प्रधानमंत्री मोदी ने उज्ज्वला जैसी योजनाओं से जिन महिलाओं को अपनी मुरीद बना लिया था क्या उन्हें अब केजरीवाल ने एक झटके में अपनी तरफ़ कर लिया है? दिल्ली चुनाव में जहाँ प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी बीजेपी को 35 फ़ीसदी महिलाओं ने अपनी पसंद बताया वहीं केजरीवाल की आप को 60 फ़ीसदी महिलाओं ने। केजरीवाल को महिलाओं को इतना ज़बरदस्त समर्थन कैसे मिला? इसका मतलब क्या है? क्या प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा महिलाओं में ख़त्म हो रहा है? क्या प्रधानमंत्री मोदी की जगह अरविंद केजरीवाल ले रहे हैं?
चुनाव पूर्व कराए गए 'लोकनीति-सीएसडीएस-द इंडियन एक्सप्रेस' के सर्वे के अनुसार आम आदमी पार्टी को पुरुषों की अपेक्षा 11 फ़ीसदी ज़्यादा महिलाओं ने वोट दिया। केजरीवाल की पार्टी को जहाँ कुल पुरुष मतदाताओं में से 49 फ़ीसदी लोग वोट देने के पक्ष में थे वहीं कुल महिला मतदाताओं में से 60 फ़ीसदी महिलाएँ। यह भी ग़ौर किया जाना चाहिए कि 2015 के मुक़ाबले इस बार आप को वोट देने वाले पुरुष मतदाताओं में 6 फ़ीसदी की कमी आई है, जबकि महिला मतदाताओं में 7 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। बीजेपी के मामले में यह उलटा है। बीजेपी के पक्ष में कुल पुरुष मतदाताओं में से 43 फ़ीसदी रहे तो कुल महिला मतदाताओं में से सिर्फ़ 35 फ़ीसदी ही। 2015 की अपेक्षा इस बार बीजेपी को समर्थन देने वाले पुरुषों में 11 पर्सेंटेज प्वाइंट तो महिलाओं में एक पर्सेंटेज प्वाइंट की बढ़ोतरी हुई।
इसे प्रधानमंत्री मोदी से महिलाओं के दूर जाने के तौर पर इसलिए देखा जा सकता है क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री का चेहरा ही पेश किया गया था और उनके चेहरे पर ही वोट माँगे गए थे। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री के नाम पर वोट मिलने की उम्मीद में ही पार्टी ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी घोषित नहीं किया था। इससे पहले 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने प्रधानमंत्री के चेहरे पर वोट माँगा था और तब युवाओं के साथ ही महिलाओं में भी उनका ज़बरदस्त क्रेज था। इन चुनावों के अलावा भी दूसरे चुनावों और चुनावी रैलियों में युवा और महिलाएँ भी मोदी के करिश्मे से काफ़ी प्रभावित रही हैं।
बहरहाल, सर्वे के इन आँकड़ों के लिहाज़ से देखा जाए तो महिला मतदाता पूरी तरह केजरीवाल के पक्ष में नज़र आती हैं। प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी बीजेपी के पक्ष में जहाँ 35 फ़ीसदी मतदाता दिखते हैं वहीं केजरीवाल की आप के पक्ष में 60 फ़ीसदी। यानी साफ़ तौर पर 25 फ़ीसदी महिलाएँ मोदी से ज़्यादा केजरीवाल की पार्टी के समर्थन में खड़ी दिखीं। यही वह अंतर है जिसने आप को बड़ी जीत दिलाई।
इससे पिछले चुनाव यानी 2015 के विधानसभा चुनाव में आप को बीजेपी से 19 फ़ीसदी ज़्यादा महिलाओं ने पसंद किया था। लोकनीति का दावा है कि वह 1998 से दिल्ली के सभी चुनावों में ऐसे सर्वे कर चुकी है लेकिन ऐसा जेंडर गैप पहले कभी नहीं रहा। उस दौरान भी नहीं जब शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं।
सर्वे में यह भी कहा गया है कि इस बार का जेंडर गैप इस तरह से भी अलग है कि इसमें सभी जातियों, समुदायों, वर्गों और आयु वर्गों की महिलाएँ शामिल हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोई भी समुदाय ऐसा नहीं रहा है जिसमें पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं ने बीजेपी को वोट किया हो। इसके उलट आप के मामले में एक भी समुदाय ऐसा नहीं है जिसमें महिलाओं से ज़्यादा पुरुषों ने आप को वोट किया हो।
आप को अपनी पसंद बताने वाले पुरुष और महिलाओं में सबसे ज़्यादा जेंडर गैप 25 फ़ीसदी दलितों में रहा। इस समुदाय में पुरुषों से 25 फ़ीसदी ज़्यादा महिलाओं ने आप को वोट किया। जाट, गुर्जर और यादव के मामले में यह 18 फ़ीसदी रहा।
ब्राह्मण पुरुषों में जहाँ आप को बीजेपी से 22 पर्सेंटेज प्वाइंट कम लोगों ने पसंद किया वहीं इस समुदाय की महिलाओं के मामले में केजरीवाल की आप सिर्फ़ 7 पर्सेंटेज प्वाइंट ही पीछे रही।
मुफ़्त बस यात्रा
सर्वे में यह भी बताया गया है कि केजरीवाल के पक्ष में इतनी ज़्यादा महिलाएँ किन कारणों से वोट करती नज़र आईं। इसमें सबसे साफ़ और सबसे प्रमुख कारण महिलाओं के लिए मुफ़्त बस की सवारी रही। आम आदमी पार्टी ने पिछले साल अक्टूबर महीने में इस योजना की शुरुआत की थी। सर्वे में कहा गया है कि 50 फ़ीसदी परिवारों ने इसका लाभ लिया और इन परिवारों की महिलाएँ केजरीवाल और आप के पक्ष में बीजेपी से 42 पर्सेंट प्वाइंट ज़्यादा दिखीं। जिन परिवारों ने इसका लाभ नहीं लिया उसमें आप सिर्फ़ 3 पर्सेंटेज प्वाइंट आगे थी।
इसका दूसरा कारण रहा महँगाई बढ़ने का। खाने-पीने से लेकर गैस की क़ीमतें बढ़ने का सबसे ज़्यादा महिलाओं पर हुआ। पानी और बिजली के बिल में सब्सिडी देने से भी महिलाएँ आप के पक्ष में आईं।
शाहीन बाग़
माना जा रहा है कि चुनावी रैलियों के दौरान नफ़रत वाले, भड़काऊ बयान देने और शाहीन बाग़ को मुद्दा बनाने के कारण भी ग़लत संदेश गया। बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर से लेकर प्रवेश वर्मा, योगी आदित्यनाथ और ख़ुद अमित शाह ने भी ऐसा ही बयान दिया था। मतदाताओं ने इसे खारिज कर दिया। माना जा रहा है कि महिलाओं को ऐसी भाषा पसंद नहीं आई। ख़ुद गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसे स्वीकार किया है कि नफ़रत वाले बयान से नुक़सान हुआ होगा।
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