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बिहार: आत्मघाती साबित हो सकता है फ्री वैक्सीन का वादा!

“जब तक दवाई नहीं, दब तक ढिलाई नहीं।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 अक्टूबर को राष्ट्र के नाम संबोधन में यह बात दोहरायी थी। मोबाइल पर अमिताभ बच्चन की आवाज़ में यह सलाह, एहतियात हर बार फोन कॉल करते समय सुनने को मिल जाती है। मगर, बीजेपी ने कोरोना की दवाई को चुनाव की लड़ाई से जोड़कर मानो कोरोना भगाने के पूरे मक़सद की पवित्रता को ही भंग कर दिया है। 

क्या कोरोना की फ्री वैक्सीन का वादा किसी चुनाव घोषणा पत्र का हिस्सा हो सकता है? क्या होना चाहिए? यह सवाल देश में हर औसत बुद्धि का व्यक्ति भी बीजेपी से पूछ रहा है। 

बीजेपी केंद्र में सत्ता में है। बिहार में भी सत्ता में है। फ्री वैक्सीन देना डबल इंजन की सरकारों का कर्तव्य है। इंजन भले ही सिंगल हो, फिर भी यह उसका कर्तव्य है कि ग़रीब जनता को मौत के मुंह में जाने से बचाए। 

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चुनाव घोषणापत्र में कोरोना फ्री वैक्सीन के जिक्र के कई मायने हैं -

  • एक मतलब साफ है कि कोरोना फ्री वैक्सीन के नाम पर वोटरों को इस बात के लिए मजबूर किया जा रहा है कि वे बीजेपी को वोट दें।
  • अगर वे वोट नहीं देते हैं तो बीजेपी सत्ता में नहीं आएगी और सत्ता में नहीं आएगी तो कोरोना फ्री वैक्सीन जाहिर है कि नहीं मिलेगी।
  • घोषणापत्र में पहला बिन्दु होने के बावजूद यह चुनावी वादा है और चुनाव में हार होते ही कोरोना फ्री वैक्सीन का वादा खत्म हो जाता है।
  • जहां चुनाव नहीं हो रहे हैं वहां कोरोना फ्री वैक्सीन मिलने की संभावना नहीं है क्योंकि बीजेपी की घोषणा सिर्फ बिहार विधानसभा चुनाव के लिए है।

घोषणा में देरी क्यों? 

कोरोना का संक्रमण विश्वव्यापी महामारी है। मोदी सरकार दावा करती रही है कि उसने दुनिया के डेढ़ सौ से ज्यादा देशों को दवाएं उपलब्ध करायीं, कोरोना से लड़ने के लिए मेडिकल उपकरण आदि भी भिजवाए। फिर अपनी ही जनता को कोरोना फ्री वैक्सीन देने का वादा करने में मोदी सरकार को संकोच क्यों हो रहा है? यह घोषणा अब तक हो जानी चाहिए थी। 

मगर, घोषणा हुई भी तो सिर्फ बिहार के लिए। क्यों? क्योंकि वहां चुनाव है! चुनाव नहीं होता तो बिहार के लोगों को भी कोरोना फ्री वैक्सीन देने की घोषणा नहीं की जाती।

आत्मघाती गोल?

‘आपदा को अवसर’ में बदलने का इससे बड़ा उदाहरण नहीं मिलेगा। मगर, इस ‘अवसर’ से गोल नहीं आत्मघाती गोल हुआ है। यह गोल याद दिलाता है 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव की। तब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की ज़रूरत वाला बयान देकर एनडीए की जीत की संभावना धूमिल कर दी थी। भागवत के बयान पर पूरे देश में प्रतिक्रिया हुई थी और आखिरकार उन्हें कहना पड़ा था कि वे आरक्षण खत्म करना नहीं चाहते और इसे बचाए और बनाए रखना चाहते हैं। 

इसके बावजूद बिहार की जनता ने तमाम ओपिनियन पोल को झूठा साबित करते हुए बीजेपी को सबक सिखाया था। तब नीतीश कुमार महागठबंधन के सीएम उम्मीदवार थे। भारी बहुमत से उनकी वापसी हुई थी।

बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में कोरोना फ्री वैक्सीन का वादा कर ऐसी असंवेदनशीलता दिखाई है कि इसकी जितनी आलोचना की जाए, वह कम है।
इसका प्रायश्चित सिर्फ यही है कि तुरंत पूरे देश में कोरोना वैक्सीन फ्री में उपलब्ध कराने की घोषणा बीजेपी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार करे। इसमें जितनी देरी होगी, देश के लोगों की पीड़ा उतनी गहरी होती चली जाएगी। फिर भी बिहार की जनता इस असंवेदनशीलता को माफ कर पाएगी यह कह पाना मुश्किल है। देश की जनता अब केंद्र की मोदी सरकार से पूछ सकती है कि- 
  • बगैर बीजेपी को वोट दिए हमें क्या कोरोना फ्री वैक्सीन नहीं मिलेगी? 
  • क्या हमने तालियां-थालियां इसी दिन के लिए बजायी थीं?
  • पर्व-त्योहार, शादी-ब्याह के समारोह क्या ये ही दिन देखने के लिए रोके गये थे?
  • अब तक 515 कोरोना वॉरियर्स डॉक्टरों की शहादत क्या इसीलिए हुई है?
  • लॉकडाउन में रहते हुए क्या इसी दिन के लिए लोगों ने दुख सहे थे?
  • पैदल घर लौटने को मजबूर होते वक्त भी क्या ऐसी ही असंवेदनशीलता सरकारों ने नहीं दिखाई थी?

उपचुनाव के वोटरों से नाइंसाफी क्यों?

देश में बिहार के अलावा अलग-अलग राज्यों की 56 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। ज्यादातर जगहों पर बीजेपी चुनाव लड़ रही है। उपचुनावों के लिए घोषणापत्र जारी करने की परंपरा नहीं रही है। ऐसे में मध्य प्रदेश की सियासत में बिहार के घोषणापत्र का जिक्र ज़रूर होगा, जहां लोकतंत्र के चुनाव में सबसे बड़ा उपचुनाव हो रहा है और जिसका मध्य प्रदेश की सरकार पर भी असर पड़ सकता है। 

सवाल यह है कि मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए जो वोटर वोट डालेंगे क्या उनके वोट की कीमत इतनी नहीं है कि उन्हें कोरोना फ्री वैक्सीन दी जा सके?

मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार है। फिर ऐसी घोषणा करने में वहां देरी क्यों? यही सवाल उन राज्यों के लिए भी है जहां बाकी 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं।

देखिए, बिहार चुनाव पर चर्चा- 
कोरोना से लड़ाई पूरे देश ने लड़ी। जान देश के हर सूबे में गयी। कोरोना वॉरियर्स ने अपनी जान देकर दूसरों की जान बचायी। कोरोना संक्रमण के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है और बहुत जल्द ही वह टॉप पर भी होने जा रहा है। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया है कि देश कोरोना की महामारी में भी ‘संभली हुई स्थिति’ में है। 
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‘संभली हुई स्थिति’?

‘संभली हुई स्थिति’ में कोरोना फ्री वैक्सीन देने की घोषणा करने में दिक्कत क्या है? क्या मोदी सरकार के पास इस के लिए पैसे नहीं हैं? क्या पीएम केयर्स फंड में आई रकम कम पड़ गयी? कोरोना काल में जितने कर्ज लिए गये हैं, मोदी राज में इससे पहले कभी नहीं लिए गये थे। वह कर्ज भी देश लौटाएगा। फिर कोरोना फ्री वैक्सीन की खरीद पूरे देश के लोगों के लिए क्यों नहीं हो सकती और क्यों नहीं उसे मुफ्त में दिया जा सकता है? कोरोना फ्री वैक्सीन का संबंध चुनाव से नहीं मानवता से है!

बीजेपी के घोषणापत्र में कोरोना फ्री वैक्सीन का वादा शर्मनाक है। इसका न तो बिहार से संबंध है और न ही चुनाव से। कोरोना फ्री वैक्सीन का संबंध मानवता से है। यह देश के हर नागरिक को पाने का हक है। इसे न तो वोट से जोड़ा जा सकता है और न ही यह किसी घोषणापत्र का हिस्सा होना चाहिए।

‘रिश्वत’ देने जैसा

खुद बिहार इस घोषणा को किस तरह से लेगा- यह जानना भी दिलचस्प रहेगा। क्या बिहार के लोग कोरोना फ्री वैक्सीन पाने के लिए बीजेपी को वोट देना सुनिश्चित करेंगे? या फिर वे ‘रिश्वत’ मानकर इस पर गुस्सा दिखाएंगे? बीजेपी ने तो अपनी संवेदनशीलता दिखा दी है। अब बिहार की जनता भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया के जरिए संवेदनशीलता दिखाएगी। 
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प्रेम कुमार

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