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क्या दिल्ली में फिर बनेगी केजरीवाल सरकार?

सीएसडीएस-लोकनीति-द हिंदू के सर्वे के आँकड़े कहते हैं कि ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है जो केजरीवाल सरकार से तो संतुष्ट है, लेकिन लोकसभा में वोट बीजेपी को दिया। सर्वे में जब वोटरों से पूछा गया कि अगर अभी विधानसभा चुनाव हो जाये तो वे किस पार्टी को वोट देंगे तो बीजेपी और कांग्रेस को वोट देने वालों में से एक-चौथाई मतदाताओं ने कहा कि उनकी पहली पसंद ‘आप’ होगी।
आशुतोष

तो क्या दिल्ली में आम आदमी पार्टी ख़त्म हो जायेगी? क्या केजरीवाल का सितारा गर्दिश में है? क्या वह एक बार के मुख्यमंत्री बन कर ही रह जायेंगे? क्या आम आदमी पार्टी का बोरिया-बिस्तर समेटने का वक़्त आ गया है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद तेज़ी से देश की राजधानी में उठ रहे हैं? कुछ लोग तो क़समें खा रहे हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में ‘आप’ सीटों के मामले में दहाई का भी आँकड़ा नहीं छू पायेगी। कुछ यह भी कह रहे हैं कि अगर आज चुनाव हो जाये तो दिल्ली में बीजेपी की सरकार बन जायेगी। सबका एक ही तर्क है कि राजधानी में कांग्रेस से गठबंधन न कर केजरीवाल ने ऐतिहासिक भूल की है। निश्चित तौर पर यह एक बड़ी भूल थी। लेकिन जो यह उम्मीद लगाये बैठे हैं कि ‘आप’ दिल्ली में ख़त्म हो जायेगी, उन्हें भारी निराशा का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है।

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दरअसल, लोकसभा चुनाव में दिल्ली में आप तीसरे नंबर पर रही। सात में से पाँच सीटों पर आप के उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे और दो पर दूसरे स्थान पर। तीन सीटों पर उसके उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई। वोट प्रतिशत के हिसाब से देखें तो आप को कुल 18% वोट मिले और कांग्रेस के खाते में 22% मत आये। बीजेपी कहीं आगे 56% वोट लेकर सातों सीटें जीत गयी। कुल सत्तर विधानसभा सीटों में बीजेपी ने 65 पर बढ़त बनाई और कांग्रेस के पक्ष में 5 सीटें गयीं।

लोकसभा चुनावों में आप एक भी सीट पर जीत की स्थिति में नहीं रही। ये आँकड़े केजरीवाल की रातों की नींद उड़ाने के लिये काफ़ी हैं। बहुत संभव है उन्हें रात को नींद भी नहीं आ रही हो और मुख्यमंत्री की कुर्सी भी जाती हुई लग रही हो।

दिल्ली में ‘आप’ की यह लगातार दूसरी हार है। लोकसभा के पहले वह एमसीडी के चुनावों में भी बुरी तरह से हारी थी। 2017 के एमसीडी चुनाव में ‘आप’ को पचास से भी कम सीटें मिली थीं। वोट प्रतिशत विधानसभा चुनावों के 54% से घट कर 26% हो गया था और कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ कर 22%। ऐसे में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नीचे तीसरे नंबर पर आना, ‘आप’ के लिये बड़े ख़तरे की घंटी है। दिल्ली के साथ पंजाब में ‘आप’ का सूपड़ा साफ़ हो गया। 2014 में उसे चार सांसद मिले थे, इस बार सबकी ज़मानत ज़ब्त हो गयी सिर्फ भगवंत मान अकेले जीते। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में उसे 1% से भी कम वोट मिले। ऐसे में लगातार हार किसी को भी तोड़ सकती है। लेकिन सीएसडीएस-लोकनीति-द हिंदू के आँकड़े ‘आप’ के घावों पर मलहम लगा सकते हैं। तसवीर उतनी भयावह नहीं है, जैसी लगती है।

72% लोग केजरीवाल सरकार से संतुष्ट?

सीएसडीएस-लोकनीति-द हिंदू ने लोकसभा चुनावों में मतदाता का मिज़ाज भाँपने के लिये पोस्ट पोल सर्वे किया है। इसके आँकड़े कहते हैं कि ‘आप’ को दिल्ली में कमज़ोर समझने की भूल, बीजेपी और कांग्रेस दोनों को भारी पड़ सकती है। दिल्ली के मतदाताओं से जब पूछा गया तो यह बात साफ़ उभर कर आयी कि वे लोकसभा और विधानसभा चुनावों में स्पष्ट फ़र्क़ करते हैं। लोकसभा में उसकी पसंद बीजेपी थी और वे मोदी सरकार को वोट देने के पक्ष में थे। दिल्ली में बीजेपी के सांसदों के काम से अगर वह 44% संतुष्ट था तो मोदी सरकार के काम से दो-तिहाई से अधिक। लेकिन केजरीवाल सरकार के कामकाज से वे असंतुष्ट क़तई नहीं दिखे। सर्वे के मुताबिक़ 72% लोग केजरीवाल सरकार से संतुष्ट दिखे। यह आँकड़ा मोदी सरकार के प्रति जनता के संतोष भाव से अधिक है।

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बीजेपी समर्थक केजरीवाल को वोट देंगे!

सर्वे के आँकड़े कहते हैं कि ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है जो केजरीवाल सरकार से तो संतुष्ट है, लेकिन लोकसभा में वोट बीजेपी को दिया। सर्वे में जब वोटरों से पूछा गया कि अगर अभी विधानसभा चुनाव हो जाये तो वे किस पार्टी को वोट देंगे तो बीजेपी और कांग्रेस को वोट देने वालों में से एक-चौथाई मतदाताओं ने कहा कि उनकी पहली पसंद ‘आप’ होगी।

सर्वे के अनुसार बीजेपी का एक-चौथाई वोटर और कांग्रेस का एक-चौथाई वोटर अभी भी केजरीवाल का मुरीद है। यह दोनों दलों के लिए चिंता की बात है।

कांग्रेस जो उम्मीद लगाये बैठी है उसे भारी झटका लग सकता है। और बीजेपी जो यह सोच बैठी है कि 2020 के चुनावों में वह दिल्ली में सरकार बनायेगी, उसे मुँह की खानी पड़ सकती है। सीएसडीएस-लोकनीति-द हिंदू के सर्वे में यह भी निकल कर सामने आया कि राजधानी में 54% लोग अभी भी केजरीवाल सरकार को एक और मौक़ा देने के पक्ष में हैं। मतदाताओं में 36% ऐसे थे जो अभी भी केजरीवाल को मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं।

कुछ-कुछ ऐसा ही समां 2014 में भी था। तब भी ‘आप’ लोकसभा चुनावों में सातों सीट हार गयी थी। ‘आप’ को ख़त्म हो गया मान लिया गया था। पर ‘आप’ 2015 विधानसभा चुनाव में 67 सीटें लेकर लौटी। बीजेपी तब 32 से घटकर 3 पर सिमट गयी थी जबकि कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था। लोकसभा चुनावों के समय बीजेपी ने केजरीवाल को तब इस्तीफ़ा देने के कारण ‘भगोड़ा’ घोषित कर दिया था। लोग यह शिकायत कर रहे थे कि केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा क्यों दिया। लेकिन लोकसभा प्रचार के दौरान ऐसे ढेरों लोग थे जो खुलेआम कहते थे कि केंद्र में मोदी और दिल्ली में केजरीवाल को वोट देंगे। जिन्होंने लोकसभा के नतीजों के आधार पर ‘आप’ को चुका हुआ मान लिया था, उन्हें 2015 विधानसभा में भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी।

‘आप’ और केजरीवाल की छवि

लेकिन तब से राजनीति में काफ़ी बदलाव आ चुका है। मोदी पहले से ज़्यादा बहुमत से प्रधानमंत्री बन गये हैं। 2014 की तुलना में दिल्ली में बीजेपी के वोट प्रतिशत में लगभग दस फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है। ‘आप’ और केजरीवाल की छवि में अब वह बात नहीं रही जो 2015 में थी। तब उनको क्रांतिकारी पार्टी और क्रांतिकारी नेता माना जाता था। एक विकल्प के तौर पर ‘आप’ को देखा जाता था। कांग्रेस को मरी हुई पार्टी मान लिया गया था। केजरीवाल की लोकप्रियता राहुल से कोसों आगे थी। अब ऐसा नहीं कहा जा सकता। इस सर्वे में लोकप्रियता में राहुल केजरीवाल से आगे हैं। और राजनीति में कब क्या हो जाये, कहा नहीं जा सकता। ऐसे में सीएसडीएस-लोकनीति-द हिंदू का सर्वे केजरीवाल के लिये अच्छी ख़बर तो हो सकती है पर यही नतीजे आयेंगे यह गारंटी के साथ नहीं कहा जा सकता।
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