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राजनीति के हर मोड़ पर मिलेंगे कई 'कांडों' के सम्मानित 'कांडा'!

बीजेपी वालों को थोड़ी शर्म ज़रूर आई। इसलिए नहीं कि गीतिका के भाई ने बयान दे दिया। इसलिए कि देश के कई न्यूज़ चैनल, जो हर घंटे-मिनट सरकार का ढोल पीटते रहते हैं, उन्होंने भी गोपाल गोयल कांडा के सहयोग से हरियाणा में बीजेपी सरकार बनाने के 'प्रोजेक्ट' पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे।
उर्मिेलेश
हरियाणा विधानसभा चुनाव में जब किसी दल को अपने बल पर बहुमत नहीं मिला तो अचानक 24 अक्तूबर की शाम विधायकों के बीच एक नाम उछला-गोपाल गोयल कांडा। कुछ ही देर बाद टीवी चैनलों में गोपाल कांडा की एक तसवीर सामने आई, जिसमें वह कई निर्दलीय विधायकों के साथ किसी चार्टर्ड प्लेन में बैठे हुए थे।
बताया गया कि पार्टी की हिदायत पर बीजेपी की एक सांसद ने निर्दलीय विधायकों को दिल्ली लाने का जुगाड़ किया था। गोपाल कांडा के सामने आते ही अचानक हमारी सिविल सोसायटी और मीडिया की सामूहिक स्मृति में गीतिका शर्मा और उसकी बेबस मां के (आत्म)हत्याकांड की पुरानी कहानी सामने आ गई।
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 कैसे आई गीतिका की याद?

बताया गया कि पार्टी की हिदायत पर बीजेपी की एक सांसद ने निर्दलीय विधायकों को दिल्ली लाने का जुगाड़ किया था। गोपाल कांडा के सामने आते ही अचानक हमारी सिविल सोसायटी और मीडिया की सामूहिक स्मृति में गीतिका शर्मा और उसकी बेबस मां के (आत्म)हत्याकांड की पुरानी कहानी सामने आ गई।
साल 2012 में इसी गोपाल कांडा ने गीतिका शर्मा को आत्महत्या के लिए मजबूर किया था। यह बात गीतिका ने अपने सुसाइड नोट में कुछ विस्तार से लिखी थी। कुछ ही महीने बाद उसकी मां ने भी आत्महत्या कर ली। परिवार में बचा एक भाई! उस भाई ने मीडिया के सामने आकर बयान दिया कि बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी अगर कांडा जैसी खूंखार मानसिकता वाले व्यक्ति के ज़रिये सरकार बना रही है और उसे मंत्री भी बना रही है तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है? 
बीजेपी वालों को थोड़ी शर्म ज़रूर आई। इसलिए नहीं कि गीतिका के भाई ने बयान दे दिया। इसलिए कि देश के कई न्यूज़ चैनल, जो हर घंटे-मिनट सरकार का ढोल पीटते रहते हैं, उन्होंने भी गोपाल गोयल कांडा के सहयोग से हरियाणा में बीजेपी सरकार बनाने के 'प्रोजेक्ट' पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे।
पार्टी ने फौरन वैकल्पिक प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया और दुष्यंत चौटाला की जेजेपी में उसे आसान और बेहतर विकल्प भी मिल गया।

आरएसएस की विचारधारा?

पर इस कॉलम में मैं बीजेपी, हरियाणा की राजनीति या गोपाल कांडा पर बात नहीं करने जा रहा हूँ। यहाँ मैं गोपाल कांडा के उस बयान का भी विश्लेषण नहीं करने जा रहा हूं, जिसमें उसने बड़े गर्व से कहा कि उसकी रग-रग में आरएसएस की विचारधारा है, क्योंकि उसके पिता आरएसएस-जनसंघ के कर्मठ संचालक थे।

उसने अपने आप को भी संघ-भाजपा का प्रतिबद्ध आदमी बताया और नरेंद्र मोदी सरकार की जमकर तारीफ की। कांडा जैसे लोग जिसकी सत्ता रहती है, उसका बखान करते हैं। पर यह बात सही है कि उसके खानदान में कुछ लोग आरएसएस-समर्थक ज़रूर रहे हैं। पर यह भी भुलाने लायक नहीं कि एक जमाने में कांडा हरियाणा के कांग्रेसी मंत्रिमंडल का सदस्य था। 

कहाँ थी सिविल सोसाइटी?

थोड़ी देर के लिए सोचिए, अगर हरियाणा के विधानसभा चुनाव में वह सिरसा से विधायक के रूप में नहीं चुना गया होता और सरकार के गठन में उसकी भूमिका इस तरह उजागर नहीं हुई होती तो इस देश के मीडिया और संपूर्ण सिविल सोसायटी के लिए क्या गीतिका शर्मा (आत्म)हत्याकांड एक विस्मृत और बंद पड़ा अध्याय नहीं था?
किसे याद था कि 2012 में गोपाल कांडा के कथित अत्याचारों से पीड़ित गीतिका ने कैसे आत्महत्या की, फिर उसकी माँ ने भी वही रास्ता अपनाया और तब से वह मामला देश की राजधानी स्थित न्यायालय में सात सालों से चल रहा है।
न्यायालय से फ़ैसला आए बग़ैर किसी को अपराधी नहीं कहा जा सकता। पर मीडिया या सिविल सोसायटी अपराध की किसी घटना की छानबीन या उस पर विमर्श तो कर ही सकते हैं। 
हाल के वर्षों में क्या किसी भी जिम्मेदार संस्था या निकाय ने इस बात की चिंता दिखाई कि गीतिका शर्मा कांड की सुनवाई किस तरह चल रही है या उसमें सरकार या संगठनों की क्या भूमिका नजर आ रही है? 

ग़ायब फ़ाइलें!

मुख्य अभियुक्त कांडा 2014 से ही ज़मानत पर है। सिरसा में आम लोग भी इस बात से वाकिफ़ हैं कि इस दरम्यान गीतिका शर्मा कांड से जुड़े अनेक साक्ष्य रफा-दफा किये जा चुके हैं। गीतिका शर्मा एक कर्मी के रूप में  गोपाल कांडा की जिस कंपनी में काम करती थी, उससे सम्बन्धित तमाम फ़ाइलें भी गायब बताई जाती हैं। 
लगभग इसी तरह की टिप्पणी दो दिन पहले गीतिका के भाई ने भी मीडिया से बातचीत में की। उन्होंने कहा था :

ज़मानत पाने के बाद गोपाल कांडा इस कांड से जुड़े तमाम साक्ष्यों को मिटाने में लगा रहा है। केस की सुनवाई के दौरान कुछ भी नहीं होता, बस तारीखें पड़ती रहती हैं और मैं हर तारीख़ पर जाता हूँ और मायूस होकर घर लौट आता हूँ।


गीतिका शर्मा का भाई

 दिलचस्प बात है कि पी चिदंबरम को आर्थिक अनियमितता या कथित मनी लाॉन्डरिंग के एक ख़ास मामले में अभी तक इसलिए ज़मानत नहीं मिली कि जाँच एजेंसियाँ कहती हैं कि वह जेल से बाहर आकर साक्ष्यों को मिटाने में जुटेंगे। 
दो ज़िंदगियाँ जिस केस में ख़त्म हो गईं, उसमें गोपाल कांडा को डेढ़ साल बाद ज़मानत मिल गई और स्वयं न्यायालय से भी टिप्पणी आती रही है कि राज्य की तरफ से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा। जज ने तो एक सुनवाई के दौरान यह तक कहा :

मेरे लिए हैरानी की बात है कि राज्य सरकार इस मामले में कम दिलचस्पी ले रही है। ऐसा लगता है कि प्रोसिक्यूशन अधिकारी ने सिर्फ़ राज्य सरकार को एक चिट्ठी लिखकर इस केस की जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लिये हैं।


अजय कुमार कुहार, विशेष जज

यह भी कम ग़ौरतलब नहीं कि अपने देश की अदालतों में ऐसे असंख्य मामले बरसों-बरस से लंबित रहते हैं और अपराध करने वाले समर्थ और प्रभावशाली लोग आराम से बच जाते हैं। जो निर्धन और असमर्थ हैं, वे बेकसूर होते हुए भी अपराधी घोषित हो जाते हैं। 
गीतिका कांड की सात साल की अदालती सुनवाई के बाद अब तक केस में कोई ख़ास प्रगति नहीं है, सिवाय 2014 में गोपाल  कांडा के ज़मानत पाने के। पर मीडिया के ज़रिये यह बातें भी हमारी सिविल सोसायटी या आम लोगों तक नहीं पहुँचीं। हरियाणा के चुनावी नतीजे के बाद गीतिका कांड एक बार फिर सुर्खियों में ज़रूर है। लेकिन कुछ समय बाद वह फिर विस्मृत हो जायेगा।
यह सिर्फ़ किसी एक कांड का मामला नहीं है। इस विशाल देश में ऐसा लाखों मामलों में हो रहा है। इस वक्त देश के 25 उच्च न्यायालयों में 43 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं। यह सिर्फ़ किसी एक कांड का मामला नहीं है। इस विशाल देश में ऐसा लाखों मामलों में हो रहा है। इस वक्त देश के 25 उच्च न्यायालयों में 43 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं।

लंबित मामले!

ये तथ्य हाल ही में राज्यसभा के एक प्रश्नोत्तर के दौरान क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने उजागर किए। सच तो यह है कि निचली अदालतों के कुल लंबित मामलों का वास्तविक रिकार्ड भारत सरकार के पास भी नहीं है। पर हमारी प्राथमिकताएँ क्या हैं? असम के बाद अब एनआरसी का सिलसिला पूरे देश में चलाने की तैयारी की जा रही है। इसमें क़ानून से जुड़े निकायों और अन्य शासकीय संस्थाओं को लगाने की क़वायद शुरू की जा रही है। 
गोपाल कांडा प्रकरण में इस बीच कुछ लोगों की प्रतिक्रिया देखी, जिसमें वे सिरसा के मतदाताओं को कोस रहे थे। क्या यह वाजिब है? क्या आज की चुनावी राजनीति में किसी  'कांड' या 'तिकड़म' के बगैर कामयाबी हासिल करना आसान काम है?  मैं यह नहीं कहता कि चुनावी राजनीति में सारे लोग एक जैसे हैं। बिल्कुल नहीं! 

कई कांडा!

पर इस बात से इनकार कैसे किया जा सकता है कि हाल के बरसों में हमारी चुनावी राजनीति में धन, बाहुबल, तिकड़म और षडयंत्र की भूमिका बढ़ी है। सिरसा में कौन नहीं जानता कि जूते-चप्पल की दुकान चलाने वाले एक साधारण व्यवसायी गोपाल कांडा को कैसे चौटाला परिवार, ख़ास कर ओमप्रकाश चौटाला के शासन के दौरान 'खास भूमिका' देकर करोड़पति-अरबपति बनाया गया। 
हम ठोस तथ्य को भी नहीं भूल सकते कि आज की तारीख़ में गोपाल कांडा एक माननीय विधायक हैं और गीतिका शर्मा कांड के महज एक अभियुक्त हैं, कोई अपराधी नहीं! न्यायालय में सात साल से मामला चल रहा है, न जाने कितने साल और चलेगा!
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