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पीएम नरेंद्र मोदी की भतीजी दमयंती बेन।

क्या सिर्फ़ वीआईपी के लिए ही रह गई है दिल्ली पुलिस?

बाक़ी जुमलों की तरह यह जुमला भी आपने अक्सर सुना होगा कि दिल्ली क्राइम कैपिटल बन गई है। मगर यह 15 लाख वाले जुमले जैसा नहीं है और न ही यह नई तरह की राजनीति करने जैसा है। यह जुमला आम जनता के लिए एक पीड़ा बन गया है, एक कसक बन गया है। दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरा एनसीआर अपराधियों के रहमो-करम पर है। इस बारे में करवा चौथ से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट के एक जज की टिप्पणी बड़ी ही सामयिक लगती है कि अब महिलाओं ने सुहाग की निशानी मंगलसूत्र ही पहनना छोड़ दिया है।

दिल्ली में अपराध हमेशा से ही चर्चा का विषय रहे हैं लेकिन इधर कुछ समय से लगता है कि जेएनयू में नारे लगाने वालों को तो नहीं लेकिन अपराधियों को पूरी आजादी मिल गई है। 

पिछले एक-दो महीनों में हुई घटनाओं पर नज़र डाल लें तो पूरी दिल्ली जैसे अपराधियों के लिए स्वर्ग बन गई है। जब पीएम नरेंद्र मोदी की भतीजी दमयंती बेन भी दिल्ली में सुरक्षित नहीं हों और स्नेचर्स पल भर में उनका बैग लेकर रफूचक्कर हो जाएं या फिर घर से बाहर निकले तीस हजारी कोर्ट के मजिस्ट्रेट के हाथ से उनका मोबाइल छीनकर स्नैचर हवा-हवाई हो जाएं तो फिर बाक़ी लोगों की सुरक्षा तो भगवान भरोसे ही हो सकती है। 
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पीएम की भतीजी या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट तो वीआईपी हैं, इसलिए उनके मामले पुलिस 24 घंटे में सुलझा लेती है लेकिन असल में अपराधियों के हौसले कितने बुलंद हैं, इसका अंदाजा मधु विहार की घटना से लगाया जा सकता है या फिर कनॉट प्लेस में सुबह-सुबह घूमने निकले भंडारी दम्पति के साथ हुए हादसे से। मधु विहार में मंदिर गए अपने पति का इंतजार कर रही 59 वर्षीय ऊषा देवी को सरेआम लुटेरे इसलिए गोली मार गए क्योंकि उन्होंने अपनी कार का शीशा नहीं खोला था। लुटेरे लूट नहीं सके तो उन्होंने गोली मार दी। 

कनॉट प्लेस जैसे वीआईपी इलाक़े में बदमाशों ने भंडारी दम्पति को लूटने के लिए उनका पीछा किया और जब बाइक फिसलने के कारण पति-पत्नी चोटिल हो गए तब वे वहां से गए। साकेत कोर्ट की महिला जज का पीछा करते हुए लुटेरों ने लगातार उनका पीछा किया और फिर गाड़ी का पिछला शीशा तोड़कर देखते ही देखते बैग ले उड़े। महिला जज के मामले में पुलिस ने लूटपाट की जगह चोरी का मामला ही दर्ज किया।

इन सारी घटनाओं से यह साफ़ हो जाता है कि दिल्ली में अपराधियों की जद से कोई बचा नहीं है। हां, अगर वीआईपी के भाई-भतीजे हैं तो पुलिस आप पर इतना करम कर सकती है कि आपके साथ हुई घटना के बाद अपराधियों की धरपकड़ कर ले और हो सकता है कि आपका माल भी बरामद हो जाए।

अपराधियों की नज़र में पीएम की भतीजी हो, मजिस्ट्रेट हो या फिर कोई लेडी जज हो, सब बराबर हैं। वे वीआईपी पर हाथ डालकर फंसना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें भी मालूम है कि पुलिस तभी पकड़ेगी जब कहीं से दबाव होगा। पीएम की भतीजी से लूटपाट करने वाले स्नैचर को जब पकड़ा गया तो उसने भी माना कि घटना के बाद टीवी पर ख़बर देखकर वे समझ गए थे कि बुरे फंस गए हैं। इन स्नैचरों का दुस्साहस भी इसी घटना से पता चल जाता है और पुलिस के काम करने का रवैया भी। 

पीएम की भतीजी से लूटपाट करने के लिए अपराधियों ने किसी नक़ाब का इस्तेमाल नहीं किया और न ही उन्होंने इतनी जहमत उठाई कि हेलमेट पहन लें क्योंकि उन्हें पता है कि पुलिस भले ही ट्रैफिक जुर्माना बढ़ने के बाद कुछ दिन के लिए खौफ़ पैदा करने में सफल हुई हो लेकिन अब सब पुराने ढर्रे पर आ गया है। इसलिए वे 30 किलोमीटर तक बिना हेलमेट के ही चलते रहे। किसी ने उन्हें रोका-टोका नहीं। ऐसे ज़्यादातर मामलों में स्नैचर बाइक या किसी दूसरे टू-व्हीलर का इस्तेमाल करते हैं। 

ऐसे में अगर सिर्फ़ वीआईपी से लूटपाट करने वाला ही पकड़ा जाए तो मधु विहार में हत्या की शिकार महिला का परिवार या कनॉट प्लेस में लुटने वाला दम्पति यह सवाल ज़रूर उठाएगा कि आख़िर उनके साथ हुई लूटपाट के अपराधी खुले क्यों घूम रहे हैं।

पुलिस का रवैया बेहूदा

ऐसी किसी भी घटना का शिकार होने वाला व्यक्ति एक अजीब दहशत का शिकार हो जाता है। वह पुलिस के पास जाता है तो अक्सर पुलिस का रवैया जगजाहिर होता है। इतना क़ीमती मोबाइल लेकर क्यों चल रहे थे या फिर महिलाओं से यह सवाल पूछ लिया जाता है कि वे जेवर पहनकर घर से क्यों निकलीं। पुलिस इस दहशत को या तो और बढ़ाती है या फिर ऐसे क़ानूनी पचड़ों में फंसाती है कि आम आदमी पुलिस से भी तौबा कर लेता है। भले ही मोबाइल आपके हाथ से छीना गया हो लेकिन पुलिस यही लिखेगी कि कहीं खो गया है। 

महिलाओं से कहा जाता है कि अगर अपराधी पकड़े गए तो फिर उनकी शिनाख़्त के लिए जाना होगा, तिहाड़ जेल जाकर शिनाख़्त करनी होगी और अपराधियों से रू-ब-रू होना पड़ेगा। आम आदमी को डराने के लिए इतना ही काफ़ी होता है और वह माथे पर हाथ मारते हुए यह कहकर लौट आता है कि फलां चीज मेरी किस्मत में ही नहीं थी। 

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जान जाने का भी डर 

अपराधियों का हौसला इतना बुलंद हो चुका है कि अब वे सिर्फ़ आपके क़ीमती सामान पर ही हाथ नहीं डाल रहे बल्कि उनके पास कोई न कोई हथियार भी होता है और उसका इस्तेमाल करते हुए उनके हाथ नहीं कांपते। यही वजह है कि सिर्फ़ माल जाने का डर नहीं बल्कि जान जाने का डर भी दिल्लीवालों के दिलो-दिमाग पर छा रहा है।

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जहां तक पुलिस का सवाल है तो दिल्ली पुलिस आंकड़ों की बाजीगरी से भले ही यह साबित कर दे कि दिल्ली में अपराध कम हो गए हैं लेकिन असल में इस साल दर्ज हुए मामले ही डरा रहे हैं। इस साल के नौ महीने में दिल्ली में क्राइम का रिकॉर्ड देखें तो स्नैचिंग की रोजाना 18 वारदात हो रही हैं। इस साल 30 सितंबर तक स्नैचिंग की 4762 घटनाएं हो चुकी हैं। इस साल अब तक लूटपाट की 1558 वारदात हो चुकी हैं यानी रोजाना 6 वारदात। छेड़छाड़ की 2276 यानी रोजाना 8 घटनाएं और रेप की 1721 यानी रोजाना 6 घटनाएं दर्ज हो रही हैं। 

दिल्ली पुलिस न तो यह पता लगा पा रही है कि इतने हथियार कहां से आ रहे हैं और न ही उन पर रोक के लिए कोई कारगर कदम उठा पा रही है। यही वजह है कि हालात दिनों-दिन गंभीर होते जा रहे हैं।

जब केंद्र में बीजेपी की सरकार हो और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की तो जनता की बेबसी और भी बढ़ जाती है। कोढ़ में खाज की स्थिति तब बन जाती है जब क़ानून और व्यवस्था तो केंद्र के पास हो और दिल्ली पुलिस भी केंद्र के प्रति ही जवाबदेह हो। यही वजह है कि जब भी कोई बड़ा अपराध होता है तो फिर दिल्ली की केजरीवाल सरकार की उंगलियां केंद्र की तरफ़ उठ जाती हैं। 

बात पीएम की भतीजी के साथ स्नैचिंग की हो तो फिर पूरी आम आदमी पार्टी को ही यह मौक़ा मिल जाता है कि वह पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह समेत दिल्ली पुलिस को भी कठघरे में खड़ा कर दे। तब यह समस्या क़ानून और व्यवस्था की समस्या न रहकर राजनीतिक समस्या बन जाती है। ऐसे में बीजेपी क्या जवाब दे। जाहिर है कि उसके पास कोई जवाब ही नहीं है। पीएम भी उनके हैं और दिल्ली पुलिस भी। तब दिल्ली प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी एनआरसी का मुद्दा उठा देते हैं। वह कहते हैं कि घुसपैठियों के साथ सीएम केजरीवाल की हमदर्दी है। 

अब सवाल यह है कि क्या दिल्ली में सारे अपराधों के पीछे घुसपैठियों का ही हाथ है। मान लिया कि घुसपैठिए हैं भी तो क्या दिल्ली पुलिस या केंद्र सरकार इसलिए उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं कर पा रही है कि केजरीवाल ने उन्हें रोका हुआ है। मनोज तिवारी की उस वक्त छीछालेदार हो गई जब पीएम मोदी की भतीजी का माल उड़ाने वाले चंद ही घंटों में पकड़े गए ओर उनमें से कोई घुसपैठिया नहीं था। 

न तो आम आदमी पार्टी ने कभी दिल्ली की क़ानून-व्यवस्था को सुधारने के लिए कोई सुझाव दिया और न ही बीजेपी को इसकी परवाह है कि आज दिल्ली का आम आदमी किस कदर इन लुटेरों से खौफ़जदा हो गया है।
दिल्ली की क़ानून-व्यवस्था को बेहतर करने के लिए कड़े क़दम उठाने की ज़रूरत है। कहते हैं कि खुरदुरे हाथों में चाहिए हकूमत की बागडोर। लगता है कि दिल्ली पुलिस के हाथ बहुत मुलायम हो गए हैं। वक्त आ गया है कि राजनीति को दरकिनार रखकर दिल्ली पर कुछ सख़्त फ़ैसले लिए जाएं। अगर ऐसा नहीं होगा तो फिर दिल्ली में पुलिस सिर्फ़ वीआईपी के लिए ही रह जाएगी और आम आदमी यूं ही लुटता-पिटता रहेगा।
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दिलबर गोठी

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