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बिहार: कोरोना का संकट, ख़राब स्वास्थ्य सुविधाएं, क्या अभी चुनाव कराने ज़रूरी हैं?

कोरोना महामारी के चलते तमाम आशंकाओं के बीच चुनाव आयोग ने पहले यह साफ किया कि बिहार में चुनाव तय समय पर ही होंगे और उसके बाद शुक्रवार शाम को इसके लिए गाइडलाइंस भी जारी कर दी। इन गाइडलाइंस को लेकर राज्य के राजनीतिक दलों की अलग-अलग राय है। 

बीजेपी और जेडीयू तो चाहते ही थे कि चुनाव तय समय पर हों, इसलिए उन्होंने इसका स्वागत किया है लेकिन उन्हीं की सहयोगी एलजेपी ने फिर से कहा है कि चुनावों को टाला जा सकता था। बिहार विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को समाप्त हो रहा है, यानी तब तक राज्य में नई सरकार बन जाएगी। 

पहले जानते हैं कि चुनाव आयोग ने अपनी गाइडलाइंस में क्या कहा है। 

  1. केवल पांच लोगों का ग्रुप ही डोर-टू-डोर चुनाव प्रचार कर सकेगा। उम्मीदवार के रोड शो वाले काफिले में 5 से ज़्यादा वाहन नहीं होंगे। 
  2. नामांकन के वक्त उम्मीदवार के साथ दो ही लोग हो सकते हैं। 
  3. वोटिंग वाले दिन अगर किसी मतदाता में कोरोना के लक्षण दिखाई देते हैं तो उसे एक टोकन देकर कहा जाएगा कि वह मतदान के आख़िरी घंटे में आए। 
  4. रजिस्टर में दस्तख़त करते वक़्त और ईवीएम का बटन दबाते वक्त मतदाताओं को दस्ताने उपलब्ध कराए जाएंगे। 
  5. एक पोलिंग स्टेशन पर अधिकतम 1000 मतदाता वोट डाल सकते हैं। पहले यह संख्या 1500 थी। 
  6. सभी मतदाताओं से कहा जाएगा कि वे फ़ेस मास्क पहनकर आएं। 
  7. क्वारेंटीन किए गए मरीज़ स्वास्थ्य अधिकारियों की देखरेख में वोटिंग के अंतिम घंटे में वोट डालेंगे। 

जिस तरह की गाइडलाइंस आयोग के द्वारा जारी की गई हैं, चुनाव प्रचार के दौरान यह कैसे सुनिश्चित किया जाएगा कि इन गाइडलाइंस का पूरी तरह पालन होगा। क्योंकि हर डोर-टू-डोर प्रचार या किसी नेता के रोड शो के दौरान आयोग के अधिकारी सब जगह मौजूद नहीं रह सकते। 

कोरोना महामारी के संकट के दौरान जब संक्रमण इतनी तेजी से फैल रहा है, ऐसे में आयोग के अधिकारी कहां तक इन गाइडलाइंस को फ़ॉलो करवा पाएंगे, ये एक बड़ा सवाल है।

बहरहाल, आयोग की इन गाइडलाइंस को लेकर बिहार के मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने कहा है कि इतनी बंदिशों के कारण मतदाता अच्छी संख्या में वोटिंग नहीं कर पाएंगे। आरजेडी ने यह भी कहा है कि आयोग को यह तय करना चाहिए कि ज़्यादा अहम क्या है- लोगों की जान बचाना या विधानसभा का गठन होना।

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आरजेडी, कांग्रेस ने जताई नाराजगी 

आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘अगर 30 फ़ीसदी वोटिग होंगी तो आप क्या करेंगे। इतनी सारी पाबंदियों के बीच क्या हम लोकतंत्र के इस उत्सव का आनंद उठा पाएंगे। इससे मतदाताओं की भागीदारी पर असर पड़ेगा।’ 

आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, ‘हम आयोग द्वारा तय समय पर चुनाव कराए जाने से संतुष्ट नहीं हैं। बिहार का चुनाव कोरोना के संक्रमण का सुपर स्प्रेडर साबित हो सकता है।’

कांग्रेस ने कहा है कि इन गाइडलाइंस के हिसाब से राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होने मुश्किल हैं। कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने कहा कि आयोग की गाइडलाइंस में बहुत खामियां हैं। कांग्रेस ने कहा कि उसने आयोग से कहा था कि ईवीएम का इस्तेमाल न किया जाए क्योंकि इससे संक्रमण फैलने का ख़तरा बढ़ जाएगा लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। 

बीजेपी, जेडीयू ने किया स्वागत 

बीजेपी नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने गाइडलाइंस का स्वागत किया है और कहा है कि इसमें कोरोना के दौरान मतदाताओं की सुरक्षा का ध्यान रखा गया है। मोदी ने कहा कि आरजेडी कोरोना का बहाना बनाकर चुनाव टालने की कोशिश कर रही है। जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने भी बीजेपी के सुर में सुर मिलाया। लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) की राय पूरी तरह अलग है।

एलजेपी के अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि उनकी प्राथमिकता कोरोना से लड़ाई लड़ने और बाढ़ से प्रभावित लाखों लोगों की मदद करने की है। चिराग ने कहा कि हालांकि अगर आयोग चुनाव की तारीखों की घोषणा करता है तो उनकी पार्टी इसके लिए तैयार है। 

चिराग ने कहा, ‘मैंने इस बारे में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी बताया कि यह समय चुनाव कराने के लिए सही नहीं है क्योंकि कोरोना तेजी से फैल रहा है और राज्य में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहद ख़राब हैं।’ 

चिराग पासवान ने कहा कि विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने की स्थिति में ढेरों विकल्प हैं और इनमें राष्ट्रपति शासन का भी विकल्प शामिल है। उन्होंने कहा कि वह अभी भी सोचते हैं कि चुनाव स्थगित किए जा सकते हैं।

गांवों-कस्बों में पहुंचा संक्रमण 

बिहार में कोरोना संक्रमण के मामले 1 लाख 18 हज़ार के आसपास हैं और अब तक 588 लोगों की मौत हो चुकी है। इतने महीने बाद भी कुल टेस्टिंग का आंकड़ा 22 लाख तक पहुंचा है। आयोग का ऐसे वक्त में चुनाव कराना और भी ख़तरनाक है, जब ये रिपोर्टें आ रही हैं कि कोरोना का संक्रमण अब शहरों से निकलकर गांवों-कस्बों में पहुंच गया है। 

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एसबीआई रिसर्च के एक ताजा सर्वे में कहा गया है कि जहां अप्रैल महीने में कुल संक्रमण के 23 फ़ीसदी नए मामले ग्रामीण ज़िलों से आ रहे थे वे अब अगस्त में (13 अगस्त तक) 54 फ़ीसदी हो गए हैं। जुलाई में यह आंकड़ा 51 फ़ीसदी था जबकि मई में 27 और जून में 24 फ़ीसदी। 

बिहार में स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल हैं, बाढ़ के कारण लाखों लोग बेघर हो चुके हैं और उनके सामने अपने कच्चे घर को फिर से बनाने और दो जून की रोटी का संकट है। ऐसे में कहीं चुनाव के कारण कोरोना का संक्रमण और फैल गया तो उन पर बहुत ज़्यादा मार पड़ेगी। 

जिस बात को चिराग पासवान ने भी कहा कि पूरा राज्य कोरोना महामारी और बाढ़ की मुसीबत से जूझ रहा है और ऐसे में चुनाव टाले जा सकते थे, इसी बात को हर आम व्यक्ति भी कह रहा है। क्योंकि इतने बड़े राज्य में ईवीएम, वीवीपैट को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना, पोलिंग पार्टियों को हर पोलिंग स्टेशन तक पहुंचाना, सुरक्षा बलों को राज्य के कोने-कोने में भेजना और चुनाव के दौरान होने वाली सैकड़ों तैयारियां कोरोना के दौर में होगी और संक्रमण नहीं फैलेगा, यह कहना पूरी तरह ग़लत होगा। 

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क़मर वहीद नक़वी

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