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नीतीश कुमार की हताशा है ‘आख़िरी चुनाव’ का दाँव

जिस किशनगंज में एक दिन पहले नीतीश कुमार कह रहे थे कि ‘कोई किसी को नहीं भगा सकता’, उसी किशनगंज में अगले दिन चुनाव प्रचार के अंतिम दिन नीतीश कह गये- ‘यह मेरा अंतिम चुनाव है। अंत भला तो सब भला।’

सत्ता में आने पर एक-एक घुसपैठिए को निकालने की बात कहकर मुसलमानों को कटिहार में डरा रहे योगी आदित्यनाथ के बयान का विरोध नहीं कर सके नीतीश कुमार। मगर, वह योगी आदित्यनाथ से विपरीत अपने वोटरों को भरोसा ज़रूर दे रहे थे कि ऐसा नहीं होगा। 

नीतीश के आख़िरी चुनाव का दाँव उन वोटरों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता दिखाने वाला बयान है जो बीते डेढ़ दशकों से उनका साथ देता आया है। जब भरोसा दिलाने के लिए और कुछ बाक़ी नहीं रहा तो नीतीश कुमार ने इसे अपना अंतिम चुनाव बताकर समर्थन माँगने का आख़िरी दाँव चल दिया। आख़िरी चुनाव के आख़िरी चरण के आख़िरी दिन आख़िरी वक़्त पर यह नीतीश कुमार की हताशा है।

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‘आख़िरी चुनाव’ का इवेंट मैनेजमेंट!

नीतीश कुमार चाहते तो अपने ‘आख़िरी चुनाव’ का इवेंट मैनेजमेंट कर सकते थे। ऐसा करने पर उनके लिए जो एंटी इनकंबेंसी थी, वह भी दूर हो सकती थी। मगर, ऐसा उन्होंने नहीं किया। क्या उन्हें अचानक यह ख्याल आया कि यह उनका आख़िरी चुनाव हो सकता है? नरेंद्र मोदी की उम्र 70 साल हो चुकी है और नीतीश की उम्र मार्च में 70 साल होगी। दोनों में महज 6 महीने का फासला है। 

निजी तौर पर चुनाव लड़ना तो मुख्यमंत्री बनने के बाद ही नीतीश कुमार ने छोड़ दिया था। तब से वह विधान परिषद सदस्य के तौर पर मुख्यमंत्री बने रहने की पात्रता अर्जित करते रहे। विधानसभा का चुनाव जीते हुए उन्हें 35 साल हो गये। 1985 के बाद से उन्होंने कोई विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा। 
इसलिए किशनगंज से नीतीश के एलान को चुनावी राजनीति से संन्यास के तौर पर भी देखा जा सकता है। शायद वह यह कहना चाहते हों कि आगे वे कभी मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर वोट मांगते नज़र नहीं आएँगे।

हताश क्यों?

नीतीश के मोदी विरोध की सियासत का अंत महागठबंधन छोड़ने और मोदी-शाह वाली बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाते समय हो गया था। बहुमत चुराते हुए मुख्यमंत्री बने रहने के अलावा कोई सैद्धांतिक औचित्य वह नहीं दिखा सके। धीरे-धीरे दिखावे का विरोध भी नीतीश छोड़ते चले गये और सारे सैद्धांतिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर एनडीए में रहकर चुनाव लड़ा।

चुनाव अभियान का तीसरा चरण आते-आते नीतीश को अहसास हो चुका था कि ‘मोदी विरोधी’ की प्रतिक्रिया में ‘नीतीश विरोध’ एनडीए के भीतर सबसे अहम फ़ैक्टर बन चुका है।

यह अनायास घटी घटना नहीं थी कि लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान ने जेडीयू के ख़िलाफ़ सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान तब किया जब एनडीए में सीटों के बँटवारे का एलान हो गया। इन दोनों घटनाओं के बाद नीतीश के पास कोई विकल्प नहीं रह गया था। फिर शुरू हुआ एनडीए में नीतीश का कद घटाने का खेल।

nitish kumar last election announcement is strategy or desperation - Satya Hindi

जेडीयू को कम से कम सीट मिले, बीजेपी को अधिक से अधिक सीटें हासिल हो ताकि चुनाव बाद अगली सरकार बनाने के समय जेडीयू कमज़ोर रहे। इस रणनीति के तहत बीजेपी और आरएसएस के नेताओं को एलजेपी से टिकट दिलाने की रणनीति पर काम किया गया। एलजेपी ने चुनाव बाद बीजेपी-एलजेपी की सरकार का नारा बुलंद कर हर तरह के भ्रम को तोड़ दिया। राजनीति भी क्या चीज होती है! सबकुछ समझते रहे नीतीश, मगर बोल नहीं सके। 

नरेंद्र मोदी ने भी कम बेइज्जती नहीं की 

ख़ुद नरेंद्र मोदी ने चुनावी मंच पर नीतीश कुमार को सैद्धांतिक रूप से करारा तमाचा जड़ा। नीतीश तिलमिला कर रह गये। नरेंद्र मोदी ने जब खुलेआम कहा कि राम मंदिर निर्माण पर तारीख़ पूछने वाले आज ताली बजाने को मजबूर हैं तो उपस्थित नीतीश समर्थक स्तब्ध रह गये। इससे पहले कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने को लेकर भी उन्होंने नीतीश पर तंज कसा था। नीतीश की बेबसी से उनके समर्थक मायूस होते रहे।

nitish kumar last election announcement is strategy or desperation - Satya Hindi
चुनाव प्रचार के अंतिम दो दिनों में नीतीश कुमार अपने गढ़ में थे जहाँ से उन्हें 74 में से 35 सीटें बीते चुनाव में जनता ने दी थीं। यहाँ योगी आदित्यनाथ ने घुसपैठियों को भगाने के नाम पर ‘चुन-चुन कर देश से बाहर‘ भेजने की बात कह दी। नीतीश कुमार से जब बिल्कुल रहा नहीं गया तो उन्होंने किशनगंज में 4 नवंबर को कहा कि ‘कोई किसी को नहीं भगा सकता’। मगर, मतदाताओं को नीतीश से अपेक्षा इतनी भर नहीं थी।
जनता का मूड भांपते हुए नीतीश ने आख़िरी दाँव खेल दिया- यह मेरा अंतिम चुनाव है। अंत भला तो सब भला।

राजनीति गढ़ते थे, अब पिछलग्गू दिखने लगे

नीतीश के हाथ में नहीं है कि अंत भला हो। जो नीतीश राजनीति को परिभाषित करते थे, जिस नीतीश में इतना दम था कि बीजेपी उनके कहने पर नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार के लिए बिहार नहीं भेजा करती थी उस नीतीश को इस लाचार हाल में देखकर उनके समर्थक सहानुभूति तो रख सकते हैं लेकिन उन्हें एक और मौक़ा देने की ग़लती शायद ही करें।

मतदाता इस बात को कैसे भूल सकते हैं कि नीतीश ने पटना में यह कहकर कि बिहार को विकसित राज्य नरेंद्र मोदी ही बना सकते हैं, एक तरह से मान लिया कि एनडीए में अब उनका रुतबा पहले जैसा नहीं रहा। नरेंद्र मोदी के विरोध से नरेंद्र मोदी के सामने समर्पण की यात्रा को 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार के मतदाताओं ने देख लिया, महसूस कर लिया। 

वीडियो में देखिए, क्या योगी ने बिगाड़ा नीतीश का खेल
यह बात महत्वपूर्ण है कि विधानसभा चुनाव के पहले और दूसरे चरण में नीतीश कुमार ने अपना अंतिम चुनाव होने की बात नहीं कही। अगर चुनाव की शुरुआत में ही वह इसे एक मुहिम के तौर पर सामने रखते और बताते कि उनकी अंतिम चुनावी इच्छा यह है और वे इसे पूरा करना चाहते हैं। तो, यह संभव था कि बिहार की जनता एक बार फिर उन पर भरोसा कर लेती। अंतिम चुनाव होने  की बात कहने के बजाए अंतिम चुनावी इच्छा वो सामने रखते तो अधिक कारगर होता। तब यह हताशा न कहलाकर योजना कहलाती। फ़िलहाल नीतीश कुमार केवल अंतिम चरण के लिए अपने अंतिम चुनाव की घोषणा कर अपनी हताशा ही दिखा रहे हैं।
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प्रेम कुमार

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