loader
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस अशोक कुमार गांगुली।

अयोध्या: रिटायर्ड जस्टिस गांगुली ने कहा, निर्णय से हूँ बेहद परेशान

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने कहा है कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने उनके मन में संशय पैदा कर दिया है और वह इससे “बेहद परेशान” हैं। 72 साल के न्यायमूर्ति गांगुली ने 2012 में 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में फ़ैसला दिया था जिसे उस समय के विपक्ष राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने ख़ूब पसंद किया था। 

गांगुली ने फ़ैसला आने के बाद शनिवार को कहा, “अल्पसंख्यकों ने पीढ़ियों से देखा है कि वहां एक मसजिद थी। इसे गिरा दिया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के अनुसार उसके ऊपर एक मंदिर बनाया जा रहा है। इससे मेरे मन में एक शंका पैदा हो गई है...संविधान के एक छात्र के रूप में मेरे लिए इसे स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल है।" उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में कहा गया है कि किसी जगह पर जब नमाज पढ़ी जाती है तो नमाजी के इस विश्वास को चुनौती नहीं दी जा सकती है कि वहां मसजिद है।
ताज़ा ख़बरें

गांगुली ने कहा, “अगर 1856-57 में नहीं तो 1949 से वहां निश्चित रूप से नमाज़ पढ़ी जा रही थी, इसके सबूत हैं। इसलिए जब हमारा संविधान अस्तित्व में आया तब वहां नमाज़ पढ़ी जाती थी। एक जगह जहां नमाज़ पढ़ी जाती है, वह जगह अगर मसजिद मानी जाती है तो अल्पसंख्यक समुदाय को उसके धर्म की आज़ादी की रक्षा करने का अधिकार है। यह एक बुनियादी अधिकार है जिसे संविधान की गारंटी मिली हुई है।” 

रिटायर्ड जस्टिस ने आगे कहा, “इस स्थिति में आज एक मुसलमान क्या देख रहा है? वहां कई वर्षों से एक मसजिद थी जिसे गिरा दिया गया। अब अदालत वहां मंदिर बनाने की इजाजत दे रही है और यह इस कथित निष्कर्ष पर है कि वह जगह राम लला की है। क्या सर्वोच्च अदालत सदियों पहले के भूमि स्वामित्व के मामले तय करेगी? क्या सुप्रीम कोर्ट इसे नजरअंदाज कर सकता है कि वहां लंबे समय तक मसजिद थी और जब संविधान बना तो मसजिद वहीं थी?”

संबंधित ख़बरें

न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा, “संविधान तथा उसके प्रावधानों के तहत सुप्रीम कोर्ट की यह जिम्मेदारी है कि वह इसकी रक्षा करे।” सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस ने आगे कहा, “संविधान से पहले जो था उसे अपनाया जाए यह संविधान की जिम्मेदारी नहीं है। उस समय भारत लोकतांत्रिक गणराज्य नहीं था। उस समय कहां मसजिद थी, कहां मंदिर था, कहां बुद्ध का स्तूप था, कहां गिरजा घर था....अगर हम ऐसे फ़ैसले करने बैठें तो कई सारे मंदिर और मसजिद तथा अन्य संरचनाओं को गिराना पड़ेगा। हम पौराणिक ‘तथ्यों’ में नहीं जा सकते हैं। राम कौन हैं? क्या ऐतिहासिक तौर पर साबित कोई स्थिति है? यह विश्वास और आस्था का मामला है।”

उन्होंने आगे कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आस्था के आधार पर आपको कोई प्राथमिकता नहीं मिल सकती है। उनका कहना है कि मसजिद के नीचे, वहां ढांचा था लेकिन वह ढांचा मंदिर नहीं था। और कोई नहीं कह सकता है कि मंदिर गिराकर मसजिद बनाई गई थी। अब एक मसजिद को गिराकर मंदिर बनाया जा रहा है।’’ 

जस्टिस गांगुली ने कहा, ‘‘500 साल पहले ज़मीन का मालिक कौन था, क्या किसी को पता है? हम इतिहास की पुनर्रचना नहीं कर सकते हैं। अदालत की जिम्मेदारी है कि जो है उसका संरक्षण किया जाए। जो है उसके अधिकार का संरक्षण किया जाए। इतिहास को फिर से बनाने की जिम्मेदारी अदालत की नहीं है। पांच सदी पहले वहां क्या था उसे जानने की अपेक्षा कोर्ट से नहीं की जा सकती है। अदालत को कहना चाहिए कि वहां मसजिद थी - जो तथ्य है। यह कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं है – (बल्कि) एक तथ्य है जिसे हर किसी ने देखा है। इसे गिराया जाना हर किसी ने देखा है। उसे बहाल किया जाना चाहिए। अगर उन्हें मसजिद पाने का अधिकार नहीं है तो कैसे आप सरकार को निर्देश दे रहे हैं कि मसजिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन दी जाए? क्यों? आप स्वीकार कर रहे हैं कि मसजिद गिराना ठीक नहीं था।”

अयोध्या विवाद से और ख़बरें

यह पूछे जाने पर कि उनकी राय में उचित फ़ैसला क्या होता, न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा, “दोनों में से कोई एक। मैंने या तो उस जगह पर मसजिद बनाने का निर्देश दिया होता या फिर अगर यह विवादित जगह थी तो मैंने कहा होता, ‘उस जगह पर ना मसजिद, ना मंदिर’। आप वहां एक अस्पताल या स्कूल अथवा ऐसा कुछ और बना सकते हैं। मसजिद और मंदिर अलग जगहों पर बनाइए।’’ 

न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा, “उसे हिन्दुओं को नहीं दिया जा सकता है। यह विश्व हिन्दू परिषद या बजरंग दल का दावा है। वे आज किसी भी मसजिद, किसी भी चीज को गिरा दें, फिर। उन्हें सरकार का समर्थन मिल रहा था, अब उन्हें न्यायपालिका का समर्थन भी मिल रहा है। मैं बेहद परेशान हूं। ज्यादातर लोग इन बातों को इतनी सफाई से नहीं कहने वाले हैं।”

वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की फ़ेसबुक वॉल से साभार। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

अयोध्या विवाद से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें