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कुर्सी जाने के डर से सरकारी ख़ज़ाना लुटा रहे हैं केजरीवाल?

जिस दिन आम आदमी पार्टी दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर बुरी तरह हारी थी, शायद उसी दिन दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने फ़ैसला कर लिया था कि अब सरकारी ख़ज़ाने का मुँह मुफ़्त सुविधाओं के लिए खोल देंगे। अभी चुनाव नतीजे आए दो ही महीने बीते हैं लेकिन इस दौरान दिल्ली में बसों और मेट्रो में मुफ़्त सफर की योजना लाई जा चुकी है। 29 अक्टूबर से बसों में तो मुफ़्त सवारी का एलान भी कर दिया गया है। दिल्ली में 200 यूनिट तक बिजली फ़्री कर दी गई है। पानी के अब तक के सारे बिल माफ़ कर दिए गए हैं। ऑटो वालों के लिए फ़िटनेस, जीपीएस और रजिस्ट्रेशन सब फ़्री कर दिया गया है। बुजुर्गों की तीर्थ यात्रा योजना न सिर्फ़ शुरू कर दी गई है बल्कि उसमें दक्षिणी भारत के तीर्थ स्थान और जोड़ दिए गए हैं। स्टूडेंट्स की सीबीएसई की एग्ज़ाम फ़ीस अब सरकार भरेगी। इसके अलावा चुनावी वादों सीसीटीवी लगाने की योजना शुरू हो चुकी है और मुफ़्त वाई फाई के लिए भी टेंडर जारी कर दिया गया है।

अगर रक़म के लिहाज़ से देखें तो बिजली कंपनियों को इस साल सब्सिडी के रूप में 2255 करोड़ रुपए दिए जा रहे हैं, मेट्रो में मुफ़्त सवारी होती है तो 800 करोड़ का ख़र्च आएगा और बसों में मुफ़्त सवारी पर 300 करोड़ का ख़र्च आ रहा है। पानी के बिल माफ़ करने पर 535 करोड़ रुपए पानी में बहाए जा रहे हैं। बाक़ी योजनाओं पर भी हिसाब लगाया जाए तो क़रीब 1200 करोड़ रुपया और ख़र्च हो रहा है। यानी सरकार पाँच हजार करोड़ रुपये सिर्फ़ मुफ़्त खैरात बाँटने पर ख़र्च कर रही है। ऐसा लगता है कि लोकसभा की हार से केजरीवाल इतने आतंकित हैं कि सारा सरकारी ख़ज़ाना न्यौछवार करके जनता के वोट ख़रीदना चाहते हैं।

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यह सब इसलिए हो रहा है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी सातों सीटों पर हार गई है। सीएम अरविंद केजरीवाल ने 2015 के चुनावों में मुफ़्तख़ोरी का एक फ़ॉर्मूला ईजाद किया था- बिजली हाफ़ और पानी माफ़। अब बिजली भी माफ़ और पानी भी माफ़। यह फ़ॉर्मूला उन्हें इसलिए और विस्तारित करना पड़ा है कि उन्हें लगता है कि दिल्ली की जनता मुफ़्तख़ोर है और वह मुफ़्त सुविधाओं के नाम पर एक बार फिर केजरीवाल को पाँच साल के लिए दिल्ली की गद्दी सौंप देगी। अभी हाल ही में दिल्ली सरकार के ही पीडब्ल्यूडी ने एक आरटीआई में खुलासा किया है कि जब से केजरीवाल सरकार दिल्ली में आई है उसने फ्लाई ओवर जैसा एक भी प्रोजेक्ट बनाकर नहीं दिया।

हालाँकि केजरीवाल कहते हैं कि पिछले पाँच सालों में 23 फ्लाई ओवर बनाए हैं लेकिन ज़ाहिर है कि वे सारी योजनाएँ शीला सरकार की बनाई हुई थीं और ज़्यादातर शुरू हो चुकी थीं, उनकी राशि मंज़ूर हो चुकी थी। दिल्ली सरकार के लिए तो उन योजनाओं को पूरा कराना भी भारी पड़ गया था। इसीलिए सिग्नेचर ब्रिज जैसी योजनाएँ भी काफ़ी देरी से ही पूरी हो सकीं। 

अब एक तरफ़ तो मुफ़्त सुविधाओं का अंबार है और दूसरी तरफ़ विकास के नाम पर एक परियोजना भी नहीं है तो भी केजरीवाल को विश्वास है कि चुनावों से ठीक पहले इस तरह सरकारी ख़ज़ाने का मुँह खोल देना उनके लिए लाभ का सौदा होगा।

केजरीवाल चुनाव में हार के बाद इतनी हड़बड़ी क्यों दिखा रहे हैं? दरअसल केजरीवाल ने दो महीनों में इतने ज़्यादा ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेल दिए हैं कि उन्हें इसी में अपनी जीत पक्की नज़र आ रही है। वह हड़बड़ी और जल्दबाज़ी में इसलिए हैं कि उन्हें लग रहा है कि दिल्ली के चुनाव इसी साल अक्टूबर-नवंबर में ही हो जाएँगे। ऐसा होता है तो अगले महीने आचार संहिता लग सकती है। केजरीवाल उससे पहले अपने बाक़ी स्ट्रोक भी खेलने की तैयारी में हैं।

केजरीवाल हड़बड़ी में क्यों?

दिल्ली में पिछले विधानसभा चुनाव 7 फ़रवरी 2015 को हुए थे और 14 फ़रवरी 2015 को केजरीवाल सरकार ने शपथ ली थी। इस हिसाब से अगली दिल्ली विधानसभा का गठन 22 फ़रवरी 2020 से पहले हो जाना चाहिए। इसी तरह महाराष्ट्र विधानसभा का गठन 9 नवंबर 2019 से पहले, हरियाणा विधानसभा का गठन 2 नवंबर 2019 से पहले और झारखंड विधानसभा का गठन 5 जनवरी 2020 से पहले हो जाना चाहिए। यह माना जा रहा है कि चुनाव आयोग हरियाणा के साथ-साथ महाराष्ट्र और झारखंड में भी चुनावों का एलान एक साथ कर देगा। पिछली बार भी इन तीन राज्यों में एक साथ चुनाव हुए थे। अब क्या दिल्ली में भी चुनाव इन तीन राज्यों के साथ ही कराए जाएँगे। वैसे, भी पीएम नरेंद्र मोदी एक देश एक चुनाव की नीति को आगे बढ़ाने पर लगे हुए हैं तो सिर्फ़ दिल्ली के चुनाव अलग हों, यह किसी की समझ में नहीं आता। अगर चारों राज्यों में एक साथ चुनाव होते हैं तो फिर यह माना जा सकता है कि ये चुनाव हर हाल में अक्टूबर-नवंबर में हो जाएँगे। केजरीवाल इसीलिए हड़बड़ी में नज़र आ रहे हैं।

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आम आदमी पार्टी ख़ुद यह आशंका ज़ाहिर कर चुकी है कि चुनाव आयोग अक्टूबर-नवंबर में चुनाव करा सकता है। पार्टी का कहना है कि अगर चुनाव आयोग ऐसा करता है तो पाँच साल के लिए संवैधानिक रूप से चुनी गई दिल्ली की सरकार का कार्यकाल चार महीने कम करना होगा लेकिन चुनाव आयोग ने भी साफ़ कर दिया है कि इसमें कुछ भी ग़ैरक़ानूनी नहीं है। 

चुनाव आयोग ने कहा है कि अभी चुनाव पर कोई ऐसा फ़ैसला नहीं लिया गया लेकिन फ़ैसला लेना पड़ता है तो यह संविधान सम्मत ही होगा। चुनाव आयोग विधानसभा की अवधि समाप्त होने से छह महीने पहले कभी भी चुनाव करा सकता है। इसलिए ग़ैर क़ानूनी नहीं कहा जा सकता।

दिल्ली के चुनाव इसी साल होंगे, ऐसा इसलिए भी लग रहा है कि बीजेपी अपनी तैयारी में जुटी हुई है। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी पार्टी विश्राम की मुद्रा में नहीं है। पार्टी ने हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के साथ-साथ दिल्ली के चुनाव प्रभारियों की नियुक्ति कर दी है। पार्टी दिल्ली को बाक़ी राज्यों से भी ज़्यादा महत्व दे रही है, इसलिए अमित शाह दिल्ली के प्रभारी प्रकाश जावडेकर और उपप्रभारी हरदीप पुरी और नित्यानंद राय से विचार कर चुके हैं।

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दिल्ली की जनता को क्या चाहिए?

इन सारे हालात को देखते हुए ही केजरीवाल सारा सरकारी ख़ज़ाना लुटाने में जुटे हुए हैं। चुनाव आने और आचार संहिता लगने से पहले वह और भी बहुत कुछ कर सकते हैं। सरकारी ख़ज़ाना लुटाने में उन्हें गुरेज़ नहीं है। वह कहते हैं कि जनता का पैसा जनता को लौटा रहा हूँ लेकिन जो लोग टैक्स देते हैं, वे दिल्ली में सुविधाएँ भी चाहते हैं, वे दिल्ली का विकास भी चाहते हैं। वे टैक्स इसलिए नहीं देते कि कुछ लोगों को मुफ़्त पानी या बिजली मिल जाए या फिर बस या मेट्रो की मुफ़्त सवारी मिल जाए। समर्थ लोग भी सरकारी ख़र्च पर तीर्थयात्रा करें तो भले यह कहाँ का धर्म हैै। वे दिल्ली में सड़कें भी चाहते हैं, फ्लाई ओवर भी चाहते हैं, अस्पताल भी चाहते हैं, स्कूल-कॉलेज भी चाहते हैं। उन सुविधाओं के नाम पर सिर्फ़ लफ़्फ़ाजी से उन्हें बहलाया जा सकता है, इसमें संदेह है। फिर भी केजरीवाल अपने उसी फ़ॉर्मूले को लागू करने की जल्दबाज़ी में हैं।

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दिलबर गोठी

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