बिहार की राजनीति को लेकर देश भर के सियासी गलियारों में चर्चा हो रही है। चर्चा इसलिए कि एक ओर जहां राज्य में बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेता अपने सहयोगी दल के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करने का मौक़ा नहीं छोड़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बीजेपी के ही वरिष्ठ नेता उनकी शान में कसीदे पढ़ रहे हैं। इससे बिहार की राजनीति को समझने वाले राजनीतिक जानकार भी अचंभित हैं और उनके लिए यह समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि आख़िर ये कौन से राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं।
बीजेपी को मिले सीएम की कुर्सी!
बिहार में बीजेपी और जेडीयू मिलकर सरकार चला रहे हैं। मुख्यमंत्री का पद जेडीयू के पास है जबकि उप मुख्यमंत्री का पद बीजेपी के पास। लोकसभा चुनाव तक सब ठीक था और गठबंधन सरकार ठीक चल रही थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिलने के बाद से ही बिहार में बीजेपी के कुछ नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा कुलांचे मारने लगी है। ऐसे नेताओं का कहना है कि बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी बीजेपी के पास होनी चाहिए। वे अपने बयानों से पार्टी आलाकमान को यह बताना चाहते हैं कि बीजेपी अकेले दम पर ही लड़कर राज्य में सरकार बना सकती है तो ऐसे में उसे जेडीयू के साथ की क्या ज़रूरत है। और अगर जेडीयू का साथ चाहिए भी तो वह छोटे भाई की भूमिका में रहे यानी सीएम की कुर्सी का दावा छोड़ दे। इसे लेकर बिहार की सियासत में जोर-आज़माइश जारी है।
मोदी के ट्वीट ने आग में डाला घी
ताज़ा-तरीन एक घटना ने आग में घी डालने का काम किया है। बिहार की राजधानी पटना में इन दिनों बाढ़ आई हुई है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने दो दिन पहले बाढ़ से निपट पाने में विफल रहने के लिए नीतीश कुमार पर हमला बोला था। गिरिराज सिंह ने कहा था, ‘ताली सरदार को मिलेगी तो गाली भी सरदार को मिलेगी।’ लेकिन 6 अक्टूबर को उनकी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता और बिहार सरकार में उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी के ट्वीट ने सियासी सरगर्मियों को बढ़ा दिया। हुआ यूं कि नीतीश कुमार को एक बार फिर जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया, इस पर सुशील मोदी ने ट्वीट कर कहा, ‘एनडीए के सहयोगी दल जनता दल- यू का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को हार्दिक शुभकामनाएँ। उन्होंने बिहार में न्याय के साथ विकास की राजनीति को नई ऊंचाई दी और आपदा की चुनौतियों को भी जनता की सेवा के अवसर में बदलने का हुनर साबित किया।’एनडीए के सहयोगी दल जनता दल- यू का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को हार्दिक शुभकामनाएँ।
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) October 6, 2019
उन्होंने बिहार में न्याय के साथ विकास की राजनीति को नई ऊंचाई दी और आपदा की चुनौतियों को भी जनता की सेवा के अवसर में बदलने का हुनर साबित किया।
नीतीश जी के...... pic.twitter.com/pG9z1UsPN0
सुशील मोदी नीतीश को जेडीयू का अध्यक्ष चुने जाने पर बधाई दे देते तो भी कोई परेशानी की बात नहीं थी लेकिन जिस तरह उन्होंने उन्हें आपदा की चुनौतियों को भी जनता की सेवा के अवसर में बदलने का हुनर साबित करने वाला बताया, उससे लगता है कि कहीं कुछ खिचड़ी ज़रूर पक रही है।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का बयान अहम
बिहार में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और बीजेपी के एक गुट के नेताओं की पूरी कोशिश है कि नीतीश कुमार गठबंधन के मुख्यमंत्री का चेहरा न बनें। इन कयासों को हवा तब मिली थी जब बिहार के नवनियुक्त बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने अंग्रेजी अख़बार ‘द इकनॉमिक टाइम्स’ के साथ बातचीत में कहा था कि मुख्यमंत्री पद के चेहरे के बारे में फ़ैसला बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व और संसदीय बोर्ड करेगा। जायसवाल का यह बयान नीतीश कुमार के लिए आफ़त का इशारा था। क्योंकि बिना जेडीयू की सहमति के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने अगर यह बयान दिया तो इसका मतलब यह है कि बीजेपी राज्य में जेडीयू को पीछे धकेलना और ख़ुद का मुख्यमंत्री चाहती है।
बिहार की राजनीति में गिरिराज सिंह, सीपी ठाकुर, संजय पासवान और कुछ अन्य क्षेत्रीय नेता नीतीश के ख़िलाफ़ हैं और उन्हें यह लगता है कि बीजेपी अब अकेले बहुमत पाने की स्थिति में आ चुकी है। संजय पासवान तो नीतीश कुमार को केंद्र की राजनीति करने की सलाह भी दे चुके हैं।
मोदी ने क्यों डिलीट किया ट्वीट?
नीतीश को लेकर ऐसी स्थिति ऐसा नहीं है कि पहली बार बनी है। संजय पासवान के बयान के बाद भी सुशील मोदी ने नीतीश के समर्थन में ट्वीट किया था। लेकिन हैरानी तब हुई थी जब उन्हें अपना ट्वीट डिलीट करना पड़ा था। सुशील मोदी ने लिखा था, ‘नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के कैप्टन हैं और 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी वही कैप्टन रहेंगे और जब कैप्टन चौके और छक्के लगा रहा हो और विरोधियों की पारी से हार हो रही हो तो किसी भी प्रकार के बदलाव का सवाल ही कहां उठता है?’ इसके बाद भी सुशील मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि जीतने वाले कप्तान को बदलने की क्या ज़रूरत है।
ख़तरे से अनजान नहीं हैं नीतीश
दूसरी ओर, ऐसा नहीं है कि नीतीश इस ख़तरे से अंजान हैं कि बीजेपी मुख्यमंत्री पद के लिए उनसे गठबंधन भी तोड़ सकती है। इसलिए उन्होंने राज्य में चुनावी तैयारी भी शुरू कर दी है। हाल ही में जेडीयू ने राज्य भर में होर्डिंग लगाये थे जिनमें लिखा था 'क्यूं करें विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार।' सोशल मीडिया पर इस होर्डिंग के फ़ोटो ख़ूब वायरल हुए थे। होर्डिंग में नीतीश कुमार गाल पर हाथ रखे हुए मुस्कुरा रहे हैं। तब यह कहा गया था कि नीतीश भी अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
कुछ समय पहले जेडीयू के प्रवक्ता पवन वर्मा ने आग में घी डालने वाला बयान दे दिया था। वर्मा ने बीजेपी को चुनौती देते हुए कहा था कि बीजेपी में अगर हिम्मत है तो वह एक बार अकेले चुनाव लड़कर देख ले, उसे चुनाव नतीजों से सब कुछ समझ आ जाएगा। वर्मा ने कहा था कि जेडीयू भी अपनी तैयारी कर लेगी।
इसमें कोई शक नहीं कि बीजेपी आज बिहार की सबसे ज़्यादा ताक़तवर पार्टी है। लेकिन सवाल यह है क्या वह अकेले चुनाव लड़ने और सरकार बना पाने की स्थिति में है? इसे लेकर संघ-बीजेपी में मंथन चल रहा है।
बीजेपी-जेडीयू के रिश्ते ठीक नहीं
2014 के लोकसभा चुनाव के समय नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का खुलकर विरोध किया था और एनडीए से नाता तोड़ लिया था। सियासी जानकारों के मुताबिक़, मोदी और अमित शाह नीतीश के इस विरोध को आज तक नहीं भूले हैं। नीतीश ने बीजेपी और संघ की विचारधारा को देश को बाँटने वाली विचारधारा बताया था। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबंधित संगठनों से जुड़े नेताओं की जांच कराने के आदेश को लेकर भी संघ की भौहें नीतीश को लेकर तनी हुई हैं।
नीतीश ने मोदी-शाह से लिया बदला!
इसके अलावा केंद्रीय मंत्रिमंडल में उचित स्थान न मिलने की बात कहकर नीतीश कुमार ने जेडीयू के मोदी सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया था। जेडीयू की उपेक्षा से नाराज नीतीश कुमार ने जब कुछ दिन बाद बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार किया था तो उसमें बीजेपी को जगह नहीं दी थी। उसके बाद यह माना गया था कि ऐसा करके नीतीश कुमार ने बीजेपी और विशेषकर मोदी-शाह से बदला लिया है।
ऐसे ही कई और मामले हैं जहां पर बीजेपी और जेडीयू साथ नहीं दिखते। इनमें तीन तलाक़ का मुद्दा, अनुच्छेद 370 को हटाना भी शामिल है। लेकिन सुशील मोदी के ट्वीट ने इतना तो साफ़ कर दिया है कि नीतीश विरोधी नेताओं के लिए आगे की राह आसान नहीं है। क्योंकि जितनी ताक़त से वे नीतीश का विरोध करते हैं, उतनी ही ताक़त से सुशील मोदी नीतीश के समर्थन में खड़े हो जाते हैं। ऐसे में बिहार की सियासत किस करवट बैठेगी, कहना मुश्किल है।
अपनी राय बतायें