पत्रकार शेष नारायण सिंह का निधन हो गया। वरिष्ठ पत्रकार गीताश्री लिखती हैं- आज सुबह मेरे अभिभावक -मित्र पत्रकार शेष नारायण सिंह चले गए। कल उनके प्लाज़्मा का इंतज़ाम भी हो गया था। हम आश्वस्त थे कि अब ख़तरा टल गया है।
र्तमान पारिवारिक ढाँचे में तीन हज़ार साल से कोई बदलाव नहीं आया तो अब क्या आएगा? नसों में जो ग़ुलामी उतार दी गई है, उसे कैसे बाहर निकालेंगे? थप्पड़ एक फ़िल्म नहीं, स्त्री के स्वाभिमान का लहूलुहान चेहरा है।
दिल्ली पुलिस की लगातार धमकियों के बावजूद शाहीन बाग़ में भीड़ कम नहीं हो रही है बल्कि बढ़ती चली जा रही है। यह देश का अभूतपूर्व आंदोलन है, सदियाँ इसे याद रखेंगी।
राजस्थान मानवाधिकार आयोग का यह कौन- सा रूप है। उन्हें स्त्रियों के हितों की इतनी चिंता होती तो क्या वे लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रही किसी महिला को उपस्त्री यानी रखैल का दर्जा देते?
किसी भी शताब्दी के शायर हों सभी शायरों ने अवाम को सबसे ऊपर रखा और लोक संस्कृति को बनाए, बचाए रखने की जमकर पैरोकारी भी की। ख़ुद भी रंगे और जमाने को भी रंग दिया।
स्त्रियों की दुनिया में धार्मिक भ्रम जाल हैं। शताब्दियों से उन्हें भरमा कर रखा गया है और हम हैं कि जाले साफ़ ही नहीं करते और न उन भ्रम जालों से जवाब माँगते हैं।
राजनीति, मीडिया या अन्य क्षेत्रों में महिलाओं को अकसर किनारे लगा दिया जाता है। पुरुष नहीं चाहते कि महिलाएँ उनसे आगे निकलें क्योंकि इससे पुरुषवादी वर्चस्व का अंत हो जाएगा।