कोरोना भयावह होता जा रहा है। जुलाई के पहले 11 दिनों में ढाई लाख कोरोना केस देश में दर्ज किये गये हैं। लॉकडाउन के 68 दिन में कुल मिलाकर इतने कोरोना केस नहीं आए थे। केंद्र सरकार, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर शुरुआत से तमाम आँकड़ों के ज़रिये यह संदेश देने में लगी है कि भारत में कोरोना प्रबंधन बेहतरीन है और कई देश भारत का अनुसरण कर रहे हैं। डबलिंग रेट, कंपाउंडेड ग्रोथ रेट, पॉजिटिविटी रेट, मोरटैलिटी रेट आदि इंडिकेटर्स की बात की जाती रही है। आम आदमी इनपर भरोसा करके निश्चिंत हो गया। लेकिन न 21 दिन में कोरोना नियंत्रित हुआ, न मई में कोरोना पीक पर पहुँचा, न जून में कोरोना के प्रसार में कमी आनी शुरू हुई और न अब तक कोरोना का ग्राफ़ सपाट हो पाया है।
लॉकडाउन लागू होने से पहले देश में कुल 571 कोरोना केस दर्ज किये गये थे जो 68 दिन के लॉकडाउन के बाद बढ़कर 190648 पर पहुँच गये। लॉकडाउन के आख़िरी हफ्ते में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। इससे संदेश यह गया कि सबकुछ नियंत्रण में है। लोगों में कोरोना को लेकर एक स्तर की निश्चिंतता आ गई जबकि कोरोना का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। अनलॉक के पहले 41 दिनों में लगभग 6.4 लाख कोरोना केस दर्ज किये गये। हालत इतनी भयावह होती जा रही है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु आदि राज्यों में फिर से लॉकडाउन करना पड़ रहा है। लेकिन केंद्र सरकार अब भी डबलिंग रेट, पॉजिटिविटी रेट और मॉरटैलिटी रेट का हवाला देकर बेहतरीन तसवीर पेश करने की कोशिश में जी-जान से लगी हुई है।
आइये, इन इंडिकेटरों की बात करते हैं। इन इंडिकेटरों को प्रस्तुत करते हुए हमारा स्वास्थ्य मंत्रालय बताता है कि पहले के मुक़ाबले इनमें सुधार होता जा रहा है। यह बात सही भी है। जैसे डबलिंग रेट पहले 18 दिन के मुक़ाबले 12 जुलाई को 22 दिन पर आ गया। यानी पहले जहाँ 18 दिन में कोरोना केस डबल हो जा रहे थे, अब 22 दिन में हो रहे हैं। लेकिन क्या इतने से सही निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है? पूरी दुनिया का डबलिंग रेट 40 दिन है। दुनिया में सबसे भयावह स्थिति का सामना कर रहे अमेरिका का डबलिंग रेट 49 दिन है। कोरोना केसों के मामले में दूसरे नंबर के देश ब्राज़ील का 26 दिन और चौथे नंबर के देश रूस का 46 दिन।
भारत तीसरे नंबर पर है। इन देशों के बरक्स रखकर अगर हम अपने देश के डबलिंग रेट को देखें तो तसवीर भयावह नज़र आने लगती है।
पॉजिटिविटी रेट को लेकर भी यही स्थिति है। पॉजिटिविटी रेट यानी कुल टेस्ट में कोरोना पॉजिटिव का अनुपात। अपने देश में इस समय पॉजिटिविटी रेट 7.38 फ़ीसदी है जो अमेरिका (8.04 %), ब्राजील (39.53%), पेरू (16.97%), चिली (24.5 %), मेक्सिको (40.8%) व पाकिस्तान (15.93%) आदि देशों के मुक़ाबले बहुत अच्छा नज़र आता है। लेकिन यदि हम रूस (3.17 %), स्पेन (5.25 %), ब्रिटेन (2.50 %), इटली (4.15%), जर्मनी (3.13 %) व टर्की (5.44 %) से तुलना करें तो कुछ और नज़र आने लगेगा। लेकिन यदि हम यहाँ देखें कि क्या हमारे देश में पॉजिटिविटी रेट की दिशा क्या है, तो सबकुछ समझ में आने लगेगा।
लॉकडाउन के 68 दिनों यानी 25 मार्च से 31 मई के बीच हमारे देश में लगभग 3837207 टेस्ट किये गये और इनमें से 5.00 फ़ीसदी पॉजिटिव निकले। अनलॉक के पहले 41 दिनों में 7749946 टेस्ट किये गये और इनमें पॉजिटिविटी दर रही 8.25 फ़ीसदी। अब तक की औसत पॉजिटिविटी दर है 7.38 फ़ीसदी। यानी कोरोना का प्रसार तेज़ होता जा रहा है।
कोरोना मृत्यु दर
सरकार कोरोना मृत्यु दर (मोरटैलिटी रेट) को लेकर भी दावा करती है कि हमारे यहाँ यह दर काफ़ी कम है। इस समय देश में कोरोना से मौत की औसत दर है 2.68 फ़ीसदी और बताया जा रहा है कि यह दर दूसरे देशों के मुक़ाबले बहुत कम है। क्या वास्तव में ऐसा है? आइये देखें कि सबसे ज़्यादा कोरोना केस संख्या वाले देशों में यह दर कितनी है - अमेरिका में यह दर है 4.4 फ़ीसदी और ब्राज़ील में 3.9 फ़ीसदी। रूस में मृत्यु दर 1.56 फ़ीसदी, पेरू में 3.60 फ़ीसदी, चिली में 2.19 फ़ीसदी, स्पेन में 9.44 फ़ीसदी, मेक्सिको में 11.82 फ़ीसदी है। दक्षिण अफ्रीका में कोरोना मृत्यु दर सिर्फ़ 1.54 फ़ीसदी, पाकिस्तान में 2.08 फ़ीसदी, सऊदी अरबिया में 0.95 फ़ीसदी और बांग्लादेश में 1.27 फ़ीसदी है। स्पष्ट है कि रूस, चिली, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, सऊदी अरबिया और बांग्लादेश में कोरोना मृत्यु दर हमारे देश के मुक़ाबले काफ़ी कम है।
रिकवरी रेट को लेकर भी सरकार का कहना है कि भारत में रिकवरी रेट बहुत अच्छा है। यहाँ भी अगर हम तुलनात्मक आँकड़े देखें तो ब्राज़ील और पेरू तक का रिकवरी रेट भारत से बेहतर है। भारत का रिकवरी रेट है 63.06 फ़ीसदी जबकि ब्राज़ील 65.92 फ़ीसदी व पेरू 66.36 फ़ीसदी के स्तर पर है। रूस का रिकवरी रेट 69.04 फ़ीसदी और चिली का 90.10 फ़ीसदी है।
कोरोना केसेज वाले टॉप -10 देशों में सिर्फ़ अमेरिका (44.42 फ़ीसदी), मेक्सिको (61.25 फ़ीसदी) और दक्षिण अफ्रीका (48.34 फ़ीसदी) का ही रिकवरी रेट भारत से कम है।
आईसीएमआर द्वारा गठित आपरेशंस रिसर्च ग्रुप के अध्ययन में कहा गया था कि कड़े लॉकडाउन के चलते भारत में कोरोना का पीक आठ हफ्ते आगे खिसक कर नवंबर मध्य तक पहुँचेगा। हालाँकि आईसीएमआर ने इस अध्ययन से किनारा कर लिया था और पीआईबी फैक्टचेक ने इसे मिसलीडिंग बताया था। पिछले दिनों एमआईटी के शोधकर्ताओं का एक अध्ययन जारी हुआ। इस अध्ययन में 84 देशों का कोरोना आँकड़ा शामिल किया गया।
इस शोध के मुताबिक़, फ़रवरी 2021 तक भारत दुनिया में कोरोना से सबसे ज़्यादा प्रभावित देश होगा और रोज़ाना 2.87 लाख कोरोना केस आने लगेंगे। दूसरे स्थान पर अमेरिका होगा जहाँ रोज़ाना 90000 केस आ रहे होंगे।
अभी भारत की आबादी के अनुपात में टेस्टिंग (0.83 फ़ीसदी) बहुत कम है जबकि अमेरिका में यह अनुपात 12.62 फ़ीसदी, ब्राज़ील में 2.15 फ़ीसदी और रूस में 15.56 फ़ीसदी है। यदि टेस्टिंग का स्तर ब्राज़ील के बराबर हो जाए तो मौजूदा पॉजिटिविटी दर से भारत में 21 लाख 90 हज़ार 252 कोरोना केस पहुँच जाएँगे।
(मूल आँकड़े worldometers.info, covid19india.org और स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्तियों से लिये गये हैं और 12 जुलाई सुबह 8.00 बजे तक के हैं)
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