पड़ेगा कि भारत में सोनिया गाँधी, अहमद पटेल और बदरुद्दीन अजमल पर कीचड़ उछाला जाए तो उसकी निंदा करनेवाले भी फुसफुसा कर ही बात करते हैं। अमरीका में ट्रम्प पर चारों ओर से लानत बरस रही है। यहाँ के मीडिया से एकदम उलट वहाँ का मीडिया ट्रम्प को आड़े हाथों ले रहा है। अमरीका में ट्रम्प के घिनौनेपन को बर्दाश्त न करने वालों की तादाद अच्छी ख़ासी है। भारत में परिष्कृत, सुसंस्कृत, विदेशों से शिक्षा लेकर आए लोगों को भी सोनिया या अहमद पटेल या अजमल या ओवैसी के खिलाफ घृणा अभियान से बहुत परेशानी नहीं है। यह अंतर है हमारे और उनके बीच।यह नहीं कि अमरीका में भीतरी और बाहरी का भेद नहीं है। काले और गोरे का भेद बना हुआ है। कमला हैरिस ने कहा कि उनकी माँ ने, जो अपने पति से अलग होने के बाद अपनी बहन के साथ अकेली माँ के तौर पर उन्हें पाल रही थीं, तय किया था कि वे उन्हें गर्वीले काले नागरिकों के रूप में बड़ा करेंगी। सारे भेदभाव के बावजूद कमला हैरिस को यह आत्मविश्वास भी अमरीका ने ही दिया है। मुल्क ऐसे ही बनते हैं, संघर्ष करते हुए। ट्रम्प के बावजूद अमरीका ने एक कदम एक दिशा में बढ़ाया है। और हमने?
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